दिल की हस्ती किसी को क्या दिखाएँ "दीप",
गुम हो सकूँ ऐसा कोई मंजर नहीं मिलता;
नदियां तो अक्सर मिल जाती हैं राहों में,
पर डूब सकूँ ऐसा कोई समंदर नहीं मिलता |
साथ उसके रह सकूँ वो जहां कहाँ ऐ "दीप",
जला सकूँ खुद को वो शमशान नहीं मिलता;
इश्क में तेरे डूब जाने को दिल करता तो है,
पर टूट सकूँ जिसमे वो चट्टान नहीं मिलता |
तैयार तो खड़े हैं हम यहाँ लुटने को ऐ "दीप",
पर चुरा सके जो मुझको वो चोर नहीं मिलता;
बह तो जाऊँ मैं बारिश में तेरे प्यार की मगर,
बरसात वो कभी मुझको घनघोर नहीं मिलता |
एक अलग-सी ही दुनिया बसा लूँ संग तेरे मैं,
साथ तेरे बैठ के देखूँ वो ख्वाब नहीं मिलता;
प्रश्न तो कितने ही उठते हैं मन में "दीप",
पर दे सकूँ जो तुझको वो जवाब नहीं मिलता |
सुन्दर रचना प्रदीप भाई
ReplyDeleteप्रश्न तो कितने ही उठते हैं मन में "दीप",
ReplyDeleteपर दे सकूँ जो तुझको वो जवाब नहीं मिलता |
..दिल की कशमकश में जवाब देना सरल कहाँ ...बहुत खूब
प्रश्न तो कितने ही उठते हैं मन में "दीप",
ReplyDeleteपर दे सकूँ जो तुझको वो जवाब नहीं मिलता |बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
भावपूर्ण रचना !
ReplyDeleteवो कहते हैं ना... 'बिन माँगे मोती मिले.. माँगे मिले न मौत...'
अक्सर...हम जो माँगते हैं... या तो मिलता नहीं.. या बहुत तपस्या के बाद मिलता है...
~सादर