प्रिये !!
निःसंदेह हो
चक्षुओं से ओझल,
तेरी ही छवि
प्रतिपल निहारता,
स्मरण तेरा
प्रिये !!
आनंद बोध देता,
हृदय स्पर्शी होता
दूरी भी तेरी
प्रिये !!
समीपता का भाव लिए,
क्षण भर भी तुझसे
मैं परोक्ष नहीं हूँ |
वास तेरा
प्रिये !!
मेरे अन्तर्मन में
स्वयं का प्रतिरूप
तेरे नैनों में पाया,
फिर तू और मैं
मैं और तू कैसे ?
प्रिये !!
भौतिक स्वरूप भिन्न
एकीकृत अन्तर्मन,
होकर भी पृथक
तू और मैं
अभिन्न हैं प्रिये !!
ह्रदय स्पर्शी रचना प्रदीप भाई
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण रचना.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
दुर्गाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत सुन्दर पोस्ट ,आपको बधाई.इसी तरह अपना लेखन सफ़र आगे बढ़ाते रहें.
ReplyDeleteमोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड
बहुत बढ़िया रचना है दोस्त आपकी
ReplyDeleteवहीँ यादें तुम्हारी,
वहीँ आँखें मेरी नम,
वहीँ बातें तुम्हारी,
वहीँ पलछिन हैं हरदम,
अन्तर मन की पूरी आहट देती रचना .बहुत सुन्दर .
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार २३/१०/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है
ReplyDeleteप्रतिपल निहारता,
ReplyDeleteस्मरण तेरा
प्रिये !!
आनंद बोध देता,
हृदय स्पर्शी होता
दूरी भी तेरी
प्रिये !!
आंतरिक मन के भाव स्पष्ट झलके
कमाल की रचना
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धन्यवाद !!
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