समझ के भेजा था तुझे हमदर्द अपना,
दर्द जो न महसूस किये तो ये गलती किसकी ?
सोचा था दो-चार खुशियाँ हमे दोगे,
लगे अपनी खुशी समेटने तो ये गलती किसकी ?
जन-गण ने चुना कि हमारे बीच ही रहोगे,
लगे शीशमहल बनाने तो ये गलती किसकी ?
वतन के नाम पे चंद कसीदे तो पढ़ोगे,
लगे वतन को ही पढ़ाने तो ये गलती किसकी ?
तुम अगर जगते, जनता चैन से सोती,
स्वयं चीर निद्रा में खोये तो ये गलती किसकी ?
जनता यहाँ स्वामी, तुझे स्वामी ने ही भेजा,
लगे खुद को बॉस समझने तो ये गलती किसकी ?
दर्द जो न महसूस किये तो ये गलती किसकी ?
सोचा था दो-चार खुशियाँ हमे दोगे,
लगे अपनी खुशी समेटने तो ये गलती किसकी ?
जन-गण ने चुना कि हमारे बीच ही रहोगे,
लगे शीशमहल बनाने तो ये गलती किसकी ?
वतन के नाम पे चंद कसीदे तो पढ़ोगे,
लगे वतन को ही पढ़ाने तो ये गलती किसकी ?
तुम अगर जगते, जनता चैन से सोती,
स्वयं चीर निद्रा में खोये तो ये गलती किसकी ?
जनता यहाँ स्वामी, तुझे स्वामी ने ही भेजा,
लगे खुद को बॉस समझने तो ये गलती किसकी ?
जगी है अब जनता और दागे चाँद सवाल,
तेरे कर्मों ने ही जगाया तो ये गलती किसकी ?
मांग रही हक़ अपना और तुझे देना भी होगा,
तुने नाफ़रमानी की है तो ये गलती किसकी ?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबधाई ||
सान-सान सद-कर्म को, बसा के बद में प्राण |
अपनी रोटी सेक के, करते महा-प्रयाण |
करते महा-प्रयाण, साँस दो-दो वे ढोते |
ढो - ढो लाखों गुनी, पालते नाती - पोते |
मत 'रविकर' मुँह खोल, महा अभियोग चलावें |
कड़ी सजा तू भोग, पाप उनके छिप जावें ||
bahut khoob :)
ReplyDeleteवतन के नाम पे चंद कसीदे तो पढ़ोगे,
ReplyDeleteलगे वतन को ही पढ़ाने तो ये गलती किसकी ?
वाह बेजोड़ सवाल...
नीरज
इस कविता में चार पंक्तियाँ और हैं पर मोबाईल से पोस्ट करने के कारण हो नही पाया | जल्द अपडेट करूँगा |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDelete--
भाईचारे के मुकद्दस त्यौहार पर सभी देशवासियों को ईद की दिली मुबारकवाद।
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कल गणेशचतुर्थी होगी, इसलिए गणेशचतुर्थी की भी शुभकामनाएँ!
janta ki galti hai aur vahi bhugat rahi hai.sundar prastuti.badhai pradeep ji
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