आँखों में लेके एक नूर कोई,
सपनों की दुनिया सच करने चला हूँ;
अपनों के सपनों को दिल में लेकर,
दुनिया में अपना हक करने चला हूँ |
मैं बढ़ने चला हूँ |
मैं बढ़ने चला हूँ |
राहों में बाधक हैं, मुश्किलें भी हैं,
पर खुद ही हर मुश्किल से लड़ने चला हूँ,
मार्ग में सबको बस खुशियाँ परोसता,
खुशियाँ लुटाता मैं उड़ने चला हूँ |
मैं बढ़ने चला हूँ |
सपनों को अपने है साकार करना,
भागती इस दुनिया में दौड़ने चला हूँ;
पर्वत, पहाड़ या मिले कोई चट्टान,
हौसले का हथौड़ा ले तोड़ने चला हूँ |
मैं बढ़ने चला हूँ |
मौका परस्त दौर में एक जज्बा लेकर,
इंसानियत की खोज अब करने चला हूँ;
अँधियारों में अपना ही "दीप" लेकर,
हवाओं का रुख भी मोड़ने चला हूँ |
मैं बढ़ने चला हूँ |
बहुत खूब,,,,,प्रदीप जी,,,,हौसला बनाए रखे हवाओं रुख जरूर बदलेगा,,,,
ReplyDeleteRECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता,
सुन्दर कविता भाव हैं, साधुवाद हे मित्र |
ReplyDeleteसपने एवं जिजीविषा, का अति-सुन्दर चित्र ||
बहुत सुन्दर गीत!
ReplyDeleteयूँ ही आगे बढते रहे ...
ReplyDeletehttp://bloggersofharyana.blogspot.in
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