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Tuesday, June 28, 2011

दर्द-ए-ईश्क

दर्द-ए-ईश्क पत्थर को भी रुलाता है ऐ "दीप",
हर शख्स किसी न किसी के प्यार में खोया होगा;
यूँ ही नहीं गिरा करती हैं ओंस की बुँदे,
आसमान भी शायद किसी के गम मे रोया होगा ।

चकोर के दिल में भी उठती होगी चाँद के लिए हुक,
मयूर ने भी घटा संग प्रेम का बीज बोया होगा;
पत्थर दिल कहते हैं कि आँसू नहीं आते,
पर उसने भी किसी की याद मे आँख भिंगोया होगा ।

नदियों ने भी सौंपी होंगी सागर को ख्वाहिशे,
पौधे ने भी लताओ संग सपना संजोया होगा;
कभी खुशी तो कभी गम के आँसू देता ये दर्द,
इस दर्द को भी सबने सिद्दत से जीवन मे पिरोया होगा ।

8 comments:

  1. रचना के भाव अच्छे लगे।
    हुक को हूक कर दें।

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  2. दर्द-ए-ईश्क पत्थर को भी रुलाता है ऐ "दीप",
    हर शख्स किसी न किसी के प्यार में खोया होगा;
    यूँ ही नहीं गिरा करती हैं ओंस की बुँदे,
    आसमान भी शायद किसी के गम मे रोया होगा ।
    bahut sundar bhavpoorn.

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  3. मनोज जी, आपकी टिप्पणी के लिए आभार । यूँ ही मेरा हौंसला बढ़ाते रहें ।

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  4. मनीष जी, अपनी राय से अवगत कराने के लिए धन्यवाद । इसी तरह पधारते रहें मेरा ब्लॉग में ।

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  5. शालिनी जी, मेरी हर रचना में आपकी टिप्पणी जरुर मिलती है । बहुत बहुत धन्यवाद । इसी तरह संपर्क बनाये रखें । आभार ।

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  6. बहुत सुंदर !
    कविता को एक नए अंदाज़ में परिभाषित किया है आप ने !

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  7. अपनी टिप्पणियों से मेरा उत्साह बर्धन करने के लिए सबका धन्यवाद् |

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