मेरे साथी:-

Wednesday, June 6, 2012

आंसूं पश्चाताप के



आ गए गर आँखों में आंसूं पश्चाताप के,
धुल गए वो बेरंग से गलतियों के जो छाप थे;
भूल तो हर इंसानों से ही हो जाता है "दीप",
धो देते हैं आंसूं ये हर दाग को उस पाप के |


आत्म-ग्लानि स्वयं में ही एक बड़ा दण्ड है,
गलतियों से सीख लेना पश्चाताप का खण्ड है,
अंतर्मन स्वीकार ले गलती बात बने तब "दीप",
पश्चाताप पे क्षमा है मिलती गलती चाहे प्रचन्ड है |

Thursday, May 31, 2012

***मुर्दा ***

जिन्दा तो हैं यहाँ
पर प्राण का नाम नहीं,
फिरते हैं यात्र-तत्र
बने जीवित मुर्दा;

कुंठित है सोच
अपंग क्रियाकलाप,
कलुषित है हर अंग
क्या नैन-मुख-गुर्दा |

एक धुंधली ज्योति
है लिए अंतरात्मा,
है उसे लौ बनाके
स्वयं को प्राण देना;

मुर्दा बनके जीना
मृत्यु से भी बद्तर,
है जीवित अगर रहना
बस यही ज्ञान लेना |

Monday, May 21, 2012

थोडा प्यार होना चाहिए



चंद लम्हों  की जिंदगी है खुशगवार होनी चाहिए,
खुशगवार मौसम के लिए थोडा प्यार होना चाहिए |

प्यार ही है नेमत और ये प्यार ही है पूजा,
पर प्यार है तो थोड़ी-सी तकरार होनी चाहिए |

तकरार से बढती है खूबसूरती इस प्यार की,
तकरार के साथ-साथ इजहार होना चाहिए |

इजहार न होके अगर हो जाये इनकार,
इनकार में भी रजामंदी बरक़रार होना चाहिए |

मुश्किलें हो, कांटे हो या हो लोहे की दीवार,
जो भी हो पर थोडा प्यार होना चाहिए |

नैनों के बाण जरा सोच के चला ज़ालिम,
आँखों के तीर दिल के पार होने चाहिए |

छलनी कर डालो भले इस दिल को लेकिन,
घायल मजनू को लैला का दीदार होना चाहिए |

जिंदगी हो भरा मौसम-ए-बहार से ऐ "दीप",
जिंदगी भर खिला दिल-ए-गुलजार होना चाहिए |

जख्म हो, दर्द हो या हो दिल पे कोई वार,
जो भी हो पर थोडा प्यार होना चाहिए |

Tuesday, May 15, 2012

"बच्चा बिकाऊ है"

पिछले दिनों अचानक
एक खबर है आई,
सरकारी अस्पताल को
किसी ने मंडी है बनाई |

चर्चा थी वहां तो
सब कुछ ही कमाऊ है,
गुपचुप तरीके से वहां
"एक बच्चा बिकाऊ है" |

सुनकर ये खबर
मैं सन्न-सा हुआ,
पर तह तक जाके
मन खिन्न-सा हुआ |


दो दिन का बच्चा एक
बिकने है वाला,
पुलिस-प्रशासन कहाँ कोई
रोकने है वाला !

अस्पताल वालों ने ही
ये बाजार है सजाई,
बीस हजार की बस
कीमत है लगाई |

बहुतों ने अपना दावा
बस ठोक दिया है,
कईयों ने अग्रिम राशी तक
बस फेंक दिया है |

पता किया तो जाना खबर
नकली नहीं असली है,
बच्चे को जानने वाली माँ
"घुमने वाली एक पगली" है |

इस एक समस्या ने मन में
सवाल कई खड़े किये,
मन में दबे कई बातों को
अचानक इसने बड़े किये |

लावारिश पगली का माँ बनना
मन कहाँ हर्षाता है,
हमारे ही "भद्र समाज" का
एक कुरूप चेहरा दर्शाता है |

बच्चे पर बोली लगना
भी तो एक बवाल है,
पेशेवर लोगों के धंधे पर
ज्वलंत एक सवाल है |

सभ्य कहलाते मनुष्यों का
ये भी एक रूप है,
अच्छा दिखावा करने वालों का,
भीतरी कितना कुरूप है |

सरकार से लेके आम जन तक का
इस घटना में साझेदारी है,
किसी न किसी रूप में सही
हम सबकी इसमें हिस्सेदारी है |

समस्या का नहीं हल होगा
कभी हड़ताल या अनशन से,
हर मर्ज़ से हम निजात पाएंगे
बस सिर्फ आत्म-जागरण से |

Thursday, May 3, 2012

जिंदगी जिंदगी कहाँ

जिंदगी का काम ही है अनवरत चलते जाना,
ये जो रुक ही जाये तो जिंदगी जिंदगी कहाँ ;
लगा रहता है जिंदगी में लोगो का आना-जाना,
ना आये जाये कोई तो जिंदगी जिंदगी कहाँ |

माना कि सफ़र में कभी आंसू हैं निकलते,
और कभी होठों पे मुस्कान है आती;
खुशियाँ और गम है जिंदगी के ही पहलू,
दो पहलू ना हो तो जिंदगी जिंदगी कहाँ |

माना कि हैं मिलते कांटे ही कांटे पथ में,
धुप्प-सा अँधेरा कभी दिखाई भी है पड़ता,
जाल फेंक कष्टों का परखती है जिंदगी,
जो संघर्ष न हो तो जिंदगी जिंदगी कहाँ |

Friday, April 27, 2012

अनंत की खोज


अनंत की खोज में भटकता ही रहा,
पंछी अकेला बस तरसता ही रहा,
दर-ब-दर, यहाँ वहाँ,
और न जाने कहाँ-कहाँ,
जो ढूंढा वो मिला ही नहीं,
जो मिला उसकी तो चाह ही नहीं थी |
अनंत तो अनंत है,
मिल जाये तो फिर अनंत कहाँ ?

Friday, April 6, 2012

विनती

पवन तनय तुम अंतर्यामी, विघ्न हरो हे सबके स्वामी |
दूर करो हर कष्ट राह के, उर में बसो संग सिय राम के ||

बल बुद्धि के आप निधाना, गावो बस तुम राम गुण-गाना |
बल विवेक प्रभु हमको देना, सब अवगुण को तुम हर लेना ||

नित भज लूँ प्रभु नाम तुम्हारा, तुम ही तो हो नाथ हमारा |
विपदा मेरी मिटाना देवा,           तत्पर हो करूँ तेरी सेवा ||

शंकर सुवन तुम हे दुख भंजन, भक्ति तेरी ज्यों पावन चन्दन |
भक्तों का तू जीवन तर दे,          भक्ति भाव से झोली भर दे ||

अंजनी सूत तुम राम के दासा, पूर्ण करो इस मन की आशा |
विनय करूँ तेरी हे हनुमाना, विनती मेरी तुम ना ठुकराना ||

सभी को महा प्रभु हनुमत जी की जयंती की बधाइयाँ |

Monday, February 13, 2012

यारों कुछ तो याद करो

कॉलेज के लिए

यारों कुछ तो याद करो,
रब से तुम फ़रियाद करो,
कॉलेज के जो रिश्ते हैं तुम उनको न बर्बाद करो |
यारों कुछ तो याद करो |

जगह-जगह से हम सब बन्दे PIET थे पहुंचे,
डरे-डरे से सहमे से थे, हम सब सारे बच्चे,
धीरे-धीरे हम सबका जो बना था वो याराना,
पल-पल पनपे उस पौधे को पल-पल अब आबाद करो |
यारों कुछ तो याद करो.... 

कॉलेज में था संग-संग रहना, संग-संग पढना-लड़ना,
संग-संग हरदम मस्ती करना, संग-संग हँसना-रोना,
संग-संग गप्पे करने की वो याद अभी है ताज़ी,
संग-संग के अपनी यादों को, दिल से न आज़ाद करो |
यारों कुछ तो याद करो.... 

अन्जाने उस जगह में भी जो प्यार मिला था सबका,
अन्जानों का साथ हुआ था अपनों जैसा पक्का,
चार वर्षों का सुखमय जीवन, चार वर्षों की यारी,
चार साल के सफ़र का अनुभव जेहन से तुम याद करो |
यारों कुछ तो याद करो.... 

मिल-जुल के था बंकिंग करना, मिल-जुल कैंटिन जाना,
मिल-जुल के कॉलेज के वक्त पे, दूर तक घुमने जाना,
मिल-जुल के ना जाने कितने कर डाले हड़ताल थे हमने,
मिल-जुल कर जो रखी थी हमने, याद तो वो बुनियाद करो ।
यारों कुछ तो याद करो.... 

कभी-कभी वो रेल का सफर, वो कैंपस की तैयारी,
बिना टिकट वो पकड़ा जाना, निभाना अपनी यारी,
तरह-तरह के ग्रुप बना था अपना जीवन जीना,
कभी-कभी जो बीत गए तल, उनपे वाद-विवाद करो ।
यारों कुछ तो याद करो.... 

यारों कुछ तो याद करो,
रब से तुम फ़रियाद करो,
कॉलेज के जो रिश्ते हैं तुम उनको न बर्बाद करो |
यारों कुछ तो याद करो |

नवोदय के लिए

यारों, कुछ तो याद करो,
रब से तुम फ़रियाद करो,
नवोदय के रिश्तें हैं जो, उनको न बर्बाद करो |

यारों, कुछ तो याद करो |

जगह-जगह से हम सब बन्दे नवोदय थे पहुंचे,
डरे-डरे से सहमे-से थे, हम सब सारे बच्चे,
धीरे-धीरे हम सबका जो बना था वो याराना,
पल-पल पनपे उस पौधे को पल-पल अब आबाद करो |
यारों, कुछ तो याद करो.... 

नवोदय में संग-संग रहना, संग-संग पढना-लड़ना,
संग-संग हरदम मस्ती करना, संग-संग हँसना-रोना,
संग-संग गप्पे करने की वो याद अभी है ताज़ी,
संग-संग के अपनी यादों को, दिल से न आज़ाद करो |
यारों, कुछ तो याद करो.... 

अन्जाने उस जगह में भी जो प्यार मिला था सबका,
अन्जानों का साथ हुआ था अपनों जैसा पक्का,
चार वर्षों का सुखमय जीवन, चार वर्षों की यारी,
चार साल के सफ़र का अनुभव जेहन से तुम याद करो |
यारों, कुछ तो याद करो.... 

यारों, कुछ तो याद करो,
रब से तुम फ़रियाद करो,
नवोदय के रिश्तें हैं जो, उनको न बर्बाद करो |
यारों, कुछ तो याद करो |

Thursday, February 9, 2012

"मेरा काव्य-पिटारा"


संग्रह मेरी रचनाओं का यह, खिलता एक बहारा,
आ करके सब देखो भाई, "मेरा काव्य-पिटारा" |

साझा सबसे कर सकता हूँ, है इसमें ये गुण सारा,
सब से विनय है आके देखो, "मेरा काव्य-पिटारा" |

भद्रजनों का मिलता है आशीष इसके द्वारा,
भाई, बंधू, मित्रों देखो, "मेरा काव्य-पिटारा" |

मिलती यहाँ है सीख भी, है ज्ञान का एक सहारा,
आओ, देखो, राय भी दो सब, "मेरा काव्य-पिटारा" |

मेरे लिए ये मंदिर-मस्जिद, ये मेरा है गुरुद्वारा,
तुम भी आओ, शौक से देखो, "मेरा काव्य-पिटारा" |

जीवन संग अनवरत चलेगा, नदिया संग ज्यों धरा,
एक अभिन्न-सा भाग है यह, "मेरा काव्य-पिटारा" |

[ मेरी कविताओं के ब्लॉग का नया नाम- "मेरा काव्य-पिटारा" (पहले-"मेरी कविता") |
पता-http://pradip13m.blogspot.com/

जरुर आयें और अपनी राय दें | ]

Wednesday, February 8, 2012

मैं पथिक

क्यूँ चलूँ मैं ऐसे,
राहों में औरों के,
मैं पथिक,
मुझे राह अपनी,
स्वयं बनाना है ।

सुनना है सबकी,
हर बात को लेकिन,
मैं पथिक,
मेरा पथ मुझे,
स्वयं दिखाना है ।

माना कि कई लोग,
कई मार्ग से गुजरे,
उत्तम से अतिउत्तम,
रास्ते बना गए ।

सीखना है सबसे,
बढ़ना है निज पथ पे,
मैं पथिक,
दिये राह में,
स्वयं जलाना है ।

बने बनाए राह पर,
चल पड़ूँ ऐ "दीप",
संघर्ष से भागुँ,
जरुरी तो नहीं ।

टकराना है मुश्किलों से,
चलना है नए राह पे,
मैं पथिक,
पुष्प बाट में,
स्वयं बिछाना है ।

कोई-सी भी मंजिल,
चुन लूँ यूँ ही,
चल पड़ूँ मुँद नैन,
क्या ये सही है ?

नया लक्ष्य है बनाना,
बढ़ना है निरंतर,
मैं पथिक,
तीर लक्ष्य में,
स्वयं चलाना है ।

नत होने का अर्थ है,
मृत ही कहलाना,
मैं पथिक,
धैर्य आप का,
स्वयं बढ़ाना है ।

Tuesday, February 7, 2012

आस

खामोश हैं निगाहें,
जुबानों पे हैं ताले,
घिरे हैं नकाबपोशों से,
दिखते नहीं उजाले,
घबराये से हैं,
कोशिश है संभलने की,
छंट जाये ये बदल,
हट जाये ये जाले |

मुश्किलें भी हैं,
पांवों में हैं छाले,
पर मस्ती में ही हैं,
हम मतवाले,
दंभ नसीब का,
टूटकर बिखरेगा ही,
हिम्मत नहीं खोना,
चाहे निकल जाये दीवाले |

करना नहीं खुद को,
किस्मत के हवाले,
साहस की ही घुट्टी,
पियेंगे भर प्याले,
फलक तक होगी,
अपनी भी उड़ान,
आस का दामन,
न छोड़े हम जियाले | 

Thursday, February 2, 2012

विडम्बना

एक तरफ बनाकर देवी,
पूजते हैं हम नारी को;
भक्ति भाव दर्शाते हैं,
बरबस सर नवाते हैं;
माँ शारदे के रूप में कभी
ज्ञान की देवी बताते हैं,
तो माँ दुर्गा के रूप में उसे,
शक्ति रूपा ठहराते हैं |

दूसरी तरफ वही नारी,
हमारी ही जुल्मो से त्रस्त है,
कुंठित सोच की शिकार है,
कहीं तेजाब का वार सहती है,
कही बलात्कार का दंश झेलती है,
कही दहेज के लिए जलाई जाती है,
कही शारीरिक यातनाएं भी पाती है;
तो कही जन्म पूर्व ही,
मौत के घाट उतारी जाती है |

एक तरफ तो दावा करते,
हैं सुरक्षित रखने का;
दूसरी तरफ वो नारी ही,
सबसे ज्यादा असुरक्षित है |

क्या अपने देवियों की रक्षा,
अपने बूते की बात नहीं ?
क्या समाज के दोहरी नीति की,
मानसिकता की ये बात नहीं ?

Tuesday, January 31, 2012

जिन्दगी को, एक हसीं अब, मोड़ देने जा रहा

आज अपने, सुप्त सपने, फिर जगाने जा रहा,
जिन्दगी को, एक हसीं, अब मोड़ देने जा रहा ।

चाहता हूँ, पतझड़ों में, चंद हरियाली भरुँ,
बंजरों में, आज फिर एक,बीज बोने जा रहा ।

देख लेंगे, तेज कितना, टिमटिमाते "दीप" में है,
सख्त दरख्तों, में भी कोंपल, फिर फुटाने जा रहा ।

आए हैं वो, आज फिर से,बनके एक हमदर्द-सा,
जब मैं सारे, दर्द को,दिल से भुलाने जा रहा ।

पत्थरों को, घिस कर अब, आग जलती है नहीं,
आग जो, दिल में लगी, उसे अब बुझाने जा रहा ।

देखा है खुद, गैरों को, अपनो के साये में ढले,
फूलों से अब, काँटों को चुन-चुन हटाने जा रहा ।

हो गया अब, आँसुओं से, मुँह धोने का रसम,
जिंदगी को, जीतकर अब, जश्न मनाने जा रहा ।

बस हुआ, सपनों में गिरना, गिरते-गिरते दौड़ना,
अपने साये, पे अब अपना, हक जमाने जा रहा ।

सोच में हैं, वो कि हमसे, क्या कहे क्या न कहे,
मैं हूँ कि, उनकी हरेक, बातें भुलाने जा रहा ।

आँहे भरते, जीने का अब,वक्त पूरा हो चुका,
जिन्दगी को, एक हसीं अब, मोड़ देने जा रहा ।

Saturday, January 28, 2012

हे ज्ञान की देवी शारदे

(मेरे ब्लॉग पर ये (१०० वीं ) सौवीं पोस्ट माता शारदे को समर्पित है । मुझे इस बात से अत्यंत हर्ष हो रहा है कि आज के ही शुभ दिन यह सुअवसर आया है ।)
हे ज्ञान की देवी शारदे,
इस अज्ञ का जीवन तार दे,
तम अज्ञान का दूर कर दे माँ,
तू प्रत्यय का उपहार दे ।

तू सर्वज्ञाता माँ वीणापाणि,
मैं जड़ मूरख ओ हंसवाहिनी,
चेतन कर दे,जड़ता हर ले,
मैं भृत्य तेरा हे विद्यादायिनी ।

जग को भी सीखलाना माँ,
सत्य का पाठ पढ़ाना माँ,
जो अकिञ्चन ज्ञान से भटके,
मति का दीप जलाना माँ ।

मैं दर पे तेरे आया माँ,
श्रद्धा सुमन भी लाया माँ,
सुध मेरी बस लेती रहना,
तेरे स्मरण से मन हर्षाया माँ ।

माँ कलम मेरी न थमने देना,
भावों को न जमने देना,
न लेखन में अकुलाऊँ माँ,
काव्य का धार बस बहने देना ।

माँ विनती मेरी स्वीकार कर,
मुझ मूरख का उद्धार कर,
कृपा-दृष्टि रखना सदैव,
निज शरण में अंगीकार कर ।

जय माँ शारदे ।


(सभी ब्लॉगर मित्रों को माँ शारदे पूजा की हार्दिक शुभकामनाये |)

Thursday, January 26, 2012

मात-पिता के चरणों में

मात-पिता के चरणों में ही बसते तीरथ-धाम,
मात-पिता के चरण की माटी सौ चन्दन समान ।

मात-पिता की निःस्वार्थ सेवा, शत यज्ञ का फल दे,
मात-पिता पावन कर देते, गंगा का जल से ।

मात-पिता के स्नेह की छाया ताप में दे आराम,
मात-पिता के चरणों में ही बसते तीरथ-धाम ।

मात-पिता गुरु से भी बढ़कर, मात-पिता भगवान,
मात-पिता के संस्कारों से बनता कोई महान ।

मात-पिता की दया से मिलते हैं इस जग में नाम,
मात-पिता के चरणों में ही बसते तीरथ-धाम ।

मात-पिता के दरश से मिलते सुख, शक्ति प्रबल,
मात-पिता के हस्त जो सर पे सब कर्म लगे सरल ।

मात-पिता गुण-धाम हैं इनका क्या मैं करुँ गुणगान,
मात पिता के चरणों में ही बसते तीरथ-धाम ।

जैसी निगाहें वैसा शमाँ

जैसी निगाहें वैसा शमाँ,
निगाहों के अनुरुप बदलता जहाँ,
गमगीन होके देखो तो दुनिया उदासीन,
प्यार से देखो तो सबकुछ खुशनुमा ।

कोई कहता आधा है खाली,
कोई कहता है आधा भरा,
नजरिये का फेर है ये सब,
नजरिये पे निर्भर है अपनी धरा ।

सोच अच्छी हो तो होगे सफल,
गलत सोच डुबो देगा नाव,
सकारात्मता जीवन को देती है राह,
हो तपते हुए मौसम में जैसे छाँव ।

Wednesday, January 25, 2012

एहसास तेरा

ढुँढती है नजरें तुझे हर दिन और हर रात,
आईने में नजरें अब तो तुझे तलाशती है ।

आहट तेरी करार है लेती अब तो हर हर एक पल,
भँवरों की गुँजन भी धुन तेरा सुनाती है ।

सपने तेरे मदहोश हैं करते अब निद्रा में हर रात,
जागती हुई आँखे भी ख्वाब तेरा दिखाती है ।

छुवन तेरा महसूस है करता ये मन हर लम्हा,
हवाओं की सरसराहट एहसास तेरा कराती है ।

खुशबू तेरी महकाती है अब बगिया में हरदम,
मादकता फूलों की भी याद तेरा दिलाती है ।

Tuesday, January 24, 2012

शबनमी ये रात

बड़ी ही शबनमी-सी है ये रात,
क्यों न मचले हृदय के जज्बात,
आशा में देवी निद्रा से हसीन मुलाकात,
आँखों ही आँखों में ज्यों हो जाए बात ।

करवटों में बीते ये रात की गहराईयाँ,
एक अकेले हम और जाने कितनी परछाईयाँ,
पल-पल का सफर दुष्कर उसपे ये तनहाईयाँ,
आगोश में ले लूँ आकाश, भर लूँ अँगड़ाईयाँ ।

सरगमीं ये कैसी दिल में कैसी ये हलचल,
धड़कनों की रफ्तार यूँ बढ़ती है पल-पल,
आकस्मिक अस्थिरता पर मन है अविचल,
शबनमी ये रात है या कोई प्यारी गज़ल ।

ये झुकी हुई पलकें

ये झुकी हुई पलकें,
न जाने क्या कहती है;
लबों की तरह खामोश है,
शायद उनमे कुछ राज है ।

कहती है शायद
रहने दो राज को राज,
आवरण इतनी जल्द न हटाओ,
शायद कुछ खोने का डर भी है इनमे,
कभी लगता कहती है पास आओ ।

ये झुकी हुई पलकें,
हैं सागर को समेटे,
रंजोगम बयाँ करती,
पर फिर भी झुकी रहती ।

हया की चादर में लिपटी,
स्याह की धार में बँधी,
न जाने कितने भेद छुपाये,
तेरी ये झुकी हुई पलकें ।

Monday, January 23, 2012

शुभकामना

आज नेताजी जयंती के साथ-साथ मेरे अनुज रघु का भी जन्मदिन है । नेताजी को शत-शत नमन और अनुज को शुभकामना स्वरूप ये छोटी-सी रचना ।

'ज'ग के उजियारे बनो,
'न'मन जिसे खुद सफलता करे;
'म'न में सबके मूर्ति हो जिसकी,
'दि'ल से सब जिसकी पूजा करे;
'न'त कर दे जो हर दुश्मन को,
'मु'श्किल में भी साहसी बन;
'बा'त से सबको जीत ले हरदम,
'र'घु तू बिल्कुल वैसा बन;
'क'ल्पना नहीं ये दुआ है मेरी,
'हो' न हो तू वैसा बन ।

(सभी पंक्तियों का पहला अक्षर मिलाने पर-"जनम दिन मुबारक हो" ।)

Saturday, January 21, 2012

दिल से कवि हूँ

संसार के पटल में, मैं एक छवि हूँ,
पेशे से अभियंता और दिल से कवि हूँ |

भावना के उदगार को, व्यक्त ही तो करता हूँ,
हृदय के जज्बात को, प्रकट ही तो करता हूँ;

बस एक "दीप" हूँ, कब कहा रवि हूँ ;
पेशे से अभियंता और दिल से कवि हूँ |

उन्मुक्त साहित्याकाश में, बस घूमा करता हूँ,
काव्य पढता-रचता हूँ और झूमा करता हूँ;

कोशिश होती लिखने की, शब्दों का बढई हूँ,
पेशे से अभियंता और दिल से कवि हूँ |

समाज की सत्यता को वर्णित किया करता हूँ,
सही शब्द सागर से, चयनित किया करता हूँ ;

बस एक माध्यम हूँ, काम करता थवई हूँ,
पेशे से अभियंता और दिल से कवि हूँ |

Thursday, January 19, 2012

परी मेरी अब सोयेगी


रात ये कितनी बाकि है,
पुछ रहा हूँ तारों से;
पवन सुखद बनाने को,
अब कहता हूँ बहारों से ।

चाँद को ही बुलाया है,
निद्रासन मंगवाया है;
परी मेरी अब सोयेगी,
भँवरों से लोरी गवाया है ।

डैडी की सुन्दर गुड़िया है,
मम्मी की जान की पुड़िया है;
क्यों रात को पहरा देती है,
ज्यों सबकी दादी बुढ़िया है ।

स्वयं पुष्पराज ही आयेंगे,
खुशबू मधुर फैलायेंगे;
निद्रादेवी संग चाकर लाकर,
मिल गोद में सब सुलायेंगे ।

परी मेरी न रोयेगी,
परी मेरी अब सोयेगी ।

Tuesday, January 17, 2012

वो एक ख्वाब था

वो एक ख्वाब था ।
पर जो भी था, लाजवाब था ।

चंद लम्हों को आया था,
मुस्कुराहट भी लाया था ।
अंधेरे में एक किरण बनकर,
मृत शरीर में जीवन बनकर ।
जीवन के अगणित सवालों के बीच,
कई फलसफों का वो जवाब था,
वो एक ख्वाब था ।

अश्रु को मोती में बदलता,
तमस को ज्योति में बदलता ।
अपनेपन का पाठ पढ़ाता,
जीवन के हर गुर सीखाता ।
सुखे हुए सुमनों के बीच,
खिलता हुआ वो गुलाब था ।
वो एक ख्वाब था ।

वो एक ख्वाब था ।
दो पल का ही सही, वो एक रुबाब था ।
वो एक ख्वाब था ।

Thursday, January 12, 2012

कन्यादान

मतलब क्या है इस कन्यादान का ?
क्या ये सीढ़ी भर है नए जीवन निर्माण का ?

या सचमुच दान ही इसका अर्थ है,
या समाज में हो रहा अर्थ का अनर्थ है ?

दान तो होता है एक भौतिक सामान का,
कन्या जीवन्त मूल है इस सृष्टि महान का ।

नौ मास तक माँ ने जिसके लिए पीड़ा उठाई,
एक झटते में इस दान से वो हुई पराई ?

नाजो-मुहब्बत से बाप ने जिसे वर्षों पाला,
क्या एक रीत ने उसे खुद से अलग कर डाला ?

जिस घर में वह अब तक सिद्दत से खेली,
हुई पराई क्योंकि उसकी उठ गई डोली ?

क्या करुँ मन में हजम होती नही ये बात,
यह प्रश्न ऐसे छाया जैसे छाती काली रात |

कौन कहता है कन्याएँ नहीं हमारा वंश है,
वह भी सबकुछ है क्यो.कि वह भी हमारा ही अंश है ।

कन्या 'दान' करने के लिए नहीं है कोई वस्तु,
परायापन भी नहीं है संगत, ज्यों कह दिया एवमस्तु ।

Tuesday, January 10, 2012

मुस्कुराहट तेरी



कर देती है दूर हर मुश्किल मेरी,
बस एक मीठी सी  मुस्कुराहट  तेरी |

थक-हार कर संध्या जब घर आता हूँ,
बस देख कर तुझको मैं चहक जाता हूँ |

देखकर हर दिखावे से दूर तेरे नैनों को,
पंख मिल जाता है मेरे मन के मैनों को |

जब गोद में लेके तुम्हे खिलाता हूँ,
सच, मैं स्वयं स्वर्गीय आनंद पाता हूँ |

नन्हें हाथों से तेरा यूँ ऊँगली पकड़ना,
लगता है मुझे स्वयं इश्वर का जकड़ना |

आज हो गयी है तू छः मास की,
बाग़ खिलने लगा है मन में आस की |

पर  "परी" जब भी तू रोती है,
हृदय में एक पीड़ा-सी होती है |

देखकर मुझे बरबस खिलखिला देती हो,
पुलकित कर देती हो, झिलमिला देती हो |

कर देती है दूर हर मुश्किल मेरी,
बस एक मीठी सी  मुस्कुराहट  तेरी |

Sunday, January 8, 2012

धवल चाँदनी

उन्मुक्त से गगन में,
पूर्ण चन्द्र की रात में,
निखार पर है होती
ये धवल चाँदनी ।

मदमस्त सी करती,
धरनि का हर कोना,
समरुपता फैलाती
ये धवल चाँदनी ।

क्या नदिया, क्या सागर,
क्या जड़, क्या मानव,
हर एक को नहलाती
ये धवल चाँदनी ।

निछावर सी करती,
परहित में ही खुद को,
रातों को उज्ज्वल करती
ये धवल चाँदनी ।

प्रकृति की एक देन ये,
श्रृंगार ये निशा रानी का,
मन "दीप" का हर लेती
ये धवल चाँदनी ।

Saturday, December 31, 2011

****नए साल में****


जियेंगे नए साल में, जिन्दगी तुझे फिर से,
अश्कों को लेकर हम खुशियाँ उधार देंगे;
काँटों से भी रण गर होता है तो हो ले,

जीने का सलीका अब फिर सुधार देंगे |

बहुत हो गया, बहुत सहा, बस, अब नहीं है होता,
इस नैतिक गुलामी को तेरे मुँह पे मार देंगे;
माना तुम बलशील हो. अडिग हो मेरु जैसे,
पर तेरे हर चोट पे अब, हम भी वार देंगे |

सोच लिया नववर्ष को खुशनुमा है बनाना,
गत वर्ष का आडंब यहाँ अब उतार देंगे;
करेंगे वही जो हुकुम ह्रदय से मिलेगा,
खुद भी उबरेंगे और सबको उबार देंगे |

सभी को नव वर्ष की शुभकामनायें |

Friday, December 23, 2011

जीवन के मायने

जीवन के दो खाश रंग, समझो मेरे यार |
एक रंग है दोस्ती, दूजा रंग है प्यार |1|

जिंदगी एक संघर्ष है, कदम कदम पे सीख |
मेहनत से सबकुछ मिले, बिन श्रम मिले न भीख |2|

जीवन का है मूल-मंत्र, सत्य, अहिंसा, धीर |
शौर्य, शील और साहस, सबको करता वीर |3|

जीवन जीने का ढंग, जीवन ही सीखलाए |
कोई जीवन पूर्व से, सीख के न आए |4|

जीवन चलता जायेगा, ज्यों नदिया की धार |
बांधे से भी ना रुके, यही है जीवन सार |5|

मत नापो लम्बाई को, नापो तुम गहराई |
जीवन को पा जाओगे, थाह जहाँ पे आई |6|

जीवन में सब सीख लिया, सुन ओ मेरे भाय |
एक चीज़ ना आ पाया, कैसे जिया जाय |7|

Tuesday, December 20, 2011

धुंध

देश ये पूरा
है धुंध की चपेट में,
चारो ही तरफ
है इसका ही साया;
जीवन अस्त-व्यस्त
आमो-खाश भी परेशान,
रेल, सड़क, वायु तक
हर मार्ग है बाधित;
ठण्ड के जोर से
हर चेहरा कुम्भलाया |

चादर ये कोहरे की
है क्षणभंगुर,
चाँद दिनों के बाद ही
सब यथावत होगा,
बसंत राजा के साथ ही
ये धुंध भी छंटेगा |

ये धुंध तो मेहमान है
चंद दिनों या महीने की,
पर उस धुंध का क्या
जो देश पर है छाया;
भ्रष्टाचार रूपी धुंध का
प्रकोप है हर तरफ,
हर जगह, हर शख्श
है इसके आगोश में |

देश को तबाही की ओर
है इसने बढ़ा रखा,
कारण तो कई है
पर समाधान दिखता नहीं,
पता नहीं कब तक
रहेगा ये घना साया ?
न जाने कब तक
रहेंगे हम लपेटे में ?

इस धुंध से वो धुंध
कहीं ज्यादा विकट है,
इस धुंध से सिर्फ
कुछ सेवाएं है रुकी;
उस धुंध ने तो
है देश को रोक रखा;
देश की प्रगति को
उसने बाधित कर रखा,
अर्श के बदले देश आज
फर्श में है पड़ा |

Sunday, December 11, 2011

बाकि अभी नापना सारा आसमान है


१९ अन्य कवियों के साथ मेरा पहला काव्य संग्रह:
"टूटते सितारों की उड़ान"

अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है;
दो पग ही पथ में बढ़ा हूँ अभी,
आगे तो अभी पुरा जहाँ है |

हृदय में है ख्वाहिश, मन है सुदृढ़,
हाथों की लकीरों में भी कुछ निशान है :
अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

बड़ों का आशीष, अपनों का साथ,
लेकर चला, मुझे खुद पर गुमान है;
अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

मित्रों की दुआ, ईश्वर की दया,
मिल जाए फिर सब आसान है;
अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

हरेक पग रखना है बहुत संभल के,
उंचाई तक जाना सोपान दर सोपान है;
अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

जमींदोज होंगी हर विषम परिस्थितियाँ,
साहित्य की दुनिया से ये पहला मिलान है;
अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

Monday, November 28, 2011

तेरे शहर का क्या नाम है?

तेरे शहर का क्या नाम है?
क्या वहां दो पल का आराम है?
यहाँ तो हर शहर मदहोश है,
न किसी को चैन है, न ही कहीं होश है I 

क्या वहां लोग दिल खोल के हँसते हैं?
मानव के रूप में मानव ही बसते हैं?
यहाँ तो हर शहर के लोग तनाव ग्रस्त हैं,
औरों की बात नहीं, सब खुद से ही त्रस्त हैं I 

अपराध और घोटाले क्या वह कुछ कम है?
सरकारी तंत्रों में क्या थोडा बहुत दम है?
इधर का हाल-बेहाल, अनियमितता का जाल है,
नाचती है आम जनता, नेता ठोकते ताल है I 

अगर हो ऐसा शहर तो जरा मुझे भी बताओ,
दो पल के लिए सही, एक बार तो बुलाओ,
इधर तो शहरों की संख्या बढती ही जा रही है,
पर आत्मीयता जैसी चीज़े कहीं खोती ही जा रही है I 

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-प्रदीप