कर देती है दूर हर मुश्किल मेरी,
बस एक मीठी सी मुस्कुराहट तेरी |
थक-हार कर संध्या जब घर आता हूँ,
बस देख कर तुझको मैं चहक जाता हूँ |
देखकर हर दिखावे से दूर तेरे नैनों को,
पंख मिल जाता है मेरे मन के मैनों को |
जब गोद में लेके तुम्हे खिलाता हूँ,
सच, मैं स्वयं स्वर्गीय आनंद पाता हूँ |
नन्हें हाथों से तेरा यूँ ऊँगली पकड़ना,
लगता है मुझे स्वयं इश्वर का जकड़ना |
आज हो गयी है तू छः मास की,
बाग़ खिलने लगा है मन में आस की |
पर "परी" जब भी तू रोती है,
हृदय में एक पीड़ा-सी होती है |
देखकर मुझे बरबस खिलखिला देती हो,
पुलकित कर देती हो, झिलमिला देती हो |
कर देती है दूर हर मुश्किल मेरी,
बस एक मीठी सी मुस्कुराहट तेरी |
आपका आभार शास्त्री जी ।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeletevikram7: हाय, टिप्पणी व्यथा बन गई ....
प्रदीप जी,पहली दफा आपके ब्लॉग पर आना हुआ.
ReplyDeleteआपकी कोमल भावों से ओतप्रोत प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी.अबोध बचपन में ईश्वरीय दर्शन सहज होते हैं.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
सुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबच्चों की मुस्कान ऐसी ही होती है ... अनमोल .. जीवन से भरपूर ...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteवात्सल्य से परिपूर्ण सुंदर रचना.इसे भी पढ़ें
ReplyDelete“नन्हीं सी आशा.”http://mitanigoth2.blogspot.com/
गहरे भाव लिए सुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteआशा