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Tuesday, August 30, 2011

गलती किसकी ?

समझ के भेजा था तुझे हमदर्द अपना,
दर्द जो न महसूस किये तो ये गलती किसकी ?
सोचा था दो-चार खुशियाँ हमे दोगे,
लगे अपनी खुशी समेटने तो ये गलती किसकी ?

जन-गण ने चुना कि हमारे बीच ही रहोगे,
लगे शीशमहल बनाने तो ये गलती किसकी ?
वतन के नाम पे चंद कसीदे तो पढ़ोगे,
लगे वतन को ही पढ़ाने तो ये गलती किसकी ?

तुम अगर जगते, जनता चैन से सोती,
स्वयं चीर निद्रा में खोये तो ये गलती किसकी ?
जनता यहाँ स्वामी, तुझे स्वामी ने ही भेजा,
लगे खुद को बॉस समझने तो ये गलती किसकी ?

जगी है अब जनता और दागे चाँद सवाल,
तेरे कर्मों ने ही जगाया तो ये गलती किसकी ?
मांग रही हक़ अपना और तुझे देना भी होगा,
तुने नाफ़रमानी की है तो ये गलती किसकी ?

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
    बधाई ||

    सान-सान सद-कर्म को, बसा के बद में प्राण |

    अपनी रोटी सेक के, करते महा-प्रयाण |


    करते महा-प्रयाण, साँस दो-दो वे ढोते |


    ढो - ढो लाखों गुनी, पालते नाती - पोते |


    मत 'रविकर' मुँह खोल, महा अभियोग चलावें |

    कड़ी सजा तू भोग, पाप उनके छिप जावें ||

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  2. वतन के नाम पे चंद कसीदे तो पढ़ोगे,
    लगे वतन को ही पढ़ाने तो ये गलती किसकी ?

    वाह बेजोड़ सवाल...

    नीरज

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  3. इस कविता में चार पंक्तियाँ और हैं पर मोबाईल से पोस्ट करने के कारण हो नही पाया | जल्द अपडेट करूँगा |

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  4. बहुत सुन्दर।
    --
    भाईचारे के मुकद्दस त्यौहार पर सभी देशवासियों को ईद की दिली मुबारकवाद।
    --
    कल गणेशचतुर्थी होगी, इसलिए गणेशचतुर्थी की भी शुभकामनाएँ!

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  5. janta ki galti hai aur vahi bhugat rahi hai.sundar prastuti.badhai pradeep ji

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