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Saturday, August 13, 2011

अंतर्द्वंद

सोचा की इस बार आज़ादी का जम कर जश्न मनाऊँ,
तभी ख्याल आया देश की मौजूदा हालात का,
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

भागते हुए निहत्थे किसान कहीं गोलियां खा रहें हैं,
रैलियों में निहत्थे लोग कहीं लाठियां खा रहें हैं;
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

मौलिक अधिकारों का भी यहाँ हनन हो रहा है,
रोज नए घोटालेबाजों का जनम हो रहा है;
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

महंगाई इतनी है की लोग दो जून की रोटी को तरसते हैं,
नेताओं और रसूखदारों के यहाँ धन ही धन बरसते हैं;
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

अमर शहीदों की गाथा याद करके उन्नत हो जाता है भाल मेरा,
अपने चुने हुए लोगों के करतूत के ख्याल से शर्म से झुक जाता है भाल मेरा; 
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

हर एक मुद्दे पर नेताओं की राजनीती भारी है,
नियम-कानून कुछ नहीं हर एक नीति हारी है;
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

मानव आज मानवता के मूल्यों को कहाँ बुझ रहा है,
स्त्रियों का वर्ग हर कोने में असुरक्षा से जूझ रहा है; 
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

यह अंतर्द्वंद मेरे नहीं हर एक के मन में चल रहा है,
किसकी खुशियाँ मनाऊँ और किसका गम करूँ, हर एक के मन में चल रहा है;

क्या इसी अंतर्द्वंद का जश्न मनाऊँ?
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

10 comments:

  1. सुन्दर और सार्थक रचना , आभार
    भारतीय स्वाधीनता दिवस पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं .

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  2. प्रदीप जी बहुत सटीक लिखा है आपने .इस समय देश के हालात ऐसे नहीं हैं कि हम स्वाधीनता दिवस का जश्न मनाएं पर इन हालातों को काबू भी हमें ही करना है .देश पर कुर्बान होने वाले हर शहीद को शत-शत नमन .

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  3. सब कुछ है सहन की सीमा से बाहर,सभी कुछ है ऐसा जो न सोचा कभी न चाहा कभी पर आज देश उठ खड़ा है इसके खिलाफ और हम आज इसी के लिए स्वतंत्रता दिवस मना सकते हैं .निराशा को दिल से बाहर करें और वीर शहीदों को याद करें और गर्व से स्वतंत्रता दिवस मनाये,
    happy independence डे to pradeep जी

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  4. सार्थक लिखा है....

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  5. प्रदीप जी आपके ब्लॉग को आज ये ब्लॉग अच्छा लगा पर लिया है .आपकी उपस्थिति हमारा उत्साह वर्धन करेगी.

    स्वतंत्रता दिवस और प्रदीप जी की कविता का अंतर्द्वंद

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    स्वतन्त्रता की 65वीं वर्षगाँठ पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

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