मेरे साथी:-

Tuesday, January 24, 2012

शबनमी ये रात

बड़ी ही शबनमी-सी है ये रात,
क्यों न मचले हृदय के जज्बात,
आशा में देवी निद्रा से हसीन मुलाकात,
आँखों ही आँखों में ज्यों हो जाए बात ।

करवटों में बीते ये रात की गहराईयाँ,
एक अकेले हम और जाने कितनी परछाईयाँ,
पल-पल का सफर दुष्कर उसपे ये तनहाईयाँ,
आगोश में ले लूँ आकाश, भर लूँ अँगड़ाईयाँ ।

सरगमीं ये कैसी दिल में कैसी ये हलचल,
धड़कनों की रफ्तार यूँ बढ़ती है पल-पल,
आकस्मिक अस्थिरता पर मन है अविचल,
शबनमी ये रात है या कोई प्यारी गज़ल ।

ये झुकी हुई पलकें

ये झुकी हुई पलकें,
न जाने क्या कहती है;
लबों की तरह खामोश है,
शायद उनमे कुछ राज है ।

कहती है शायद
रहने दो राज को राज,
आवरण इतनी जल्द न हटाओ,
शायद कुछ खोने का डर भी है इनमे,
कभी लगता कहती है पास आओ ।

ये झुकी हुई पलकें,
हैं सागर को समेटे,
रंजोगम बयाँ करती,
पर फिर भी झुकी रहती ।

हया की चादर में लिपटी,
स्याह की धार में बँधी,
न जाने कितने भेद छुपाये,
तेरी ये झुकी हुई पलकें ।

Monday, January 23, 2012

शुभकामना

आज नेताजी जयंती के साथ-साथ मेरे अनुज रघु का भी जन्मदिन है । नेताजी को शत-शत नमन और अनुज को शुभकामना स्वरूप ये छोटी-सी रचना ।

'ज'ग के उजियारे बनो,
'न'मन जिसे खुद सफलता करे;
'म'न में सबके मूर्ति हो जिसकी,
'दि'ल से सब जिसकी पूजा करे;
'न'त कर दे जो हर दुश्मन को,
'मु'श्किल में भी साहसी बन;
'बा'त से सबको जीत ले हरदम,
'र'घु तू बिल्कुल वैसा बन;
'क'ल्पना नहीं ये दुआ है मेरी,
'हो' न हो तू वैसा बन ।

(सभी पंक्तियों का पहला अक्षर मिलाने पर-"जनम दिन मुबारक हो" ।)

Saturday, January 21, 2012

दिल से कवि हूँ

संसार के पटल में, मैं एक छवि हूँ,
पेशे से अभियंता और दिल से कवि हूँ |

भावना के उदगार को, व्यक्त ही तो करता हूँ,
हृदय के जज्बात को, प्रकट ही तो करता हूँ;

बस एक "दीप" हूँ, कब कहा रवि हूँ ;
पेशे से अभियंता और दिल से कवि हूँ |

उन्मुक्त साहित्याकाश में, बस घूमा करता हूँ,
काव्य पढता-रचता हूँ और झूमा करता हूँ;

कोशिश होती लिखने की, शब्दों का बढई हूँ,
पेशे से अभियंता और दिल से कवि हूँ |

समाज की सत्यता को वर्णित किया करता हूँ,
सही शब्द सागर से, चयनित किया करता हूँ ;

बस एक माध्यम हूँ, काम करता थवई हूँ,
पेशे से अभियंता और दिल से कवि हूँ |

Thursday, January 19, 2012

परी मेरी अब सोयेगी


रात ये कितनी बाकि है,
पुछ रहा हूँ तारों से;
पवन सुखद बनाने को,
अब कहता हूँ बहारों से ।

चाँद को ही बुलाया है,
निद्रासन मंगवाया है;
परी मेरी अब सोयेगी,
भँवरों से लोरी गवाया है ।

डैडी की सुन्दर गुड़िया है,
मम्मी की जान की पुड़िया है;
क्यों रात को पहरा देती है,
ज्यों सबकी दादी बुढ़िया है ।

स्वयं पुष्पराज ही आयेंगे,
खुशबू मधुर फैलायेंगे;
निद्रादेवी संग चाकर लाकर,
मिल गोद में सब सुलायेंगे ।

परी मेरी न रोयेगी,
परी मेरी अब सोयेगी ।

Tuesday, January 17, 2012

वो एक ख्वाब था

वो एक ख्वाब था ।
पर जो भी था, लाजवाब था ।

चंद लम्हों को आया था,
मुस्कुराहट भी लाया था ।
अंधेरे में एक किरण बनकर,
मृत शरीर में जीवन बनकर ।
जीवन के अगणित सवालों के बीच,
कई फलसफों का वो जवाब था,
वो एक ख्वाब था ।

अश्रु को मोती में बदलता,
तमस को ज्योति में बदलता ।
अपनेपन का पाठ पढ़ाता,
जीवन के हर गुर सीखाता ।
सुखे हुए सुमनों के बीच,
खिलता हुआ वो गुलाब था ।
वो एक ख्वाब था ।

वो एक ख्वाब था ।
दो पल का ही सही, वो एक रुबाब था ।
वो एक ख्वाब था ।

Thursday, January 12, 2012

कन्यादान

मतलब क्या है इस कन्यादान का ?
क्या ये सीढ़ी भर है नए जीवन निर्माण का ?

या सचमुच दान ही इसका अर्थ है,
या समाज में हो रहा अर्थ का अनर्थ है ?

दान तो होता है एक भौतिक सामान का,
कन्या जीवन्त मूल है इस सृष्टि महान का ।

नौ मास तक माँ ने जिसके लिए पीड़ा उठाई,
एक झटते में इस दान से वो हुई पराई ?

नाजो-मुहब्बत से बाप ने जिसे वर्षों पाला,
क्या एक रीत ने उसे खुद से अलग कर डाला ?

जिस घर में वह अब तक सिद्दत से खेली,
हुई पराई क्योंकि उसकी उठ गई डोली ?

क्या करुँ मन में हजम होती नही ये बात,
यह प्रश्न ऐसे छाया जैसे छाती काली रात |

कौन कहता है कन्याएँ नहीं हमारा वंश है,
वह भी सबकुछ है क्यो.कि वह भी हमारा ही अंश है ।

कन्या 'दान' करने के लिए नहीं है कोई वस्तु,
परायापन भी नहीं है संगत, ज्यों कह दिया एवमस्तु ।

Tuesday, January 10, 2012

मुस्कुराहट तेरी



कर देती है दूर हर मुश्किल मेरी,
बस एक मीठी सी  मुस्कुराहट  तेरी |

थक-हार कर संध्या जब घर आता हूँ,
बस देख कर तुझको मैं चहक जाता हूँ |

देखकर हर दिखावे से दूर तेरे नैनों को,
पंख मिल जाता है मेरे मन के मैनों को |

जब गोद में लेके तुम्हे खिलाता हूँ,
सच, मैं स्वयं स्वर्गीय आनंद पाता हूँ |

नन्हें हाथों से तेरा यूँ ऊँगली पकड़ना,
लगता है मुझे स्वयं इश्वर का जकड़ना |

आज हो गयी है तू छः मास की,
बाग़ खिलने लगा है मन में आस की |

पर  "परी" जब भी तू रोती है,
हृदय में एक पीड़ा-सी होती है |

देखकर मुझे बरबस खिलखिला देती हो,
पुलकित कर देती हो, झिलमिला देती हो |

कर देती है दूर हर मुश्किल मेरी,
बस एक मीठी सी  मुस्कुराहट  तेरी |

Sunday, January 8, 2012

धवल चाँदनी

उन्मुक्त से गगन में,
पूर्ण चन्द्र की रात में,
निखार पर है होती
ये धवल चाँदनी ।

मदमस्त सी करती,
धरनि का हर कोना,
समरुपता फैलाती
ये धवल चाँदनी ।

क्या नदिया, क्या सागर,
क्या जड़, क्या मानव,
हर एक को नहलाती
ये धवल चाँदनी ।

निछावर सी करती,
परहित में ही खुद को,
रातों को उज्ज्वल करती
ये धवल चाँदनी ।

प्रकृति की एक देन ये,
श्रृंगार ये निशा रानी का,
मन "दीप" का हर लेती
ये धवल चाँदनी ।

Saturday, December 31, 2011

****नए साल में****


जियेंगे नए साल में, जिन्दगी तुझे फिर से,
अश्कों को लेकर हम खुशियाँ उधार देंगे;
काँटों से भी रण गर होता है तो हो ले,

जीने का सलीका अब फिर सुधार देंगे |

बहुत हो गया, बहुत सहा, बस, अब नहीं है होता,
इस नैतिक गुलामी को तेरे मुँह पे मार देंगे;
माना तुम बलशील हो. अडिग हो मेरु जैसे,
पर तेरे हर चोट पे अब, हम भी वार देंगे |

सोच लिया नववर्ष को खुशनुमा है बनाना,
गत वर्ष का आडंब यहाँ अब उतार देंगे;
करेंगे वही जो हुकुम ह्रदय से मिलेगा,
खुद भी उबरेंगे और सबको उबार देंगे |

सभी को नव वर्ष की शुभकामनायें |

Friday, December 23, 2011

जीवन के मायने

जीवन के दो खाश रंग, समझो मेरे यार |
एक रंग है दोस्ती, दूजा रंग है प्यार |1|

जिंदगी एक संघर्ष है, कदम कदम पे सीख |
मेहनत से सबकुछ मिले, बिन श्रम मिले न भीख |2|

जीवन का है मूल-मंत्र, सत्य, अहिंसा, धीर |
शौर्य, शील और साहस, सबको करता वीर |3|

जीवन जीने का ढंग, जीवन ही सीखलाए |
कोई जीवन पूर्व से, सीख के न आए |4|

जीवन चलता जायेगा, ज्यों नदिया की धार |
बांधे से भी ना रुके, यही है जीवन सार |5|

मत नापो लम्बाई को, नापो तुम गहराई |
जीवन को पा जाओगे, थाह जहाँ पे आई |6|

जीवन में सब सीख लिया, सुन ओ मेरे भाय |
एक चीज़ ना आ पाया, कैसे जिया जाय |7|

Tuesday, December 20, 2011

धुंध

देश ये पूरा
है धुंध की चपेट में,
चारो ही तरफ
है इसका ही साया;
जीवन अस्त-व्यस्त
आमो-खाश भी परेशान,
रेल, सड़क, वायु तक
हर मार्ग है बाधित;
ठण्ड के जोर से
हर चेहरा कुम्भलाया |

चादर ये कोहरे की
है क्षणभंगुर,
चाँद दिनों के बाद ही
सब यथावत होगा,
बसंत राजा के साथ ही
ये धुंध भी छंटेगा |

ये धुंध तो मेहमान है
चंद दिनों या महीने की,
पर उस धुंध का क्या
जो देश पर है छाया;
भ्रष्टाचार रूपी धुंध का
प्रकोप है हर तरफ,
हर जगह, हर शख्श
है इसके आगोश में |

देश को तबाही की ओर
है इसने बढ़ा रखा,
कारण तो कई है
पर समाधान दिखता नहीं,
पता नहीं कब तक
रहेगा ये घना साया ?
न जाने कब तक
रहेंगे हम लपेटे में ?

इस धुंध से वो धुंध
कहीं ज्यादा विकट है,
इस धुंध से सिर्फ
कुछ सेवाएं है रुकी;
उस धुंध ने तो
है देश को रोक रखा;
देश की प्रगति को
उसने बाधित कर रखा,
अर्श के बदले देश आज
फर्श में है पड़ा |

Sunday, December 11, 2011

बाकि अभी नापना सारा आसमान है


१९ अन्य कवियों के साथ मेरा पहला काव्य संग्रह:
"टूटते सितारों की उड़ान"

अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है;
दो पग ही पथ में बढ़ा हूँ अभी,
आगे तो अभी पुरा जहाँ है |

हृदय में है ख्वाहिश, मन है सुदृढ़,
हाथों की लकीरों में भी कुछ निशान है :
अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

बड़ों का आशीष, अपनों का साथ,
लेकर चला, मुझे खुद पर गुमान है;
अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

मित्रों की दुआ, ईश्वर की दया,
मिल जाए फिर सब आसान है;
अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

हरेक पग रखना है बहुत संभल के,
उंचाई तक जाना सोपान दर सोपान है;
अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

जमींदोज होंगी हर विषम परिस्थितियाँ,
साहित्य की दुनिया से ये पहला मिलान है;
अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

Monday, November 28, 2011

तेरे शहर का क्या नाम है?

तेरे शहर का क्या नाम है?
क्या वहां दो पल का आराम है?
यहाँ तो हर शहर मदहोश है,
न किसी को चैन है, न ही कहीं होश है I 

क्या वहां लोग दिल खोल के हँसते हैं?
मानव के रूप में मानव ही बसते हैं?
यहाँ तो हर शहर के लोग तनाव ग्रस्त हैं,
औरों की बात नहीं, सब खुद से ही त्रस्त हैं I 

अपराध और घोटाले क्या वह कुछ कम है?
सरकारी तंत्रों में क्या थोडा बहुत दम है?
इधर का हाल-बेहाल, अनियमितता का जाल है,
नाचती है आम जनता, नेता ठोकते ताल है I 

अगर हो ऐसा शहर तो जरा मुझे भी बताओ,
दो पल के लिए सही, एक बार तो बुलाओ,
इधर तो शहरों की संख्या बढती ही जा रही है,
पर आत्मीयता जैसी चीज़े कहीं खोती ही जा रही है I 

Monday, November 21, 2011

हस्ती हमारी


आशियाँ हमने बना रखा है तूफानों में,
और तूफानों को समेट रखा है अरमानो में,
हस्ती अब तो इतनी है हम दीवानों में,
अँधेरे में भी तीर लगते हैं निशानों में |

आशाएं हैं भरी हमारी उड़ानों में,
हौसलों की उठान है आसमानों में,
साहस है भरा, जो बिकते नहीं दुकानों में,
अक्सर तौलतें हैं खुद को पैमानों में |

देखेंगे कितना है दम इन हुक्मरानों में,
दिखायेंगे कितना है जोश हम जवानों में,
क्या रखा है अब उन पुराने फसानों में,
वो कर दिखायेंगे जो नहीं हुआ जमानों में |

Wednesday, October 26, 2011

आओ एक दीप जलायें

आओ एक दीप जलायें,
मन के अँधियारे में,
जीवन के गलियारे में,
मन-मंदिर रोशन करायें,
आओ एक दीप जलायें |

अज्ञान को भगाये दूर,
ज्ञान फैलायें हम भरपूर,
सबको सच्ची राह दिखायें,
आओ एक दीप जलायें |

खुशियाँ ही बस खुशियाँ बाँटे,
दहशत के कोई पल न काटे,
सिद्दत से दीवाली मनायें,
आऔ एक दीप जलायें |

Wednesday, October 12, 2011

"पेड़ लगाओ, देश बचाओ !!"


"पेड़ लगाओ, देश बचाओ !!"

बहुत पुराना है नारा ;

हकीकतन इससे सबने

पर कर लिया किनारा |



वो औद्योगीकरण के नाम पे,

जंगल के जंगल उड़ाते हैं;

पेड़ काट के नई इमारतों का,

अधिकार दिए जाते हैं |



नीति कुछ ऐसी है-

"जंगल हटाओ, विकास रचाओ !" 

पर कहते हैं जनता से,

"पेड़ लगाओ, देश बचाओ !!"

Tuesday, October 11, 2011

आबो हवा

नहीं रहा अब
दुनिया पे यकीन,
भरोसे जैसी कोई
अब चीज कम है ;
बदल गये लोग
बदल गई मानसिकता,
बदल गई सोच
खतम हुई नैतिकता ;
हमने ही सब बदला
और कहते हैं आज
कि अच्छी नहीं रही
अब आबो हवा |

Wednesday, September 28, 2011

रावण दहन


खुद ही बनाते हैं, खुद ही जलाते हैं,
यूँ कहें कि हम अपनी भड़ास मिटाते हैं |

समाज में रावण फैले कई रूप में यारों,
पर उनसे तो कभी न पार हम पाते हैं |

रावण दहन के रूप में एक रोष हम जताते हैं,
समाज के रावण का खुन्नस पुतले पे दिखाते हैं |

उसी रावण की तरह होता है हर एक रावण,
पुतले की तरह हर रावण को हम ही उपजाते हैं |

हर भ्रष्टाचारी, व्यभिचारी एक रावण ही तो है,
यहाँ तक कि हम सब अपने अंदर एक रावण छुपाते हैं |

इन सब से मुक्ति शायद बस की अब बात नहीं,
इसलिए रावण दहन कर अपनी भड़ास हम मिटाते हैं |

Saturday, September 24, 2011

सूखे नैन


नहीं आते आंसू,
सुख गया सागर,
इतना बहा कि अब
इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |

याद है मुझको
तेरा वो रूठना,
दो बुँदे बहाके
तुझे मना थी लेती,
झर गई वो बूंदें
इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |

आंसू नहीं मोती हैं
तुम्ही तो थे कहते,
एक भी ये मोती
तुम बिखरने नहीं देते,
खो गए वो मोती
इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |

वर्दी पहने जब निकले थे
दी मुस्कान के साथ विदाई,
आँखों में था पानी
दिल रुलाता था जुदाई,
सुख गया वो पानी,
इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |

तब भी बहुत बहा था
जब ये खबर थी आई
देश रक्षा में तुने
अपनी जान है लुटाई,
पर अब नहीं बहते,
इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |

जानती हूँ मैं
तुम नहीं हो आने वाले,
पर ये दिल ही नहीं मानता
तेरा इंतज़ार है करता,
करवटें बदल रोते-रोते,
इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |

Monday, September 19, 2011

दो पल की खुशियाँ

खुशियों भरा जीवन अब मिलता है कहाँ,
चैन-सुकून हर पल अब रहता है कहाँ,
जिंदगी हर वक़्त लिए एक छड़ी होती है,
इसलिए दो पल की खुशियाँ भी बड़ी होती है |

संघर्ष ही जीवन का दूसरा नाम हो गया है,
कठिनाइयों का आना तो अब आम हो गया है,
किस्मत हर वक़्त मुह बाये खड़ी होती है,
इसलिए दो पल की खुशियाँ भी बड़ी होती है |

भागते ही हम रहते हैं श्वांस भी न लेते,
जीवन को सिद्दत से हम जी भी न लेते,
हम सबको हर वक़्त लगी हड़बड़ी होती होती है,
इसलिए दो पल की खुशियाँ भी बड़ी होती है |

कल क्या होगा किसी ने देखा भी नहीं,
निरंतर खुशियों की कोई रेखा भी नहीं,
जिंदगी भी तो बस घड़ी दो घड़ी होती है,
इसलिए दो पल की खुशियाँ भी बड़ी होती है |

Saturday, September 17, 2011

जेबकतरी सरकार


बढ़ती कीमत देख के मच गया हाहाकार,
जनता की जेबें काटे ये जेबकतरी सरकार |

मोटरसाईकिल को सँभालना हो गया अब दुश्वार
कीमतें पेट्रोल की चली आसमान के पार |

बीस कमाके खरच पचासा होने के आसार,
महँगाई करती जाती है यहाँ वार पे वार |

त्राहिमाम कर जनता रोती दिल में जले अंगार,
सपने देखे बंद होने के महँगाई के द्वार |

महंगाई के रोध में सब मांगेंगे अधिकार,
दो-चार दिन चीख के मानेंगे फिर हार |

तेल पिलाये पानी अब कुछ कहना निराधार,
मन मसोस के रह जाना ही शायद जीवन सार |

लुटे हुए से लोग और धुँधला दिखता ये संसार,
त्योहारों के मौसम में अब मिले हैं ये उपहार |

देख न पाती दु:ख जनता के उल्टे देती मार,
जेबकतरी सरकार है ये तो जेबकतरी सरकार |

Wednesday, September 14, 2011

हिंदी हिन्दुस्तान है

हिंदी मेरी जान है,
भारत की पहचान है ;
भारत भाल की बिंदी है,
निज भाषा अभिमान है |

खत्री से बच्चन तक ने,
सींचा जिसे वो प्राण है;
संस्कृत के वृक्ष से निकली,
अद्भुत भाषा महान है |

देश को जोड़े एक सूत्र में,
मधुर-सी एक तान है;
है इसका समृद्ध-साहित्य,
हिन्द की ये शान है |

हिंदी ही पूजा है सबकी,
हिंदी ही अजान है;
होली, दीवाली हिंदी है,
हिंदी ही रमजान है |

देश को विकसित कर सकती,
हिंदी गुणों की खान है;
हिंदी अहित है देश अहित,
हिंदी हिन्दुस्तान है |
हिंदी हिन्दुस्तान है |

Tuesday, September 13, 2011

राष्ट्रभाषा हिंदी


हिंदी बस एक मात्र नहीं यह मातृभाषा है;
गर्व है मुझको हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा  है |

बिन निज भाषा उन्नति के, राष्ट्र का विकास नहीं;
परदेशी भाषा के बल पे, हो सकता कुछ खाश नहीं |

राष्ट्रभाषा जब हिंदी है, फिर अंग्रेजियत छोड़ दो;
हिन्दुस्तान में रहते हो, तो दोहरी नियत छोड़ दो |

हिंदी को अधिकार मिले, हर कोने में प्रयोग हो,
संसद में, हर राज्यों में, परदेश में भी उपयोग हो |

हिंदी जन-जन की भाषा, जन-जन तक इसका प्रचार हो;
भारत के हर क्षेत्र में पहुंचे, ऐसे नेक विचार हो |

भारत का हर एक वासी, हिंदी का सम्मान करे;
हर कोई सीखे, हर कोई बोले, नहीं कोई अपमान करे |

हिंदी को बना भारत की बिंदी, इसे सर्वत्र चमकाना है;
हर निजी, सरकारी काज में, हिंदी ही अपनाना है |

बुरा नहीं हर भाषा जानो, पर हिंदी ही सर्वोपरि हो;
हो ज्ञान भले हर भाषा का, पर निज भाषा सर्वोपरि हो |

Saturday, September 10, 2011

वो लोकगीत

न जाने कहाँ
खो गई
मिट्टी की वो
असली खुशबू
गुम हुए
आधुनिकता में
मीठे-सुरीले
वो लोकगीत |

कर्ण-फाड़ू
संगीत ही रहा
वो असली रंगत
नहीं रही
मूल भारत की
याद दिलाती
कहाँ गए
वो लोकगीत |

एफ. एम., पोड ने
निगल लिया
फिल्मी गानों ने
ग्रास लिया
अब तो कोई
सुनता भी नहीं
न गाता कोई
वो लोकगीत |

Thursday, September 8, 2011

आतंक का अंत

क्या होगा कभी,
इस आतंक का अंत ?
क्या निज़ात पायेंगे,
देर से ही सही या तुरंत ?

आये दिन हो जाता है विस्फोट,
कई जिंदगियों का अस्तित्व उखड जाता है,
हो जाते हैं अनाथ कई मासूम,
और न जाने कितनो का सुहाग उजड़ जाता है |

अस्पतालों का भी तब विहंगम दृश्य होता है,
किसी का हाथ तो किसी का पैर धड़ से अदृश्य होता है |

विस्फोट की आवाज तो क्षणिक होती है,
पर कईयों के कानों में वो जिंदगी भर गूंजती है |

नेता इस में भी राजनीति से नहीं चुकते,
सरकार के नुमाइंदें भी समाधान नहीं, बस आश्वाशन देते हैं |

कब इस दहशत के माहौल से उबरेंगे ?
कब हमारी जिंदगियों की कीमत होगी और वो सुरक्षित होगी ?
कब तक दिल दहलाने वाले ये दृश्य हम देखते रहेंगे ?
कब तक अपनों को इस कदर हम खोते रहेंगे ?

क्या होगा कभी,
इस आतंक का अंत ?
क्या निज़ात पायेंगे,
देर से ही सही या तुरंत ?

Monday, September 5, 2011

तस्मेव श्री गुरुवे नम:

गुरु की महिमा क्या कहूँ, कह न पाऊँ मित्र |
जीवन को महकाते हैं, तन को जैसे इत्र ||

सीखलाते हैं पाठ ये, जीने का भी ढंग |
बतलाते जीवन का मर्म, कितने होते रंग ||

ईश्वर से भी बढ़कर है, गुरु की महिमा जान |
गुरु के बिन जीवन दुष्कर, अर्थहीन ये मान ||

मन को देते ज्ञान ये, तन को जैसे प्राण |
शुद्धि करते अंतर की, दे शिक्षा का दान ||

आदि काल से शिक्षक ही, करते विकास संपूर्ण |
बिन गुरु के होता है, मानव ही अपूर्ण ||

(शिक्षक दिवस पर सभी को शुभकामनाएँ | तथा उन सभी ब्लॉगरों को प्रणाम जिनसे कुछ भी सीखा है |)

Friday, September 2, 2011

जज़्बात-ए-ईश्क

कुछ सुन लो या कुछ सुना दो मुझको,
गुमसुम रहकर न यूँ सजा दो मुझको,
जान से भी प्यारी है तेरी ये मुस्कुराहट,
मुस्कुरा कर थोड़ा सा हँसा दो मुझको |

आँखों से ही कुछ सीखा दो मुझको,
थोड़ी सी खुशी ही दिखा दो मुझको,
तेरी खुशी से बढ़कर कुछ भी नहीं है,
अपनो की सूची में लिखा दो मुझको |

पलकें उठा के एक नज़र जरा दो मुझको,
ज़न्नत के दरश अब करा दो मुझको,
तेरी जीत में ही छुपी है मेरे जीतने की खुशी,
नैनों की लड़ाई में थोड़ा हरा दो मुझको |

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धन्यवाद ज्ञापन

"मेरा काव्य-पिटारा" ब्लॉग में आयें और मेरी कविताओं को पढ़ें |

आपसे निवेदन है कि जो भी आपकी इच्छा हो आप टिप्पणी के रूप में बतायें |

यह बताएं कि आपको मेरी कवितायेँ कैसी लगी और अगर आपको कोई त्रुटी नजर आती है तो वो भी अवश्य बतायें |

आपकी कोई भी राय मेरे लिए महत्वपूर्ण होगा |

मेरे ब्लॉग पे आने के लिए आपका धन्यवाद |

-प्रदीप