मेरे साथी:-

Tuesday, February 7, 2012

आस

खामोश हैं निगाहें,
जुबानों पे हैं ताले,
घिरे हैं नकाबपोशों से,
दिखते नहीं उजाले,
घबराये से हैं,
कोशिश है संभलने की,
छंट जाये ये बदल,
हट जाये ये जाले |

मुश्किलें भी हैं,
पांवों में हैं छाले,
पर मस्ती में ही हैं,
हम मतवाले,
दंभ नसीब का,
टूटकर बिखरेगा ही,
हिम्मत नहीं खोना,
चाहे निकल जाये दीवाले |

करना नहीं खुद को,
किस्मत के हवाले,
साहस की ही घुट्टी,
पियेंगे भर प्याले,
फलक तक होगी,
अपनी भी उड़ान,
आस का दामन,
न छोड़े हम जियाले | 

14 comments:

  1. बहुत सुंदर भाव संयोजन से सुसजित सकारात्मक प्रस्तुति....

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  2. दंभ नसीब का ,टूटकर विखरेगा ही.... !
    करना नहीं खुद को ,किस्मत के हवाले.... !

    हिम्मते मर्दा ,मद्दे खुदा , को सच्च साबीत करती रचना.... !!

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  3. honsla badhaati hui rachna bahut achchi.

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  4. प्रोत्साहित करती रचना ..
    kalamdaan.blogspot.in

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  5. बहुत प्रेरक और सुंदर अभिव्यक्ति..

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  6. सुंदर , प्रेरक एवं उत्साहवर्धक रचना है ...

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  7. बहुत अच्छा लिखा आपने,बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति
    NEW POST.... ...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...

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  8. उत्साहवर्धक लेखनी

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  9. समाज के घुटन की अभिव्‍यक्ति है इन पंक्तियों में..

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  10. सोचने पर मजबूर करने वाली रचना ...बधाई !

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