( मित्रो, सुना है आज से अधिकारिक तौर पे चवन्नी का अस्तित्व ख़त्म कर दिया जायेगा | इसी बात पे मैंने अपनी ये कविता लिखी है | कृपया अपनी राय रखें |)
जा चवन्नी जा ! आज तेरी विदाई है,
तुझको रुख्सत करने वाली और कोई नही महँगाई है ।
देश से तेरा वजूद आज मिटने को है आया,
तुझपे भी समय का ये कोप है छाया |
पहला सिक्का बनके अठन्नी आज इठलाई है,
जा चवन्नी जा ! आज तेरी विदाई है |
मोल तेरा आज यहाँ रहा नहीं कुछ,
महंगाई की भेंट चढ़ सहा बहुत कुछ |
दस पैसा कबका गया, आज तेरी बारी आई है,
जा चवन्नी जा ! आज तेरी विदाई है |
गरीबों और बच्चों की एक चाहत थी तुम,
दर-ब-दर भटकती, फिर भी राहत थी तुम |
कहने वाले कहते हैं, आर्थिक तरक्की आई है,
जा चवन्नी जा ! आज तेरी विदाई है |
इस कृतघ्न समाज से विदाई शायद खुशनशीबी है तुम्हारी,
तुझको इस कदर भूलना शायद बदनशीबी है हमारी |
तेरी हंसी आज इस देश में कुम्भलाई है,
जा चवन्नी जा ! आज तेरी विदाई है |
प्रिय भाई , आज अचानक आपके ब्लाग पर पहुँच गया . अच्छा लिखते हैं आप . मेरी बधाई स्वीकार करें .
ReplyDeleteनीले आसमान पर छा
बहुत बहुत धन्यवाद् आपको | इसी तरह स्नेह बनाये रखिये और अपनी टिप्पणियों से मुझे उत्प्रेरित करते रहिये |
ReplyDeleteप्रिय श्रीप्रदिपजी,
ReplyDeleteबढ़िया रचना। बधाई स्वीकार करें।
मार्कण्ड दवे।
पावली की पदोन्नति । Part- 1.
http://mktvfilms.blogspot.com/2011/06/part-1_30.html
अद्भुत रचना है आपकी...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteकरीब १५ दिनों से अस्वस्थता के कारण ब्लॉगजगत से दूर हूँ
ReplyDeleteआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ....प्रदिप जी
जिन्होंने अवैध चवन्नियां जोड़कर काला धन इकट्ठा किया होगा अब उनका क्या होगा ??
ReplyDeleteपूजा खातिर चाहिए सवा रुपैया फ़क्त |
ReplyDeleteहुई चवन्नी बंद तो खफा हो गए भक्त ||
कम से कम अब पांच ठौ, रूपया पावैं पण्डे |
पड़ा चवन्नी छाप का, नया नाम बरबंडे ||
बहुतै खुश होते भये, सभी नए भगवान् |
चार गुना तुरतै हुआ, आम जनों का दान ||
मठ-मजार के नगर में, भर-भर बोरा-खोर |
भ'टक साल में भेजते, सिक्के सभी बटोर || |
भ'टक-साल सिक्का गलत, मिटता वो इतिहास |
जो काका के स्नेह सा, रहा कलेजे पास ||
अन्ना के विस्तार को, रोकी ये सरकार |
चार-अन्ने को लुप्त कर, जड़ी भितरिहा मार ||
बड़े नोट सब बंद हों, कालेधन के मूल |
मठाधीश होते खफा, तुरत गयो दम-फूल ||
महाप्रभु के कोष में, बस हजार के नोट |
सोना चांदी-सिल्लियाँ, रखें नोट कस छोट ||
बिधि-बिधाता जान लो, होइहै कष्ट अपार |
ट्रक- ट्रैक्टर से ही बचे, गर झूली सरकार ||
बहुत-बहुत बधाई |
ReplyDeleteचवन्नी के जाने का दर्द वो क्या जाने बाबू--
जिन्हें हजार के नोटों से ही मतलब ||
मार्कंड जी, बहुत बहुत धन्यवाद आपका |
ReplyDeleteशास्त्री जी, आपका हार्दिक आभार जो आपने मेरी रचना को चर्चा मंच के लायक समझा |
ReplyDeleteसंजय जी, आशा है आपका स्वास्थ्य अब कुशल मंगल है | इसी तरह अपना स्नेह बनाये रखें और मेरी रचनाओ में अपनी टिप्पणियां रखकर उत्प्रेरित करते रहें |
ReplyDeleteदीपक जी, धन्यवाद् मेरे ब्लॉग में आने के लिए |
ReplyDeleteसतीश जी, धन्यवाद् आपका मेरे ब्लॉग में आने के लिए |
ReplyDeleteकाला धन जमा करने वाले चवन्नी कहा रखते हैं ? वो तो बड़े बड़े नोट रखते हैं वो भी स्विस बैंक में | वो तो गरीबों और बच्चो की शोभा थी |
रविकर जी, आपकी चौपाइयां बहुत सुन्दर है | धन्यवाद् |
ReplyDeleteआये है सो जायेंगे राजा रंक फ़कीर
ReplyDeleteवंदना जी, आभार मेरे ब्लॉग में आने के लिए | इसी तरह हौसला बढ़ाते रहे |
ReplyDeleteधन्यवाद् |
आप की कवीता बहुत आचा लगा पढ़ के
ReplyDeleteवह क्या बात है
धन्यवाद् विद्या जी |
ReplyDeleteविदाई पर बढ़िया रचना ... रविकर जी की रचना भी बहुत अच्छी लगी
ReplyDeletebhut sundar rachna hai. badhayee
ReplyDeleteसंगीता जी, लखनवी जी, बहुत बहुत धन्यवाद् इसी तरह मेरे ब्लॉग में आकर उत्साह बर्धन करते रहें |
ReplyDeleteVisited for the first time... nice one...
ReplyDeleteAchha laga... chawani aadhar thi...par ab bekar hai...
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