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Monday, September 19, 2011

दो पल की खुशियाँ

खुशियों भरा जीवन अब मिलता है कहाँ,
चैन-सुकून हर पल अब रहता है कहाँ,
जिंदगी हर वक़्त लिए एक छड़ी होती है,
इसलिए दो पल की खुशियाँ भी बड़ी होती है |

संघर्ष ही जीवन का दूसरा नाम हो गया है,
कठिनाइयों का आना तो अब आम हो गया है,
किस्मत हर वक़्त मुह बाये खड़ी होती है,
इसलिए दो पल की खुशियाँ भी बड़ी होती है |

भागते ही हम रहते हैं श्वांस भी न लेते,
जीवन को सिद्दत से हम जी भी न लेते,
हम सबको हर वक़्त लगी हड़बड़ी होती होती है,
इसलिए दो पल की खुशियाँ भी बड़ी होती है |

कल क्या होगा किसी ने देखा भी नहीं,
निरंतर खुशियों की कोई रेखा भी नहीं,
जिंदगी भी तो बस घड़ी दो घड़ी होती है,
इसलिए दो पल की खुशियाँ भी बड़ी होती है |

14 comments:

  1. बेहतरीन...क्या खूब रचना है आपकी...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  2. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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  3. बहुत खूबसूरत रचना।

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  4. इंजीनियर साहब!
    बहुत बढ़िया गीत रचा है आपने!

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  5. नीरज जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद |

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  6. संजय जी आपका आभार |

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  7. आपका धन्यवाद वन्दना जी |

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  8. शास्त्री जी आपका धन्यवाद् |

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  9. --इन हाँ जी हाँ जी टिप्पणियों से न भरमाइये...

    -"जीवन हर वक्त लिए एक छड़ी होती है"... ....जीवन के साथ 'लिए होता है' आएगा ....जीवन पुल्लिंग है और क्रिया-होती है- जीवन के लिए है ..यह लिंग भ्रंश है ...
    ---अतः अब तुकांत सम(स्त्रीलिंग-होती है) करने के लिए 'जीवन' के स्थान पर 'ज़िंदगी' कर दीजिए .लीजिए ..लिंग -भ्रंश ठीक होगया ..
    ---"ज़िंदगी हर वक्त लिए एक छड़ी होती है "
    --इस तरह कविता को बार बार स्वयं पढ़ें , व्याकरण देखें , सुधार आता जायगा ...

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  10. आप किस्मत से ज़्यादा कविता के सहारे रहें ,अच्छा रहेगा !
    वास्तव में हम दो पल की खुशियों को जीवन भर की ख़ुशी में तब्दील कर सकते हैं !

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  11. धन्यवाद् मनीष जी

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  12. धन्यवाद् संतोष जी.

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  13. आपका आभार श्याम गुप्त जी, मैंने सुधार कर लिया. इसी तरह अपनी कृपा बनाये रखें.

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