नकाब पे नकाब लगाते हैं लोग,
अपनी असल पहचान छुपाते हैं लोग,
अंदर से वो होते कुछ और ऐ "दीप",
और बाहर से कुछ और दिखाते हैं लोग ।
जाने कितने ही रिश्ते बनाते हैं लोग,
पर कितने रिश्ते निभाते हैं लोग,
"दीप" कहे लोग होशियार हो चले,
वादे पे वादे किये जाते हैं लोग,
उन वादों से अकसर मुकर जाते हैं लोग,
भरोसा आखिर करे तो किसपे ऐ "दीप",
भरोसे तो अकसर तोड़ जाते हैं लोग ।
इंसानों को ही अकसर सताते हैं लोग,
अपनी असल पहचान छुपाते हैं लोग,
अंदर से वो होते कुछ और ऐ "दीप",
और बाहर से कुछ और दिखाते हैं लोग ।
जाने कितने ही रिश्ते बनाते हैं लोग,
पर कितने रिश्ते निभाते हैं लोग,
"दीप" कहे लोग होशियार हो चले,
काम निकल जाने पे भूल जाते हैं लोग ।
वादे पे वादे किये जाते हैं लोग,
उन वादों से अकसर मुकर जाते हैं लोग,
भरोसा आखिर करे तो किसपे ऐ "दीप",
भरोसे तो अकसर तोड़ जाते हैं लोग ।
इंसानों को ही अकसर सताते हैं लोग,
दुश्मनी भी शान से निभाते हैं लोग,
"दीप" कहे इंसान ही इंसान का दुश्मन,
इंसान से शैतान भी बन जाते हैं लोग ।
अपनी गलतियाँ अकसर छुपाते हैं लोग,
पर औरों पे ऊँगली उठाते हैं लोग,
अपने गिरेबान में कोई झाँकता नहीं ऐ "दीप",
और गलतियों का पुलिंदा बना जाते हैं लोग ।
प्रकृति की कृति बदल जाते हैं लोग,
भगवान को धर्मों में बाँट जाते हैं लोग,
ताक में रखकर मानवता को "दीप",
खुद को ही ईश्वर समझ जाते हैं लोग ।
अपनी गलतियाँ अकसर छुपाते हैं लोग,
ReplyDeleteपर औरों पे ऊँगली उठाते हैं लोग,
अपने गिरेबान में कोई झाँकता ऐ "दीप",
और गलतियों का पुलिंदा बना जाते हैं लोग ।
kya khoob kahi hai.
अंदर से वो होते कुछ और ऐ "दीप",
ReplyDeleteऔर बाहर से कुछ और दिखाते हैं लोग ।
bahut sateek bhavabhivyakti .badhai
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (04.06.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:-Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
स्पेशल काव्यमयी चर्चाः-“चाहत” (आरती झा)
so true... almost everyone is masked and have a fake outer identity.
ReplyDeleteBeautifully expressed
"अपनी गलतियाँ अकसर छुपाते हैं लोग,
ReplyDeleteपर औरों पे ऊँगली उठाते हैं लोग,
अपने गिरेबान में कोई झाँकता नहीं
और गलतियों का पुलिंदा बना जाते हैं लोग ।
प्रकृति की कृति बदल जाते हैं लोग,
भगवान को धर्मों में बाँट जाते हैं लोग,
ताक में रखकर मानवता को
खुद को ही ईश्वर समझ जाते हैं लोग ।":
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ |
सुन्दर पंक्तिया..... सच्चाई को दर्शाती दिल को छू लेने वाली कविता
आपका अंदाज़ सबसे अलग है ! शुभकामनायें आपको !!
आपकी सारी कवितायें पढ़ी सभी कविताएं रोचक एवं बेजोड़ हैं
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत आज के इन्सान की फितरत ब्यान करती खुबसूरत रचना |
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.
ReplyDeleteबहुत सार्थक और सुन्दर रचना...
ReplyDeleteभगवान को धर्मों में बाँट जाते हैं लोग,
ReplyDeleteताक में रखकर मानवता को "दीप",
खुद को ही ईश्वर समझ जाते हैं लोग ।bahut saarthak rachanaa.badhaai sweekaren
mere blog main aane ke liye dhanyawaad.