आ गए गर आँखों में आंसूं पश्चाताप के,
धुल गए वो बेरंग से गलतियों के जो छाप थे;
भूल तो हर इंसानों से ही हो जाता है "दीप",
धो देते हैं आंसूं ये हर दाग को उस पाप के |
आत्म-ग्लानि स्वयं में ही एक बड़ा दण्ड है,
गलतियों से सीख लेना पश्चाताप का खण्ड है,
अंतर्मन स्वीकार ले गलती बात बने तब "दीप",
पश्चाताप पे क्षमा है मिलती गलती चाहे प्रचन्ड है |
पश्चाताप करने से आत्म संतोष मिलता है,गलती क्षम्य हो जाती है
ReplyDeleteMY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
बहुत ही गहरे भावो की अभिवयक्ति......
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteसादर
सुन्दर रचना |बधाई
ReplyDeleteआशा
पश्चाताप के आंसू सच ही सब गलतियों को धो देते हैं
ReplyDeleteइन आंसुओं से आगे की दिशा निर्धारित होती है! अच्छी रचना!
ReplyDeleteसुंदर रचना...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteअहसास ना होते तो हम इंसान ना होते.
ReplyDeleteआसुओं की अलग भाषा है,पश्चाताप के आसूं
पवित्रतम आंसू है,सुंदर अभिव्यक्ति.
उम्दा लेखनी
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