पूर्ण चन्द्र की रात में,
निखार पर है होती
ये धवल चाँदनी ।
मदमस्त सी करती,
धरनि का हर कोना,
समरुपता फैलाती
ये धवल चाँदनी ।
क्या नदिया, क्या सागर,
क्या जड़, क्या मानव,
हर एक को नहलाती
ये धवल चाँदनी ।
निछावर सी करती,
परहित में ही खुद को,
रातों को उज्ज्वल करती
ये धवल चाँदनी ।
प्रकृति की एक देन ये,
श्रृंगार ये निशा रानी का,
मन "दीप" का हर लेती
ये धवल चाँदनी ।
बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत उम्दा लिखा है आपने!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
क्या बात है...
ReplyDeleteचांदनी पर अच्छी कविता
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.com
बहुत खूब ......
ReplyDeletebadhiyaa
ReplyDeleteधवल चांदनी का गुण ही है सबको प्रसन्न रखना और हम मानव चांदनी धवल न रह पाए, वह हर उपाए कर रहे हैं।
ReplyDeletebahut badiya rachna..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया....
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद । इसी तरह स्नेह बनाए रखे और ब्लॉग पे आते रहें ।
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