मेरे साथी:-

Friday, April 27, 2012

अनंत की खोज


अनंत की खोज में भटकता ही रहा,
पंछी अकेला बस तरसता ही रहा,
दर-ब-दर, यहाँ वहाँ,
और न जाने कहाँ-कहाँ,
जो ढूंढा वो मिला ही नहीं,
जो मिला उसकी तो चाह ही नहीं थी |
अनंत तो अनंत है,
मिल जाये तो फिर अनंत कहाँ ?

4 comments:

  1. सुंदर प्रस्तुति अच्छी रचना....
    काफी इन्तजार के बाद आपकी रचना पढ़ने को मिली,..प्रदीप जी,...

    RESENT POST काव्यान्जलि ...: गजल.....

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार धीरेन्द्र जी | हाँ थोडा व्यस्त था इसलिए पोस्ट नहीं कर पा रहा था |

      Delete
  2. धन्यवाद सुषमा जी |

    ReplyDelete
  3. वाह...
    बहुत गूढ़ अर्थ लिए है आपकी चंद पंक्तियाँ......

    बहुत खूब.

    ReplyDelete

कृपया अपनी टिप्पणी दें और उचित राय दें | आपके हर एक शब्द के लिए तहेदिल से धन्यवाद |
यहाँ भी पधारें:-"काव्य का संसार"

हिंदी में लिखिए:

संपर्क करें:-->

E-mail Id:
pradip_kumar110@yahoo.com

Mobile number:
09006757417

धन्यवाद ज्ञापन

"मेरा काव्य-पिटारा" ब्लॉग में आयें और मेरी कविताओं को पढ़ें |

आपसे निवेदन है कि जो भी आपकी इच्छा हो आप टिप्पणी के रूप में बतायें |

यह बताएं कि आपको मेरी कवितायेँ कैसी लगी और अगर आपको कोई त्रुटी नजर आती है तो वो भी अवश्य बतायें |

आपकी कोई भी राय मेरे लिए महत्वपूर्ण होगा |

मेरे ब्लॉग पे आने के लिए आपका धन्यवाद |

-प्रदीप