अनुपम, अक्षय होता है ये काव्य का संसार,
अखिल जगत में अकथ, अकाय और निराकार |
साहित्य की यह विधा अनूठी, पद्य भी कहाय,
हृदय से उत्थित, सरस शब्दों में उकेरा जाय |
भावों की ये मंजूषा, मञ्जीर, मधुर मानिक,
मुतक्का साहित्य का दृढ, मनन करो तनिक |
अमरसरित सी पावन, जनश्रुत ये अपार,
अद्भूत, असम, अनुरक्त है ये काव्य का संसार |
(शब्दार्थ: मञ्जीर=मनोहर, मुतक्का=खम्भा,
अमरसरित=गंगा, जनश्रुत=प्रसिद्द, अनुरक्त=प्रेम युक्त )
आपके ब्लाग काव्य का संसार की लिंक प्रदान करने का कष्ट करे निम्न मेल पर धन्यवाद्
ReplyDeleteneelkamalkosir@gmail.com
बहुत ही सुन्दर पढ़ कर अच्छा लगा......
गणेश चतुर्थी की आपको हार्दिक शुभकामनायें
आप भी आये यहाँ कभी कभी
MITRA-MADHUR
MADHUR VAANI
BINDAAS_BAATEN
बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteमाँ सरस्वती आपकी लेखनी में विराजमान है।
गणेशोत्सव की शुभकामनाएँ!
bahut sundar sahityik prastuti.hindi ke shabd bhandar me vriddhi karan eke liye aabhar pradeep ji.
ReplyDeleteफांसी और वैधानिक स्थिति
आपका धन्यवाद नीलकमल जी | आपको लिंक भेज दिया गया है |
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार शास्त्री जी | अनुनय बनाये रखें |
ReplyDeleteआपका भी बहुत-2 धन्यवाद शालिनी जी |
ReplyDeleteThanks
ReplyDeletepradeep ji
kavita bahut sundar hai
mai to commplex feel
kar raha hu ki aapke link ko accept
kar itni sundar kavita
ke aas paas kuch likh bhi paunga ki nahi?
Jai shriram kahkar link accept kar liya hai
aage iswar jane.
Sundar kabita hetu punah badhai.
इस तरह से मत कहिये शुक्ला जी | इतना भी अच्छा नहीं लिखता मैं की आप कॉम्प्लेक्स फील करो |
ReplyDeleteSUNDAR RACHNA-AAPKA NAYA KAVYA SANSAAR BHI ACHCHHA LAG RAHA HAI
ReplyDeleteGHOTOO