वो एक ख्वाब था ।
पर जो भी था, लाजवाब था ।
चंद लम्हों को आया था,
मुस्कुराहट भी लाया था ।
अंधेरे में एक किरण बनकर,
मृत शरीर में जीवन बनकर ।
जीवन के अगणित सवालों के बीच,
कई फलसफों का वो जवाब था,
वो एक ख्वाब था ।
अश्रु को मोती में बदलता,
तमस को ज्योति में बदलता ।
अपनेपन का पाठ पढ़ाता,
जीवन के हर गुर सीखाता ।
सुखे हुए सुमनों के बीच,
खिलता हुआ वो गुलाब था ।
वो एक ख्वाब था ।
वो एक ख्वाब था ।
दो पल का ही सही, वो एक रुबाब था ।
वो एक ख्वाब था ।
ati sundar rachana.
ReplyDeletevikram7: महाशून्य से व्याह रचायें......
धन्यवाद विक्रम जी | आपका ब्लॉग भी घूम आया |
Deleteबहुत खूब!
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद माथुर सर |
Deleteबहुत सुन्दर ! हर आँख ऐसा ख्वाब देखे यही दुआ है !
ReplyDeleteआभार साधना जी |
Deleteवाह ! क्या सुन्दर ख्बाव था...
ReplyDeleteसपने सपने कब हुए अपने ...परन्तु देखने में क्या है...अवश्य देखने चाहिये....अन्यथा उन्हें पूरे करने की प्रेरणा कैसे मिलेगी...
आपका श्याम गुप्त जी |
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteख्याबो को ख्याब ही रहने दो
तभी वो हसीन लगेंगे ......
आपका धन्यवाद अनु जी |
Deleteबहुत बहुत आभार शास्त्री जी |
ReplyDeleteवाह !! एक अलग अंदाज़ कि रचना ......बहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी.. बहुत दिनों बाद आना हुआ आपका ..
Deleteख्वाब और ख्याल - दोनों अच्छे लगे
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार |
Deletewah behtarin rachana...
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद रीना जी अफ्ली बार मेरे ब्लॉग में आने के लिए | इसी तरह आते रहे और अपनी राय से अवगत करते रहें |
Deletebahut sundar likha hai. kuchh khwaab hote hi eyse hain bhale hi pal bhar ke liye aayen dil me bas jaate hain.
ReplyDeleteAapka dhanyawaad Rajesh Kumari ji...
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