कभी मात बन जनम ये देती,
कभी बहन बन दुलराती;
पत्नी बन कभी साथ निभाती,
कभी पुत्री बन इतराती;
कहने वाले अबला कहते,
पर भई इनका तेज तो देख;
काकी, दादी सब बनती ये,
एक नारी के रूप अनेक |
कभी शारदा बन गुण देती,
कभी लक्ष्मी बन धन देती;
कभी काली बन दुष्ट संहारती,
कभी सीता बन वर देती;
ममता भी ये, देवी भी ये,
नत करो सर इनको देख;
दुर्गा, चंडी सब बन जाती,
एक नारी के रूप अनेक |
कभी कृष्णा बन प्यास बुझाती,
यमुना बन निच्छल करती;
गंगा बन कभी पाप धुलाती,
सरयू बन निर्मल करती;
नदियाँ बन बहती जाती,
न रोक पाओगे बांध तो देख,
कावेरी भी, गोदावरी भी ये,
एक नारी के रूप अनेक |
कभी अश्रु बन नेत्र भिगोती,
कभी पुष्प बन मुस्काती;
कभी मेघ बन बरस हैं पड़ती,
कभी पवन बन उड़ जाती;
पल-पल व्याप्त कई रूप में ये,
न जीवन है बिन इनको देख;
जल भी ये, पावक भी ये,
एक नारी के रूप अनेक |
कभी अश्रु बन नेत्र भिगोती,
ReplyDeleteकभी पुष्प बन मुस्काती;
कभी मेघ बन बरस हैं पड़ती,
कभी पवन बन उड़ जाती;
सुन्दर रचना, सुन्दर भावाभिव्यक्ति
ममता भी ये, देवी भी ये,
ReplyDeleteनत करो सर इनको देख;
दुर्गा, चंडी सब बन जाती,
एक नारी के रूप अनेक
bahut khoob pradeep जी nari के vishay me aapki ये प्रस्तुति sarahna और samman kee hakdar hai.badhai.और आभार
धन्यवाद शुक्ला जी..
ReplyDeleteधन्यवाद शुक्ला जी..
ReplyDeleteधन्यवाद शालिनी जी |
ReplyDeleteधन्यवाद शालिनी जी |
ReplyDeleteनारी के लिए ये सम्मान अच्छा लगा....
ReplyDeletebhaut hi khubsurat....
ReplyDeleteDhanyawad Sushma ji..
ReplyDeleteAabhar Sagar ji..
ReplyDeleteमाँ की ममता की विभिन्न छवियों को दर्शाती सुंदर कविता.
ReplyDeleteMa ke ye rup dekhkar mei svayam bhav vibhor ho g ya
ReplyDeleteNari ko anek roop de kar aapne uski ijat ko aor badhaya hai
ReplyDeleteMa ke ye rup dekhkar mei svayam bhav vibhor ho g ya
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