मेरे हर बुलंद इरादों को;
मेरे ऊर की हर बातों को,
हर उठते हुए जज़्बातों को |
मेरे भावों की भाषा बन,
अभिव्यक्ति की अभिलाषा बन;
तू सत्य समाज का उद्धृत कर,
मेरे सपनों को विस्तृत कर |
मेरे शब्दों के पंख लगा,
हर खोट पे जाके दंश लगा;
असत्य न स्वीकार कर,
कुरीतियों पे वार कर |
न व्यर्थ कहीं गुणगान कर,
जो है जायज़ तू मान कर;
गंदगी कभी न माफ कर,
लिख-लिख के उनको साफ कर |
हर ओर ईर्ष्या व्याप्त है,
मानवता बस समाप्त है;
नैतिकता की तू अलख जगा,
बुराइयों पर अग्नि लगा |
ओ कलम न डर न डरने दे,
हुंकार सत्य का भरने दे;
काँटों में भी मुझे राही बना,
लहू का मेरे तू स्याही बना |
पर सत्य मार्ग न छोड़ तू,
नाता हरेक से जोड़ तू;
अच्छा-बुरा जो होता लिख,
तू ध्यान दिला, सब जाए दिख |
ओ कलम तू प्रेरणास्रोत बन,
संदेशों से ओत-प्रोत बन;
लिखा तेरा जो पढे बढ़े,
सोपान उचित हरवक्त चढ़े |
ओ कलम मेरा हथियार बन,
मेरी सबसे निज यार बन;
अन्तर्मन की तू दूत बन,
मेरु-सा तू मजबूत बन |
जो ना कह पाऊँ मैं मुख से,
तू लिखना बांध उसे तुक से;
साहित्य पटल पर उडती जा,
ओ कलम मेरे शब्द बुनती जा |
पर सत्य मार्ग न छोड़ तू,
ReplyDeleteनाता हरेक से जोड़ तू;
अच्छा-बुरा जो होता लिख,
तू ध्यान दिला, सब जाए दिख |
Fantastic !
ब्लॉग में आने के लिए आभार |
Deleteसुन्दर प्रस्तुति....!
ReplyDeleteबढ़िया स्वगत कथन!
बहुत बहुत धन्यवाद शास्त्री जी |
Deleteयदि कलम हाथ में है तो अभिलाषा भी ऐसी ही होनी चाहिए।
ReplyDeleteधन्यवाद आपका महाशय |
Deleteक्या अपनी, परिभाषा लिख दूँ
ReplyDeleteक्या अपनी,अभिलाषा लिख दूँ
शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ
तख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ
केंद्र बिंदु, मष्तिक है मेरा
नये विषय का , लगता फेरा
लिखता जो , मन मेरा करता
मेरी कलम से , कायर डरता
क्रोधित होकर कभी न लिखता
सदा सहज बन कर ही रहता
विरह वेदना ,पर भी लिखता
प्यार भरी भी , रचना करता
कभी नयन को,रक्तिम करता
कभी मौन हूँ, सब को करता
कभी वीरता के , गुण गाता
दुर्गुण को भी , दूर भगाता
मन मेरा है, उड़ता रहता
अहंकार से , हरदम लड़ता
गुनी जनीं का ,आदर करता
सारा जग,कवि मुझको कहता
DHEERENDRA,"dheer"
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,,,,,,,,,,
MY RECENT POST: माँ,,,
आपकी रचना भी बहुत बढ़िया है | धन्यवाद आपका |
Deleteकलम यूँ ही चलती रहे नए स्वप्न बुनती रहे... सुन्दर रचना... शुभकामनायें
ReplyDeleteब्लॉग में आने के लिए धन्यवाद | यूंही उत्साहबर्धन करती रहें |
Deleteओ कलम तू प्रेरणास्रोत बन,
ReplyDeleteसंदेशों से ओत-प्रोत बन;
लिखा तेरा जो पढे बढ़े,
सोपान उचित हरवक्त चढ़े |
जय हो इस कलम की ...
आभार !
उत्साहबर्धन के लिए आभार | इसी तरह आती रहे ब्लॉग में |
Deleteसुंदर !!
ReplyDeleteधन्यवाद |
Deleteवाह बहुत तेज़ी से कलम का जादू छाने लगा हैं
ReplyDeleteआपका आभार |
Deleteबहुत सुंदर रचना...बधाई
ReplyDeleteआभार |
Deleteजो ना कह पाऊँ मैं मुख से,
ReplyDeleteतू लिखना बांध उसे तुक से;
साहित्य पटल पर उड़ता जा,
ओ कलम मेरे शब्द बुनता जा |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति लयबद्ध एक सुर में पढ़ती चली गई वाह बहुत खूब |
आपका आभार |
Deleteबहुत बढ़िया....
ReplyDeleteकलम आपका कहा कैसे टाले.....
सुन्दर!!!
अनु
धन्यवाद आपका |
Deleteजो ना कह पाऊँ मैं मुख से,
ReplyDeleteतू लिखना बांध उसे तुक से;
साहित्य पटल पर उड़ता जा,
ओ कलम मेरे शब्द बुनता जा |
Beautiful pradeep ji!
Jab kabhi padharein mere blog par to ise jarur deikhen!
दायरे
www.bhukjonhi.blogspot.com
ब्लॉग में आने के लिए आभार |
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