दे दो एक सदा कि अब भी आ जाऊंगा,
लौट के वापस मैं तेरे पास ही आऊंगा;
जख्म जो दिए थे तुने, उन्हें भूल चूका हूँ,
बिना नए जख्म लिए रह कैसे पाऊंगा |
बेवफाई से भी तेरी मुझे मोहब्बत सी है,
चमक तेरी आँखों का फिर वापस लाऊंगा ;
उलाहने भी तेरी लगती हैं एक अदा दिलनशीं,
उन अदाओं को भूलकर कैसे रह पाऊंगा |
बहुत सार्थक प्रस्तुति!
ReplyDeleteवाह,,,, बहुत सुंदर सार्थक प्रस्तुति,,
ReplyDeleteMY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: विचार,,,,
वाह ...बहुत खूब ।
ReplyDeleteज़ख्म जो दिए थे तुने ,उन्हें भूल चुका हूँ
ReplyDeleteबिना नए ज़ख्म लिए रह कैसे पाउँगा ....
आपकी उदारता अच्छी लगी और भूल जाने की आदत भी .... :)
वाह!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रदीप जी...
अनु