किताबें तो पढ़ के बहुत आनन्द आता है,
पर आँखे बंद कर मन की किताब पढ़ने का मजा कुछ और है ।
बाहर तो लोग हजारों से मिल लेते हैं,
पर अंतरआत्मा से साक्षात्कार का मजा कुछ और है ।
रोशनी का लुत्फ तो बहुतेरे उठाते हैं,
पर अंधेरे में स्वयं की पहचान करने का मजा कुछ और है ।
बाहरी सुन्दरता को देख हर कोई है मुस्कुरा उठता,
पर भीतरी सौन्दर्य को परख लेने का मजा कुछ और है ।
औरों पे अट्टाहस तो अकसर ही करते हम,
पर अपने आप पे थोड़ा हँस लेने का मजा कुछ और है ।
अपनों का सहायक बन पुलकित होते हम,
पर आँखे बंद कर मन की किताब पढ़ने का मजा कुछ और है ।
बाहर तो लोग हजारों से मिल लेते हैं,
पर अंतरआत्मा से साक्षात्कार का मजा कुछ और है ।
रोशनी का लुत्फ तो बहुतेरे उठाते हैं,
पर अंधेरे में स्वयं की पहचान करने का मजा कुछ और है ।
बाहरी सुन्दरता को देख हर कोई है मुस्कुरा उठता,
पर भीतरी सौन्दर्य को परख लेने का मजा कुछ और है ।
औरों पे अट्टाहस तो अकसर ही करते हम,
पर अपने आप पे थोड़ा हँस लेने का मजा कुछ और है ।
अपनों का सहायक बन पुलकित होते हम,
पर एक असहाय को सहाय देने का मजा कुछ और है ।
नींद में तो ख्वाबों का पुलिन्दा सा बँध जाता है,
पर जागती आँखों से स्वप्न देख लेने का मजा कुछ और है ।
प्रेम रस से सराबोर प्रेमी-प्रेमिका हैं फिरते,
पर अपने ईष्टदेव से भक्ति पुर्ण प्रेम करने का मजा कुछ और है ।
अपनी तो हजारों ईच्छा पूरी कर लेते हैं हम,
पर माँ-बाप के अरमान पूरा कर देने का मजा कुछ और है ।
अपनी जरुरत के लिए जंगल का जंगल उड़ा देते हैं हम,
पर प्यार से एक पेड़ लगा जाने का मजा कुछ और है ।
भव्यता को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हम,
पर हृदय को भव्य बना लेने का मजा कुछ और है ।
जिन्दगी की अमिट साख पे मर ही मिटते हम,
पर जिन्दगी को जिन्दगी बना लेने का मजा कुछ और है ।
bahut sundar bhavabhivyakti
ReplyDeleteयूं तो पढते है हम रोज ही ना जाने कितनो को
ReplyDeleteमगर आपको पढने का मज़ा कुछ और ही है
सिर्फ़ यही कह सकती हूँ आपकी आज की इस रचना पर्।
bahut khoob likha hai pradeep zi
ReplyDelete____________________________________
कविता : क्या मुझे प्यार का सलीका भी नहीं आया था ?? || मनसा ||
hmmmm.....
ReplyDeletehmmmm.....
ReplyDeletehmmmm.....
ReplyDeleteअरे वाह!
ReplyDeleteआपने तो बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है!
भई वाह..मजा कुछ और है ..रदीफ ले कर स्व ओम व्यास जी भी एक जबरदस्त रचना पढ़ा करते थे वो ही याद आ गई.
ReplyDeletebhai pradip ji.. aaj aap ki yah rachana padhi.. wakai lajabab hai.. ab aapse milna hota rahega..mere blog pe aane ke liye dhanywad
ReplyDeleteअपनी टिप्पणियों से मेरा उत्साह बर्धन करने के लिए सबका धन्यवाद् |
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