खुशियाँ आज़ादी की हर वर्ष मानते हैं,
पर हजारों गुलामी ने अब भी है घेरा;
फूल कई रंगों के हम अक्सर हैं लगाते,
पर मन में फूलों का कहाँ है डेरा ?
नाच-गा लेते हैं, झंडे पहरा लेते हैं,
अन्दर तो रहता है मजबूरियों का बसेरा,
लोगों को देखकर मुस्कुराते हैं हरदम,
मन में होती है कटुता और दिल में अँधेरा |
सोच और मानसिकता आज़ाद नहीं जब तक,
तो क्या मतलब ऐसे आज़ादी के जश्न का,
एक दिन का उत्सव, अगले दिन फिर शुरु,
गुलामी की वही जिंदगी, बिना जवाब दिए प्रश्न का |
बहुत सुन्दर सारगर्भित रचना , सुन्दर भावाभिव्यक्ति , आभार
ReplyDeleteरक्षाबंधन एवं स्वाधीनता दिवस के पावन पर्वों की हार्दिक मंगल कामनाएं.
सार्थक प्रस्तुती....
ReplyDeletebilkul sahi kaha aapne
ReplyDeletepata nahi kab log apne soch badlenge
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बहना को देता आशीष नज़र आऊँ :)
sundar...
ReplyDeleteDhanyawad S.N.Shukla ji.. Isi tarah mere blog me aate rahe aur apni tippaniyon se kritarth karte rahe..log me aate rahe aur apni tippaniyon se kritarth karte rahe..
ReplyDeleteSushma Ji Aapka bhi bahut bahut aabhar. Kripa drishti banaye rakhe..
ReplyDeleteManish ji Aapka dhanyawad mere blog me aane ke liye.. Isi tarah aate rahen.i tarah aate rahen.
ReplyDeleteSagar ji Aapka aabhar..
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