काश तुम समझ पाते,
कि जब चुना था तुम्हें,
तो कितना विश्वास था तुमपे,
अच्छा जँचे थे तुम;
बेहतर लगे थे सबसे,
सबसे सच्चे भाते,
बहुत आस था तुमसे,
काश तुम समझ पाते |
थे तो कई,
मैदान में लेकिन,
तेरे ही नाम को,
पसंद किया हमने;
इन बातों पे थोड़ा,
तुम गौर तो फरमाते,
भावनाओं को हमारी,
काश तुम समझ पाते |
यूं सिला दोगे,
यूं रुलाओगे हुमे,
भूल जाओगे सबकुछ,
ये सोचा न था;
चुनाव को हमारे,
तुम सही तो ठहराते,
बहुत खुशी होती हमे,
काश तुम समझ पाते |
चुन करके गए,
फिर दर्शन भी न हुए,
ज्यों जन-प्रतिनिधि नहीं,
ईद का चाँद हो गए;
कभी-कभार तो आते,
बस हाल ले के जाते,
गर्व होता हमको,
काश तुम समझ पाते |
आज हम परेशान हैं,
तरह तरह की समस्याओं से,
हमारे बीच के होके भी,
तुम हमारे न रहे;
हर वोट की कीमत,
ऐ काश तुम चुकाते,
बन जाते महान,
काश तुम समझ पाते |
जन-जन है लाचार,
दो रोटी को तरसते,
और लगे हो तुम,
झोली अपनी भरने में;
निःस्वार्थ होकर थोड़ा,
परमार्थ भी दिखाते,
सच्चा नेता कहलाते,
काश तुम समझ पाते |
निःस्वार्थ होकर थोड़ा,
ReplyDeleteपरमार्थ भी दिखाते,
सच्चा नेता कहलाते,
काश तुम समझ पाते |
RECENT POST...: दोहे,,,,
थोडा धैर्य धरिये .... !!
ReplyDelete5 साल के बाद फिर आयेगें नए - नए वादों के साथ .... !!
इंतजार इंतजार इंतजार इंतजार इंतजार इंतजार इंतजार .... !!
बहुत ही सहज शब्दों में कितनी गहरी बात कह दी आपने..... खुबसूरत अभिवयक्ति....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावभीनी अभिव्यक्ति...
ReplyDelete:-)
bahut sunder abhivyakti........
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति.आभार.
ReplyDeleteधिक्कार तु मानव ||
खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDelete