दर्द-ए-दिल समझ के कोई अनजान बैठा है ,
लूटने वाला यहाँ बनके महान बैठा है ,
लाश है कि हिलने का नाम नहीं ले रही ,
और जनाजों के इंतजार में शमशान बैठा है |
नाराज सा देखो ये सारा जहान बैठा है,
मिट्टी का माधो ले सबकी कमान बैठा है,
दिख रहा मुकद्दर बस खामोशियों भरा,
बादलों के इंतज़ार में आसमान बैठा है |
ज़मीरों का भी कोई खोला दुकान बैठा है,
इंसानों के कत्ले-आम को इंसान बैठा है,
चंद सिक्कों से तौले जा रहे हैं लोग अब,
सबको बनाने वाला खुद ऊपर हैरान बैठा है |
गमगीन-सा आज का हर नौजवान बैठा है,
छोड़ कर पंक्षी आज अपनी उड़ान बैठा है,
बड़ा ही रहस्यमय-सा है आज का मंजर,
उत्साह का सागर ही खुद परेशान बैठा है |
भक्त सत्य का आज खाली मकान बैठा है,
भ्रष्ट नाली का कीड़ा बना तुर्रम खान बैठा है,
जीवित लाशों केधर पे शहँशाह-सा बैठा,
जमाना हर कदम पे लेने इम्तिहान बैठा है |
जमाना हर कदम पे लेने इम्तिहान बैठा है |
नाराज सा देखो ये सारा जहां बैठा है,
ReplyDeleteमिट्टी का माधो ले सबकी कमान बैठा है,
दिख रहा मुकद्दर बस खामोशियाओं(खामोशियों)भरा,
बादलों के इंतज़ार में आसमान बैठा है |
dhanyawaad dhyan dilane ke liye...
Deleteबादलों के इंतज़ार में आसमान बैठा है,,,,,बहुत खूब,,,प्रदीप जी,,,क्या बात है,,,,
ReplyDeleteRECENT POST -मेरे सपनो का भारत
Aabhaar..aapka blog bhi ghum aayaa..
Deletenice dear..
ReplyDeletedhanyawad...
Deletebahut bahut aabhaar aapka ....
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeletewaah ...........bahut khub pradeep ji
ReplyDelete"लाश है कि हिलने का नाम नहीं ले रही ,
ReplyDeleteऔर जनाजों के इंतजार में शमशान बैठा है |"
श्रीप्रदीपजी,
आप का काव्य पिटारा मनभावन है जी..!
धन्यवाद ।
बहुत सराहनीय प्रस्तुति.
ReplyDeleteसच इम्तिहान ही इम्तिहान है हर कदम पर ...जो संभल कर नहीं चलता जाने कहाँ और कब गिर जाय कुछ पता नही
ReplyDelete...आज-समाज की तस्वीर दिखाती बढ़िया रचना
बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत खूब..
:-)
सामयिक विसंगतियों का सुंदर शब्द चित्र.........
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
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