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Tuesday, January 10, 2012

मुस्कुराहट तेरी



कर देती है दूर हर मुश्किल मेरी,
बस एक मीठी सी  मुस्कुराहट  तेरी |

थक-हार कर संध्या जब घर आता हूँ,
बस देख कर तुझको मैं चहक जाता हूँ |

देखकर हर दिखावे से दूर तेरे नैनों को,
पंख मिल जाता है मेरे मन के मैनों को |

जब गोद में लेके तुम्हे खिलाता हूँ,
सच, मैं स्वयं स्वर्गीय आनंद पाता हूँ |

नन्हें हाथों से तेरा यूँ ऊँगली पकड़ना,
लगता है मुझे स्वयं इश्वर का जकड़ना |

आज हो गयी है तू छः मास की,
बाग़ खिलने लगा है मन में आस की |

पर  "परी" जब भी तू रोती है,
हृदय में एक पीड़ा-सी होती है |

देखकर मुझे बरबस खिलखिला देती हो,
पुलकित कर देती हो, झिलमिला देती हो |

कर देती है दूर हर मुश्किल मेरी,
बस एक मीठी सी  मुस्कुराहट  तेरी |

8 comments:

  1. आपका आभार शास्त्री जी ।

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  2. प्रदीप जी,पहली दफा आपके ब्लॉग पर आना हुआ.
    आपकी कोमल भावों से ओतप्रोत प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी.अबोध बचपन में ईश्वरीय दर्शन सहज होते हैं.

    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.

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  3. सुन्दर प्रस्तुति ||

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  4. बच्चों की मुस्कान ऐसी ही होती है ... अनमोल .. जीवन से भरपूर ...

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  5. सुन्दर प्रस्तुति

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  6. वात्सल्य से परिपूर्ण सुंदर रचना.इसे भी पढ़ें

    “नन्हीं सी आशा.”http://mitanigoth2.blogspot.com/

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  7. गहरे भाव लिए सुन्दर प्रस्तुति |
    आशा

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