कुछ रिश्ते
धरा पर
ऐसे भी हैं,
दुष्कर होता जिनको
परिभाषित करना;
सरल नहीं जिनको
नाम दे पाना,
फिर भी वो होते
गहराइयों में दिल के,
जीवन में समाए,
भावनाओं से जुड़े,
अन्तर्मन में व्याप्त,
औरों की समझ से
बिलकुल परे,
खाश रिश्ते;
दुनिया के भीड़ से
सर्वथा अलग,
नहीं होता जिनमे
बाह्य आडंबर,
मोहताज नहीं होते
संपर्क व संवाद के,
समग्र सरस, सुखद
सानिध्य हृदय के,
हर व्यथा
हर खुशी में
उतने ही शरीक,
अदृश्य डोर के
बंधन में बंधे,
नाम की लोलुपता से
सुदूर और परे,
कशमकश से भरे
अनाम रिश्ते |
अनाम रिश्तों को परिभाषित करना मुश्किल होता है,,,,
ReplyDeleteRECENT POST : गीत,
आपका आभार |
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (01-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
आपका बहुत बहुत आभार |
Deletebahot sahi laga.....
ReplyDeleteDhanyawaad..
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका |
ReplyDeleteसुंदर !
ReplyDeleteनाम का रिश्ता हो
और काम का ना हो
अच्छा है अनाम का हो
एक ही रिश्ता कहीं !
nice ....
ReplyDeleteसच में कुछ रिश्ते अनाम होकर भी बहुत नज़दीक होते हैं दिल के...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर,,,
ReplyDeleteअनु
हर रिश्ता अहम् होता है ...उसे नाम देना जरुरी नहीं है
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