रात ये कितनी बाकि है,
पुछ रहा हूँ तारों से;
पवन सुखद बनाने को,
अब कहता हूँ बहारों से ।
चाँद को ही बुलाया है,
निद्रासन मंगवाया है;
परी मेरी अब सोयेगी,
भँवरों से लोरी गवाया है ।
डैडी की सुन्दर गुड़िया है,
मम्मी की जान की पुड़िया है;
क्यों रात को पहरा देती है,
ज्यों सबकी दादी बुढ़िया है ।
स्वयं पुष्पराज ही आयेंगे,
खुशबू मधुर फैलायेंगे;
निद्रादेवी संग चाकर लाकर,
मिल गोद में सब सुलायेंगे ।
परी मेरी न रोयेगी,
परी मेरी अब सोयेगी ।
bahut pyaari lori ki tarah kavita.bahut sundar bhaav.
ReplyDeleteAapka Dhanyawaad Rajesh ji...
Deleteसपनों में चन्दा के गाँव जाएगी , परियों के संग खेलेगी ...
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद |
Deleteवाह ...बहुत खूब ।
ReplyDeleteधन्यवाद आपका |
Deleteबहुत प्यारी कविता
ReplyDeleteपरी बेटी सी प्यारी और दुलारी भी
आभार अंजू जी |
Deleteकमाल की प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अमृता जी |
Deletebahut pyari lori..
ReplyDeletebachpan ki yaad aayee..
आपका धन्यवाद कविता जी |
Deleteबहुत ही खुबसूरत
ReplyDeleteऔर कोमल भावो की अभिवयक्ति......
आपका धन्यवाद सुषमा जी |
Deleteकोमल भावों से सजी सुंदर रचना ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeleteआभार पल्लवी जी | यूँही आती रहें ब्लॉग में |
Deleteबहूत- बहूत, बहूत हि प्यारी कविता है...
ReplyDeleteधन्यवाद रीना जी | ब्लॉग में आना जारी रखे |
Deleteआपका आभार शास्त्री जी |
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