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Tuesday, January 17, 2012

वो एक ख्वाब था

वो एक ख्वाब था ।
पर जो भी था, लाजवाब था ।

चंद लम्हों को आया था,
मुस्कुराहट भी लाया था ।
अंधेरे में एक किरण बनकर,
मृत शरीर में जीवन बनकर ।
जीवन के अगणित सवालों के बीच,
कई फलसफों का वो जवाब था,
वो एक ख्वाब था ।

अश्रु को मोती में बदलता,
तमस को ज्योति में बदलता ।
अपनेपन का पाठ पढ़ाता,
जीवन के हर गुर सीखाता ।
सुखे हुए सुमनों के बीच,
खिलता हुआ वो गुलाब था ।
वो एक ख्वाब था ।

वो एक ख्वाब था ।
दो पल का ही सही, वो एक रुबाब था ।
वो एक ख्वाब था ।

19 comments:

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    1. धन्यवाद विक्रम जी | आपका ब्लॉग भी घूम आया |

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    1. धन्यवाद माथुर सर |

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  3. बहुत सुन्दर ! हर आँख ऐसा ख्वाब देखे यही दुआ है !

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  4. वाह ! क्या सुन्दर ख्बाव था...

    सपने सपने कब हुए अपने ...परन्तु देखने में क्या है...अवश्य देखने चाहिये....अन्यथा उन्हें पूरे करने की प्रेरणा कैसे मिलेगी...

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    1. आपका श्याम गुप्त जी |

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  5. बहुत खूब
    ख्याबो को ख्याब ही रहने दो
    तभी वो हसीन लगेंगे ......

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    1. आपका धन्यवाद अनु जी |

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  6. बहुत बहुत आभार शास्त्री जी |

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  7. वाह !! एक अलग अंदाज़ कि रचना ......बहुत खूब

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    1. धन्यवाद संजय जी.. बहुत दिनों बाद आना हुआ आपका ..

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  8. ख्वाब और ख्याल - दोनों अच्छे लगे

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    1. आपका बहुत बहुत आभार |

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  9. Replies
    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद रीना जी अफ्ली बार मेरे ब्लॉग में आने के लिए | इसी तरह आते रहे और अपनी राय से अवगत करते रहें |

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  10. bahut sundar likha hai. kuchh khwaab hote hi eyse hain bhale hi pal bhar ke liye aayen dil me bas jaate hain.

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