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Sunday, January 8, 2012

धवल चाँदनी

उन्मुक्त से गगन में,
पूर्ण चन्द्र की रात में,
निखार पर है होती
ये धवल चाँदनी ।

मदमस्त सी करती,
धरनि का हर कोना,
समरुपता फैलाती
ये धवल चाँदनी ।

क्या नदिया, क्या सागर,
क्या जड़, क्या मानव,
हर एक को नहलाती
ये धवल चाँदनी ।

निछावर सी करती,
परहित में ही खुद को,
रातों को उज्ज्वल करती
ये धवल चाँदनी ।

प्रकृति की एक देन ये,
श्रृंगार ये निशा रानी का,
मन "दीप" का हर लेती
ये धवल चाँदनी ।

11 comments:

  1. बहुत उम्दा लिखा है आपने!
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  2. चांदनी पर अच्छी कविता
    kalamdaan.blogspot.com

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  3. धवल चांदनी का गुण ही है सबको प्रसन्न रखना और हम मानव चांदनी धवल न रह पाए, वह हर उपाए कर रहे हैं।

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  4. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद । इसी तरह स्नेह बनाए रखे और ब्लॉग पे आते रहें ।

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