मात-पिता के चरणों में ही बसते तीरथ-धाम,
मात-पिता के चरण की माटी सौ चन्दन समान ।
मात-पिता की निःस्वार्थ सेवा, शत यज्ञ का फल दे,
मात-पिता पावन कर देते, गंगा का जल से ।
मात-पिता के स्नेह की छाया ताप में दे आराम,
मात-पिता के चरणों में ही बसते तीरथ-धाम ।
मात-पिता गुरु से भी बढ़कर, मात-पिता भगवान,
मात-पिता के संस्कारों से बनता कोई महान ।
मात-पिता की दया से मिलते हैं इस जग में नाम,
मात-पिता के चरणों में ही बसते तीरथ-धाम ।
मात-पिता के दरश से मिलते सुख, शक्ति प्रबल,
मात-पिता के हस्त जो सर पे सब कर्म लगे सरल ।
मात-पिता गुण-धाम हैं इनका क्या मैं करुँ गुणगान,
मात पिता के चरणों में ही बसते तीरथ-धाम ।
माता - पिता गुण - धाम है इनका क्या मैं करूँ गुणगान ,
ReplyDeleteसही है , उनके अहसानों का कर्ज कोई नहीं उतार सकता ,
बहुत अच्छी सोच दर्शाती रचना.... !!!!
धन्यवाद विभा रानी जी |
Deleteबहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत धन्यवाद माथुर साहब |
Deleteमाता पिता के प्रति ये प्यार और आदर बना रहे ...शुभ आशीष
ReplyDeletejin logon ne mata pita ko pooja hai main unhen salam karta hun
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