'शा'श्वत है इस जग में आपका प्रम,
'दी'पक के समान उज्ज्वल भी है;
'की'मत आँकना है अति दुष्कर,
'सा'मर्थ्य तो इसमे प्रबल ही है ।
'ल'हू के रग-रग में है व्याप्त,
'गि'रि सम हरदम अटल भी है ;
'रा'त्रि के धुप्प तिमिर में भी,
'ह'मेशा चन्द्र सम धवल भी है ।
'मु'मकिन नहीं यह राह बिन आपके,
'बा'तों से सिर्फ कुछ कह नहीं सकता;
'र'हे ये साथ यूँ ही बना हुआ,
'क'लम से ज्यादा कुछ लिख नहीं सकता ।
'हो' ऐसा कि यह दिन यूँ ही हर बार आता रहे ।
इस कविता के प्रत्येक पंक्ति का पहला अक्षर मिलाने पर-"शादी की सालगिराह मुबारक हो" )
(यह कविता हमारी शादी की वर्षगाँठ पर मेरी जीवन साथी 'मानसी' को समर्पित ।)
इस कविता के प्रत्येक पंक्ति का पहला अक्षर मिलाने पर कविता का शीर्षक आता है ।
ReplyDeleteशादी की सालगिराह मुबारक हो ।
fantastic !!!
ReplyDeletepradeep ji aur mansi ji aap dono ko meri aur se bhi shadi ki salgirah mubaraq ho-
ReplyDelete''zindgi ki bahar dekho aap ,
aishe le-lo nahar dekho aap,
ek hi sal ki dua kaisee
sal aise hazar dekho aap.''
deep ji aap ki ye kavita bahut hi khoobsurat bhavon se rachi gayi hai.badhai.
देर से सही:
ReplyDeleteशादी की सालगिराह मुबारक हो :)
शादी की सालगिराह मुबारक हो देर से सही
ReplyDeleteशादी की सालगिराह मुबारक
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