मेरे साथी:-

Wednesday, June 13, 2012

दे दो एक सदा

दे दो एक सदा कि अब भी आ जाऊंगा,
लौट के वापस मैं तेरे पास ही आऊंगा;
जख्म जो दिए थे तुने, उन्हें भूल चूका हूँ,
बिना नए जख्म लिए रह कैसे पाऊंगा |

बेवफाई से भी तेरी मुझे मोहब्बत सी है,
चमक तेरी आँखों का फिर वापस लाऊंगा ;
उलाहने भी तेरी लगती हैं एक अदा दिलनशीं, 
उन अदाओं को भूलकर कैसे रह पाऊंगा |

5 comments:

  1. वाह,,,, बहुत सुंदर सार्थक प्रस्तुति,,

    MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: विचार,,,,

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  2. वाह ...बहुत खूब ।

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  3. ज़ख्म जो दिए थे तुने ,उन्हें भूल चुका हूँ
    बिना नए ज़ख्म लिए रह कैसे पाउँगा ....
    आपकी उदारता अच्छी लगी और भूल जाने की आदत भी .... :)

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  4. वाह!!!!!!!!!!!!

    बहुत सुन्दर प्रदीप जी...

    अनु

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