बचपन में जब नासमझ था,
काव्य का मुझको क्या समझ था,
गुप्त संसार में पड़ा हुआ था,
ये कवि हृदय मेरा ।
बीत गए अनमोल पल,
खेल-कूद में गया निकल,
बाल मन में जाग न पाया,
ये कवि हृदय मेरा ।
तब भी तो मै ठाठ में था,
शायद कक्षा आठ में था,
एक शख्स ने जगा दिया,
सुप्त कवि हृदय मेरा ।
हिन्दी के थे शिक्षक सख्त,
नाम था उनका राम जी भक्त,
पानी डाल वे सींच गए,
ये कवि हृदय मेरा ।
फिर तो जैसे ललक उठी,
भावनाएँ भी धधक उठी,
झर-झर काव्य बहाने लगा,
ये कवि हृदय मेरा ।
समय के साथ मैं चलता रहा,
काव्य का मुझको क्या समझ था,
गुप्त संसार में पड़ा हुआ था,
ये कवि हृदय मेरा ।
बीत गए अनमोल पल,
खेल-कूद में गया निकल,
बाल मन में जाग न पाया,
ये कवि हृदय मेरा ।
तब भी तो मै ठाठ में था,
शायद कक्षा आठ में था,
एक शख्स ने जगा दिया,
सुप्त कवि हृदय मेरा ।
हिन्दी के थे शिक्षक सख्त,
नाम था उनका राम जी भक्त,
पानी डाल वे सींच गए,
ये कवि हृदय मेरा ।
फिर तो जैसे ललक उठी,
भावनाएँ भी धधक उठी,
झर-झर काव्य बहाने लगा,
ये कवि हृदय मेरा ।
समय के साथ मैं चलता रहा,
पढ़ाई के साथ ही पलता रहा,
पर धीमे-धीमे धीमा पड़ा,
ये कवि हृदय मेरा ।
दिल में तो एक ओज-सा था,
पर पढ़ाई का बोझ-सा था,
शिक्षा संग न चल पाया,
ये कवि हृदय मेरा ।
उच्च शिक्षा की बारी आई,
अभियंत्रण में हाथ लगाई,
किताबों बीच ही दबा रहा,
ये कवि हृदय मेरा ।
सेमेस्टरों में धँसा रहा,
परीक्षाओं में फँसा रहा,
साहित्य पटल पर चमक न पाया,
ये कवि हृदय मेरा ।
अभियंता बन निहाल हुआ,
शादी कर खुशहाल हुआ,
पर उपेक्षित रह गया,
ये कवि हृदय मेरा ।
जिम्मेदारी आज बुझ रहा हूँ,
जिम्मेदारी आज बुझ रहा हूँ,
समय की कमी से जूझ रहा हूँ,
पर आशा है सुप्त न रहे,
ये कवि हृदय मेरा ।
घर और नौकरी निभाना है,
जिन्दगी को भी भुनाना है,
सब के साथ बस जागृत रहे,
ये कवि हृदय मेरा ।
रचता रहूँ है कामना,
लेखनी को दूँ आराम ना,
पुष्ट और संतुष्ट रहे,
ये कवि हृदय मेरा ।
नहीं हूँ मैं कवि,
पर दिल में काव्य की है छवि,
भावनाओं संग छलक है पड़ता,
ये कवि हृदय मेरा ।
bahut sunder abhibyakti.badhaai aapko.नहीं हूँ मैं कवि,
ReplyDeleteपर दिल में काव्य की है छवि,
भावनाओं संग छलक है पड़ता,
ये कवि हृदय मेरा
उच्च शिक्षा की बारी आई,
ReplyDeleteअभियंत्रण में हाथ लगाई,
किताबों बीच ही दबा रहा,
ये कवि हृदय मेरा ।
sundar bhavabhivyakti.
प्रदीप जी सप्रेम साहित्याभिवादन ...
ReplyDeleteआपकी कविताओं को पढ़ा बहुत ही मनभावन लगा आपको हार्दिक बधाई ....
pradip ji.. apne mail id par aapka message padhkar aap tak pahuncha.. abhi pehil rachna hi padhi ...apka kavi hriday..purntaya swastha aur jagrat awastha mein hai.. kavita ke nirjhar jharne satat bahte hi rahenge.. harik shubhkamnaon aur apne blog www.ashutoshmishrasagar.blogspot.com per visit ke amantran ke sath
ReplyDeleteअन्यथा न लें:
ReplyDeleteकाव्य की मुझको क्या समझ था...
को
काव्य की मुझको क्या समझ थी..
होना चाहिये या फिर कुछ और ध्यान लगायें...
बाकी भाव बहुत उम्दा हैं बधाई..
आपके बहुमुल्य सलाह के लिए धन्यवाद । पर मैने पढ़ा था कि 'कविता' स्त्रीलिंग होती है और काव्य पुर्लिंग । इसलिए मैने ऐसा लिखा-"काव्य का मुझको क्या समझ था ।"
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्द चुने आपने कविताओं के लिए..
ReplyDeleteमुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
ReplyDeleteबहत ही उम्दा | भगवान से यही प्रार्थना है की आपका कवि हृदय हमेशा खुश रहे |
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