मेरे साथी:-

Wednesday, October 17, 2012

हे माँ दुर्गा !


प्रथम दिवस माँ शैलपुत्री, कष्ट मेरी हर लेना,
मानव जीवन को मेरे, साकार यूंही कर देना |

द्वितीय दिवस हे ब्रह्मचारिणी, विद्या का फल मांगू,
जीवन हो उज्ज्वल सबका, उज्ज्वलता तुझसे चाहूँ |

तृतीय दिवस माँ चंद्रघंटा, मुझको बलशाली करना,
हर मुश्किल से लड़ पाऊँ माँ, शक्तिशाली करना |

चतुर्थ दिवस हे कुष्मांडा, जगत की रक्षा करना,
भक्तों का अपने हे माता, तू सुरक्षा करना |

पंचम दिवस स्कन्द-माता, जगत की माता तू,
मातृत्व तू बरसाना माता, सब कुछ की ज्ञाता तू |

षष्ठी दिवस माँ कात्यायिनी, दुष्टों की तू नाशक,
तू ही तो सर्वत्र व्याप्त माँ, तू ही सबकी शासक |

सप्तम दिवस माँ कालरात्रि, पापी तुझसे भागे,
सेवक पे कृपा करना, जो ना पूजे वो अभागे |

अष्टम दिवस माँ महागौरी, श्वेतांबर धारिणी,
अंधकार को हरना माता, तू ही तो तारिणी |

नवम दिवस हे सिद्धिदात्री, कमलासन तू विराजे,
शंख, सुदर्शन, गदा, कमल, माँ तुझपे ही तो साजे |

नौ रूपों में हे माँ दुर्गा, कृपा सदैव बरसाना,
पूजूँ तुझको, ध्याऊँ तुझको, सत्य मार्ग दिखलाना |

Thursday, October 11, 2012

ओ कलम !!

ओ कलम तू लिखना वादों को,
मेरे हर बुलंद इरादों को;
मेरे ऊर की हर बातों को,
हर उठते हुए जज़्बातों को |

मेरे भावों की भाषा बन,
अभिव्यक्ति की अभिलाषा बन;
तू सत्य समाज का उद्धृत कर,
मेरे सपनों को विस्तृत कर |

मेरे शब्दों के पंख लगा,
हर खोट पे जाके दंश लगा;
असत्य न स्वीकार कर,
कुरीतियों पे वार कर |

न व्यर्थ कहीं गुणगान कर,
जो है जायज़ तू मान कर;
गंदगी कभी न माफ कर,
लिख-लिख के उनको साफ कर |

हर ओर ईर्ष्या व्याप्त है,
मानवता बस समाप्त है;
नैतिकता की तू अलख जगा,
बुराइयों पर अग्नि लगा |

ओ कलम न डर न डरने दे,
हुंकार सत्य का भरने दे;
काँटों में भी मुझे राही बना,
लहू का मेरे तू स्याही बना |

पर सत्य मार्ग न छोड़ तू,
नाता हरेक से जोड़ तू;
अच्छा-बुरा जो होता लिख,
तू ध्यान दिला, सब जाए दिख |

ओ कलम तू प्रेरणास्रोत बन,
संदेशों से ओत-प्रोत बन;
लिखा तेरा जो पढे बढ़े,
सोपान उचित हरवक्त चढ़े |

ओ कलम  मेरा हथियार बन,
मेरी सबसे निज यार बन;
अन्तर्मन की तू दूत बन,
मेरु-सा तू मजबूत बन |

जो ना कह पाऊँ मैं मुख से,
तू लिखना बांध उसे तुक से;
साहित्य पटल पर उडती जा,
ओ कलम मेरे शब्द बुनती जा |

Saturday, October 6, 2012

वो औरत

देखा उस दिन उस घर में
शादी का जश्न था;
आँगन था भरा पूरा
हो रहा हल्दी का रस्म था,
ठहाकों की गूंज थी 
हँसी मज़ाक कमाल था, 
समां देखकर खुशियों का 
"दीप" भी खुशहाल था | 

तभी अचानक नजर उठी 
छत पर जाकर अटक गई, 
एक काया खड़ी-खड़ी 
सब दूर से ही निहार रही, 
होठों पे मुस्कान तो थी 
नैनों में पर बस दर्द था, 
आँखों के कोर नम थे 
हृदय में एक आह थी; 
बुझी-बुझी सी खड़ी थी वो 
बातें उसकी रसहीन थी, 
खुशियों के मौसम में भी 
वो औरत बस गमगीन थी | 

श्वेत वस्त्र में लिपटी हुई 
सूने-सूने हाथ थे, 
न आभूषण, न मंगल-सूत्र, 
सूनी-सूनी मांग थी, 
चेहरे में कोई चमक नहीं 
मायूसी मुख मण्डल में थी; 
नजरें तो हर रसम में थी 
पर हृदय से एकल में थी | 
उस घर की एक सदस्य थी वो, 
वो लड़के की भोजाई थी, 
था पति जिसका बड़ा दूर गया 
बस मौत की खबर आई थी; 
दूर वो इतना हो गया था 
तारों में वो खो गया था | 

घरवालों का हुक्म था उसको 
दूर ही रहना, पास न आना, 
समाज का उसपे रोक था 
सबके बीच नहीं था जाना; 
शुभ कार्य में छाया उसकी 
पड़ना अस्वीकार था, 
शादी जैसे मंगल काम में 
ना जाने का अधिकार था | 

खुशियाँ मनाना वर्जित था, 
रस्मों में उसका निषेध था; 
झूठे नियमों में वो बंधी 
न जाने क्या वो भेद था; 
जुर्म था उसका इतना बस 
कि वो औरत एक विधवा थी, 
जब था पति वो भाभी थी, 
बहू भी थी या चाची थी, 
पति नहीं तो कुछ न थी 
वो विधवा थी बस विधवा थी | 

एक औरत का अस्तित्व क्या बस, 
पुरुषों पर ही यूं निर्भर है ? 
कभी किसी की बेटी है, 
कभी किसी की पत्नी है, 
कभी किसी की बहू है वो, 
तो कभी किसी की माता है; 
उसकी अपनी पहचान कहाँ, 
वो क्यों अब भी अधीन है ? 
इस सभ्य समाज के सभी नियम 
औरत को करे पराधीन है; 
वो औरत क्यों यूँ लगा-सी थी ? 
वो औरत क्यों मजबूर थी ? 
उसपर क्यों वो बंदिश थी ? 
वो खुद से ही क्यों दूर थी ?

Tuesday, October 2, 2012

करुण पुकार


रे मैया मेरी छाया भी ना तुझे सुहाती है,
भैया से तो तू तो हरदम लाड़ दिखाती है;
सूखा मुझको देकर मेवा उसे खिलाती है,
मैया मुझसे भी न क्यों तू प्यार जताती है |

क्या गलती ये मेरी कन्या काया पाई हूँ ?
पर मैया मैं भी तो तेरे कोख से आई हूँ;
तू भी तो एक कन्या है क्यों इसे भूलाती है,
मैया मुझसे भी न क्यों तू प्यार जताती है |

दादा-दादी, बापू को तो जरा न भाती मैं,
पर तूने तो जन्मा क्यों फिर याद न आती मैं?
तू खुद ही जाके क्यों न सबको समझाती है?
मैया मुझसे भी न क्यों तू प्यार जताती है |

गर्भ में थी तब ही सबने मुझको मरवाना था,
ईश कृपा थी धरती पर जो मुझको आना था,
भैया जैसे ही प्रकृति मुझको भी बनाती है,
मैया मुझसे भी न क्यों तू प्यार जताती है |

नहीं अलग मैं भैया से हूँ, नहीं हूँ कमतर मैया,
बाला-बाल में भेद नहीं है अब तो मानो मैया;
कुल रोशन कर सकती अवसर क्यों न दिलाती है ?
मैया मुझसे भी न क्यों तू प्यार जताती है |

धरती से उस आसमान तक मैं भी तो उड़ सकती माँ,
भैया जो-जो कर सकता है मैं भी तो कर सकती माँ,
क्यों भैया को खुशियाँ देती, मुझे रुलाती है,
मैया मुझसे भी न क्यों तू प्यार जताती है |

खुद तुम समझो मैया और जग को भी तुम बताओ,
दूर करो हर भेद को, सबके मन का मैल मिटाओ,
सब माएं ये समझ के कसम क्यों न खाती है ?
मैया मुझसे भी न क्यों तू प्यार जताती है |

Saturday, September 29, 2012

अनाम रिश्ते

कुछ रिश्ते
धरा पर
ऐसे भी हैं,
दुष्कर होता जिनको
परिभाषित करना;
सरल नहीं जिनको
नाम दे पाना,
फिर भी वो होते
गहराइयों में दिल के,
जीवन में समाए,
भावनाओं से जुड़े,
अन्तर्मन में व्याप्त,
औरों की समझ से
बिलकुल परे,
खाश रिश्ते;
दुनिया के भीड़ से
सर्वथा अलग,
नहीं होता जिनमे
बाह्य आडंबर,
मोहताज नहीं होते
संपर्क व संवाद के,
समग्र सरस, सुखद
सानिध्य हृदय के,
हर व्यथा
हर खुशी में
उतने ही शरीक,
अदृश्य डोर के
बंधन में बंधे,
नाम की लोलुपता से
सुदूर और परे,
कशमकश से भरे
अनाम रिश्ते |

Thursday, September 27, 2012

शहीदे आजम रहा पुकार

सरदार भगत सिंह
(28 सितंबर 1907 – 23 मार्च 1931)
("शहीदे आजम" सरदार भगत सिंह के जन्म दिवस पर श्रद्धांजलि स्वरूप पेश है एक रचना )

जागो देश के वीर वासियों,
सुनो रहा कोई ललकार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

सुप्त पड़े क्यों उठो, बढ़ो,
चलो लिए जलती मशाल;
कहाँ खो गई जोश, उमंगें,
कहाँ गया लहू का उबाल ?

फिर दिखलाओ वही जुनून,
आज वक़्त की है दरकार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

पराधीनता नहीं पसंद थी,
आज़ादी को जान दी हमने;
भारत माँ के लिए लड़े हम,
आन, बान और शान दी हमने |

आज देश फिर घिरा कष्ट में,
भरो दम, कर दो हुंकार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

कई कुरीति, कई समस्या,
से देखो है देश घिरा;
अपने ही अपनों के दुश्मन,
नैतिक स्तर भी खूब गिरा |

ऋण चुकाओ देश का पहले,
तभी जश्न हो तभी त्योहार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

भ्रष्टाचार, महंगाई से है,
रो रहा ये देश बड़ा;
अपनों ने ही खूब रुलाया,
देख रहा तू खड़ा-खड़ा ?

पहचानों हर दुश्मन को अब,
छुपे हुए जो हैं गद्दार,
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

लोकतन्त्र अब नोटतंत्र है,
बिक रहा है आज जमीर;
देश भी कहीं बिक न जाए,
जागो रंक हो या अमीर |

चूर करो हर शिला मार्ग का,
तोड़ दो उपजी हर दीवार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

आज गुलामी खुद से ही है,
आज तोड़ना अपना दंभ;
आज अपनों से देश बचाना,
आज करो नया आरंभ |

आज देश हित लहू बहेगा,
आज उठो, हो जाओ तैयार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

-"दीप"

Wednesday, September 26, 2012

♥♥♥♥*चाहो मुझे इतना*♥♥♥♥


चाहो मुझे इतना कि पागल ही हो जाए हम,
हम टूट कर भी याद सिर्फ तुझे करे सनम |

रतजगों में भी मेरे अब बस तेरा ही नाम हो,
खुशियों में मेरे बस अब तेरा ही एहसान हो |

तेरे मेरे दरमियान न हो किसी दूरी का एहसास,
जब तक जियूं रहे तू मेरे दिल के आस-पास |

एक-दूजे के भूल को भी खुले दिल से माफ करें,
आओ, कि चाहत से अपने अब इंसाफ करें |

खुने-जिगर से लिख दूँ तेरी धडकनों में अपना नाम,
मोहब्बतों से भरा अपना ये रिश्ता है अनाम |

स्याही की जगह कलम में अपने लहू मैं भर दूँ,
ख्वाबों को भी अपने आज आ, तेरे नाम मैं कर दूँ |

चाहो मुझे इतना कि मैं खुद को ही भूल जाऊँ,
चाहो मुझे इतना कि तुझ बिन एक पल न रह पाऊँ |

चाहो मुझे इतना कि उसकी तपिश में जला दो,
चाहो मुझे इतना कि मेरी हर दुनिया भुला दो |

चाहो मुझे इतना कि ये पल यहीं पे रुक जाए,
चाहो मुझे इतना कि ये आसमान भी झुक जाए |

चाहो मुझे इतना कि हर तरफ तुम ही नजर आओ,
चाहो मुझे इतना कि तुम आज मुझमे समा जाओ |

चाहो मुझे इतना कि भूलूँ जो भी कोई दुःख हो,
कि गेसूओं तले तेरी कोई जन्नत -सा सुख हो |

चाहो मुझे चाहो तुम बस, मैं भी तुम्हें चाहूँ,
चाहत में तेरी मैं अब बस सब कुछ ही भुलाऊँ |

-♥♥"दीप"♥♥

Monday, September 24, 2012

बढ़ने चला हूँ

आँखों में लेके एक नूर कोई,
सपनों की दुनिया सच करने चला हूँ;

अपनों के सपनों को दिल में लेकर,

दुनिया में अपना हक करने चला हूँ |
मैं बढ़ने चला हूँ |

राहों में बाधक हैं, मुश्किलें भी हैं,
पर खुद ही हर मुश्किल से लड़ने चला हूँ,
मार्ग में सबको बस खुशियाँ परोसता,
खुशियाँ लुटाता मैं उड़ने चला हूँ |
मैं बढ़ने चला हूँ |

सपनों को अपने है साकार करना,
भागती इस दुनिया में दौड़ने चला हूँ;
पर्वत, पहाड़ या मिले कोई चट्टान,
हौसले का हथौड़ा ले तोड़ने चला हूँ |
मैं बढ़ने चला हूँ |

मौका परस्त दौर में एक जज्बा लेकर,
इंसानियत की खोज अब करने चला हूँ;
अँधियारों में अपना ही "दीप" लेकर,
हवाओं का रुख भी मोड़ने चला हूँ |
मैं बढ़ने चला हूँ |

Friday, September 21, 2012

पढ़ना था मुझे

पढ़ना था मुझे पर पढ़ न पाई,
सपनों को अपने सच कर ना पाई;
रह गए अधूरे हर अरमान मेरे,
बदनसीबी की लकीर मेरे माथे पे छाई |

खेलने की उम्र में कमाना है पड़ा, 
झाड़ू-पोंछा हाथों से लगाना है पड़ा; 
घर-बाहर कर काम हुआ है गुज़ारा, 
इच्छाओं को अपनी खुद जलाना है पड़ा | 

एक अनाथ ने कब कभी नसीब है पाया, 
किताबों की जगह हाथों झाड़ू है आया; 
सरकारी वादे तो दफ्तरों तक हैं बस, 
कष्टों में भी अब मुसकुराना है आया | 

नियति मेरी यूं ही दर-दर है भटकना, 
झाड़ू-पोंछा, बर्तन अब मजबूरी है करना; 
हालात मेरे शायद न सुधरने हैं वाले, 
अच्छे रहन-सहन और किताबों को तरसना |

Monday, September 17, 2012

बुलाया करो

दिलो दिमाग में
यूं छाया करो,
पास कभी आओ
या बुलाया करो;
वफ़ा में जाँ
हम भी दे देंगे,
बस ठेस न दो
न रुलाया करो |

अतिशय प्रेम
बस बरसाया करो,
नैनों में अपने
छुपाया करो;
दूर कर देंगे
हर शिकवा-गिला
एक अवसर तो दो
दिल में बसाया करो |

मन को न
भरमाया करो,
प्रेमगीत नित
गुनगुनाया करो;
छू कर देखो
लफ़्ज़ों को मेरे,
धड़कनों को मेरी
तुम गाया करो |

Thursday, September 13, 2012

जमाना हर कदम पे लेने इम्तिहान बैठा है

दर्द-ए-दिल समझ के कोई अनजान बैठा है ,
लूटने वाला यहाँ बनके महान बैठा है ,
लाश है कि हिलने का नाम नहीं ले रही ,
और जनाजों के इंतजार में शमशान बैठा है |

नाराज सा देखो ये सारा जहान बैठा है,
मिट्टी का माधो ले सबकी कमान बैठा है,
दिख रहा मुकद्दर बस खामोशियों भरा,
बादलों के इंतज़ार में आसमान बैठा है |

ज़मीरों का भी कोई खोला दुकान बैठा है,
इंसानों के कत्ले-आम को इंसान बैठा है,
चंद सिक्कों से तौले जा रहे हैं लोग अब,
सबको बनाने वाला खुद ऊपर हैरान बैठा है |

गमगीन-सा आज का हर नौजवान बैठा है,
छोड़ कर पंक्षी आज अपनी उड़ान बैठा है,
बड़ा ही रहस्यमय-सा है आज का मंजर,
उत्साह का सागर ही खुद परेशान बैठा है |

भक्त सत्य का आज खाली मकान बैठा है,
भ्रष्ट नाली का कीड़ा बना तुर्रम खान बैठा है,
जीवित लाशों केधर पे शहँशाह-सा बैठा,
जमाना हर कदम पे लेने इम्तिहान बैठा है |
जमाना हर कदम पे लेने इम्तिहान बैठा है |

Tuesday, September 11, 2012

एक काम कर दूँ

सोचता हूँ मैं एक काम कर दूँ,

ये रूत ये हवा तेरे नाम कर दूँ,

हाजिर कर दूँ चाँद-तारों के तेरे कदमों में,
जुगनुओं को भी तेरा कद्रदान कर दूँ |

लाखों फूलों से तेरा हर राह भर दूँ,
ले बहारों का शमा तेरे बांह भर दूँ,
ख़ुशबुओं को समेट कर उड़ेल दूँ तुझमे,
सौंदर्य से हर रिश्ता तेरा निर्वाह कर दूँ |

जो न हुआ कभी भी वो आज कर दूँ,
तेरे लिए इस जग को भी नाराज कर दूँ,
जमाने भर की मुस्कान बांध दूँ तेरे आँचल में,
तेरे लिए नए संसार का आगाज़ कर दूँ |

ख्वाबों की दुनिया में तेरा द्वार कर दूँ,
खुशियाँ तेरी अब एक से हज़ार कर दूँ,
एक काम कर दूँ, जहां रोशन कर दूँ,
इज़हार-ए-चाह आज सरे बाज़ार कर दूँ |

Sunday, September 9, 2012

तुम्ही प्रेरणा हो

ध्याता हूँ तुझे तो,
कविता बन पड़ती है,
मानस निर्झर से,
अनायास बह पड़ती है;
तुम ही मेरा काव्य हो,
तुम्ही प्रेरणा हो |

निरूप से अक्षर भी,
अलौकिक शब्द बन पड़ते हैं,
निरर्थ वाक्यांश भी,
मोहक छंद सज पड़ते हैं;
तुम ही मेरी कविता हो,
तुम्ही प्रेरणा हो |

तेरी बस छवि मात्र,
अतिकान्त भाव दे जाती है,
अवघट सी बेरा में भी,
सरस उद्गार दे जाती है;
तुम ही मेरी रचना हो,
तुम्ही प्रेरणा हो |

एक तेरा स्मरण नीक,
कवि हृदय जगा जाता है,
बिम्ब तेरा अमंद वेग का,
मन में संचार करा जाता है;
तुम ही मेरी संवेदना हो,
तुम्ही प्रेरणा हो |

Wednesday, September 5, 2012

गुरु की महिमा

गुरु की महिमा क्या कहूँ,

शब्दों से न कह पाते हैं;
इत्र ज्यों तन को महकाए,
ये जीवन महका जाते हैं|

जीने का ढंग बतलाते हैं,
पाठ कई सिखला जाते हैं;
अर्थ जीवन का भी बताते,
रंग कितने हैं समझा जाते हैं |

पथ-प्रदर्शक बन जीवन में,
सत्य मार्ग दिखला जाते हैं;
लक्ष्य तक कैसे हम पहुँचे ये,
शिक्षक ही सब बतलाते हैं |

तन में जैसे प्राण हैं होते,
ज्ञान त्यों मन को दे जाते हैं;
शिक्षा का ये दान हैं देते,
अंतर शुद्धि कर जाते हैं |

आदि काल से शिक्षकगण ही,
पूर्ण विकास करवा जाते हैं;
मानव वो अपूर्ण ही होता,
गुरु के बिन जो रह जाते हैं |

ईश्वर से भी बढ़कर होता,
गुरु की महिमा बतलाते हैं;
गुरु के बिन जीवन दुष्कर है,
अर्थहीन है, समझाते हैं |

सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ |

Tuesday, September 4, 2012

उलझनें


जब भी तेरी याद आती है,
लबों पे मुस्कान थिरक जाती है,
पता नहीं वो कौन सी डोर है,
जो मुझे तुझसे बांध जाती है |


नजाने अनजाने होकर भी,
क्यों लगते हो मुझे अपनों से ?
बातें तेरी एहसास दिलाती,
रिश्ता हो अपना ज्यों जन्मों से |

पल भर का साथ भी तेरा,
दिल मे खुशियाँ बस भरता है,
पास तेरे बस आ जाने को,
ये मन क्यों तड़पा करता है ?

ये कैसा दिल का रिश्ता है,
न जाने क्या अंजाम है ?
हर वक्त क्यों याद आते हो,
इस रिश्ते का क्या नाम है ?

क्या उत्तर है मेरे प्रश्नो का,
क्यों इस कदर ये उलझने हैं ?
द्वंद में हैं अपने ही अंतर के,
क्या कभी ये प्रश्न सुलझने हैं ?

Sunday, September 2, 2012

पानी की बूंद (बाल कविता)

पानी की बूंद-बूंद अमोल है,
इसका न कोई मोल है ;
जीवन देती है इसकी हर बूंद,
यही तो सबके बोल है |

जब बारिश बन गिनती,
मन आह्लादित करती है;
तर कर देती है हर कोना,
खुशी दिल में भर देती है |

प्यास बुझाती हर एक की,
जिंदगी बनती अनेक की;
इसके बिना सब सूखा-सुखा,
बातें हैं ये बड़े नेक की |

कसम हमे अब खानी है,
हर एक बूंद बचानी है;
व्यर्थ नहीं जाने देना है,
अमृत ही यह पानी है |

Saturday, August 11, 2012

चंद पंक्तियाँ


जुगनुओं से रोशन ये जहाँ होता नहीं यारों,
वो आज भी भर नींद कभी सोता नहीं यारों,
दो जून की रोटी मुकम्मल जिन्हें नसीब नहीं होती,
सरकारी वादों से उनका कुछ होता नहीं यारों |

कोई डेढ़ सौ की कमाई पे भी कभी रोता नहीं यारों,
कोई करोड़ों में खेलकर भी खुश होता नहीं यारों,
कोई किस्मत के लकीरों का सब खेल है समझता,
कोई हार हार के भी आस कभी खोता नहीं यारों |

खून से कभी धब्बों को कोई धोता नहीं यारों,
खाने को आम, बबूल कोई कभी बोटा नहीं यारों,
खुशनसीबी नहीं की यूँही जिए जा रहे "दीप",
लक्ष्य के बिना मतलब कुछ भी होता नहीं यारों |

Friday, August 10, 2012

***आ जाओ गोपाल***


आ जाओ गोपाल
फिर हर लो हर कष्ट धरा का
बनके तारणहार;
असुरों के आतंक से मुक्ति 
दे दो खेवनहार;
फिर बाँटो खुशियाँ हर घर घर
बनके नन्द के लाल |
आ जाओ गोपाल |

कंस यहाँ हर रूप में बैठे
कलुषित भ्रष्टाचार;
चक्र सुदर्शन चला दो फिर से
नाशो हर विकार;
मधुर मुरलिया पुनः सुनाओ
हे ग्वालों के ग्वाल |
आ जाओ गोपाल |

भूखों का फिर भूख हरो तुम
दो माखन उपहार;
द्रौपदियों की लाज बचाओ
सबके पालनहार;
दंभ हरो हर दुष्टों का फिर
हे कृष्णा बृजलाल |
आ जाओ गोपाल |

Sunday, August 5, 2012

बिन दोस्ती

क्या होता शमा ये क्या बताऊँ यारों,
भगवान न होते और ये बंदगी न होती;
दोस्तों के बिना शायद कुछ भी न होता,
ये सांसें भी न होती, ये जिंदगी न होती |

खुशियाँ न होती और मुस्कान भी न होते,
जिस्म तो होता पर उसमे जान भी  न होती;
रहता अधूरा शायद हर जश्न-ए-जिंदगी,
दोस्तों के बना अपनी शान भी न होती |

नर्क सा होता उस स्वर्ग का भी मंजर,
महफिल भी शायद वीरान-सी ही होती;
दोस्ती है मिश्रण हर रिश्ते का "दीप",
जिंदगी बिन लक्ष्य के बाण-सी ही होती |

(सभी मित्रों को समर्पित यह रचना)

Saturday, July 7, 2012

काश तुम समझ पाते


काश तुम समझ पाते,
कि जब चुना था तुम्हें,
तो कितना विश्वास था तुमपे,
अच्छा जँचे थे तुम;

बेहतर लगे थे सबसे,
सबसे सच्चे भाते,
बहुत आस था तुमसे,
काश तुम समझ पाते |

थे तो कई,
मैदान में लेकिन,
तेरे ही नाम को,
पसंद किया हमने;

इन बातों पे थोड़ा,
तुम गौर तो फरमाते,
भावनाओं को हमारी,
काश तुम समझ पाते |

यूं सिला दोगे,
यूं रुलाओगे हुमे,
भूल जाओगे सबकुछ,
ये सोचा न था;

चुनाव को हमारे,
तुम सही तो ठहराते,
बहुत खुशी होती हमे,
काश तुम समझ पाते |

चुन करके गए,
फिर दर्शन भी न हुए,
ज्यों जन-प्रतिनिधि नहीं,
ईद का चाँद हो गए;

कभी-कभार तो आते,
बस हाल ले के जाते,
गर्व होता हमको,
काश तुम समझ पाते |

आज हम परेशान हैं,
तरह तरह की समस्याओं से,
हमारे बीच के होके भी,
तुम हमारे न रहे;

हर वोट की कीमत,
ऐ काश तुम चुकाते,
बन जाते महान,
काश तुम समझ पाते |

जन-जन है लाचार,
दो रोटी को तरसते,
और लगे हो तुम,
झोली अपनी भरने में;

निःस्वार्थ होकर थोड़ा,
परमार्थ भी दिखाते,
सच्चा नेता कहलाते,
काश तुम समझ पाते |

Sunday, July 1, 2012

दूरियाँ

दूरियां हमेशा दर्द ही नहीं देती, 
कभी कभी खुशनुमा एहसास भी कराती है ये दूरियां; 
दूरियां हमेशा रिश्तों को नहीं तोडती, 
अक्सर टूटते रिश्तों को भी मजबूत कराती है ये दूरियां | 

दूरियाँ हमेशा नफरत ही नहीं फैलाती, 
कभी कभी अनुपम प्रेम की अनुभूति भी कराती है ये दूरियाँ; 
दूरियाँ हमेशा फासले ही नहीं बढ़ाती, 
कभी कभी दूर हुए दो दिलों को नजदीक भी लाती है ये दूरियाँ | 

दूरियाँ सिर्फ ओझल ही नहीं करती, 
कभी कभी दिल ही दिल मे दीदार भी करती है ये दूरियाँ; 
दूरियों का मतलब सिर्फ जुदाई नहीं "दीप", 
कभी कभी एक अनोखा मिलन भी कराती है ये दूरियाँ |

Monday, June 18, 2012

दस्तक मॉनसून की

पड़ चुकी है दस्तक
मॉनसून की यारों;
घटायें हर तरफ अब
घिरने लगी हैं |

हर वर्ग हर शख्स
था इंतज़ार में इसके;
मौसम के कोप से
निजात था पाना |

अमीर थे सोचते 
कि मौसम होगा ठंढा;
ए.सी. नहीं चलेगा
तो बिजली बिल बचेगा |

गरीब था सोचता
कि बारिश जो होगी;
बाल-बच्चे परिवार
कुछ चैन से रहेंगे |

किसान का सर्वस्व तो 
मॉनसून पे ही निर्भर;
जो बारिश न हुई तो
सब कुछ लूट जायेगा |

जो लूटने में लगे हैं
हर माह उनका मॉनसून है;
इन्तजार तो हिस्सा है
बस आम जनता का ही |

बारिश की बूंदें अब
भिगोने है लगी;
प्यास हर किसी की 
है मिटाने में लगी |

झर-झर करती बूंदें
खुशहाल करती जिंदगी;
हर दिल को हर्षाती
दस्तक ये मॉनसून की |

Wednesday, June 13, 2012

दे दो एक सदा

दे दो एक सदा कि अब भी आ जाऊंगा,
लौट के वापस मैं तेरे पास ही आऊंगा;
जख्म जो दिए थे तुने, उन्हें भूल चूका हूँ,
बिना नए जख्म लिए रह कैसे पाऊंगा |

बेवफाई से भी तेरी मुझे मोहब्बत सी है,
चमक तेरी आँखों का फिर वापस लाऊंगा ;
उलाहने भी तेरी लगती हैं एक अदा दिलनशीं, 
उन अदाओं को भूलकर कैसे रह पाऊंगा |

Friday, June 8, 2012

पहली बरसात


आज हुई पहली बरसात,
बरस गये मेघ आज घुमड़ के,
जगा गए दिल के जज्बात,
आज हुई पहली बरसात |

ताप रहा था कोना-कोना,
गर्मी से आता था रोना,
आह्लादित हो उठी जमात,
आज हुई पहली बरसात |

इन्तजार थे मेघ के,
नयन ताकते नेह से,
ईंद्र देव ने मणि बात,
आज हुई पहली बरसात |

रोज दरश वे दे जाते थे,
सब्र परीक्षा ले जाते थे,
आज दिला के गए निज़ात,
आज हुई पहली बरसात |

मन प्यासा, धरती प्यासी थी,
मरुभूमि में बगिया-सी थी,
तृप्त कर गए वो दिन रात,
आज हुई पहली बरसात |


07.06.2012

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