बड़ी ही शबनमी-सी है ये रात,
क्यों न मचले हृदय के जज्बात,
आशा में देवी निद्रा से हसीन मुलाकात,
आँखों ही आँखों में ज्यों हो जाए बात ।
करवटों में बीते ये रात की गहराईयाँ,
एक अकेले हम और जाने कितनी परछाईयाँ,
पल-पल का सफर दुष्कर उसपे ये तनहाईयाँ,
आगोश में ले लूँ आकाश, भर लूँ अँगड़ाईयाँ ।
सरगमीं ये कैसी दिल में कैसी ये हलचल,
धड़कनों की रफ्तार यूँ बढ़ती है पल-पल,
आकस्मिक अस्थिरता पर मन है अविचल,
शबनमी ये रात है या कोई प्यारी गज़ल ।
आकस्मिक अस्थिरता पर मन अविचल रह जाए ,
ReplyDeleteतभी शबनमी रात में कोई प्यारी गजल बन पाती है.... :):)
धन्यवाद आपका |
Deleteबहुत सुंदर भावपूर्ण अहसासों अच्छी रचना,..क्या बाते है प्रदीप जी
ReplyDeleteWELCOME TO NEW POST --26 जनवरी आया है....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....
आपका धन्यवाद धीरेन्द्र जी |
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
गणतन्त्रदिवस की पूर्ववेला पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
आपका बहुत बहुत आभार शास्त्री जी |
Deleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteआभार निशा जी |
Deleteशबनमी रात और लेखनी में बिखरते जज़्बात.....वाह बहुत खूब
ReplyDeleteआभार अनु जी |
Deleteजज्बातो की वो सुन्दर रात शबनमी लगी......
ReplyDeleteधन्यवाद महेश्वरी जी |
Deleteबहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद माथुर साहब |
Deleteबहुत सुदर। मेरी कामना है कि आप सृजनरत रहें । धन्यवाद ।
ReplyDeleteधन्यवाद महाशय ब्लॉग में आने के लिए |
Deleteबहूत सुंदर
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ती ..
रीना जी आभार |
Deleteअधिकाधिक सुन्दर है कविता,
ReplyDeleteलिखी हुई यह सहज भाव से।
उतर गई यह मेसे दिल में,
इसे पढ़ा है बहुत चाव से।
कृपया इसे भी पढ़े-
क्या यही गणतंत्र है
दिनेश जी हार्दिक आभार |
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