मुमकिन है दो लफ्ज़ तुम भी कह दो,
लब मेरे भी थोड़े थिरक जाएँ,
पर बस इतना काफी तो नहीं है;
सन्नाटे का मंजर यहाँ कुछ और ही है,
तेरे-मेरे दो लफ्ज़ मिटा नहीं सकते,
सन्नाटे को यूँ ही हम चीर नहीं सकते;
कह दो उस से जो सुनता है तुम्हे,
वो भी कह देगा ऐसे ही किसी और को,
लाना है बदलाव अगर
या मिटाना है ये सन्नाटा अगर
तो बोलना होगा हममे से हर एक को ही,
चीर अगर देना है अँधेरे को यूँ,
"दीप" होगा जलाना हर एक को ही ।
बात अब ये सिर्फ तेरी या मेरी नहीं है,
मुद्दा है सबका, हाँ हम सबका,
हम, तुम, वो, वो और सारे वो,
मिल जुलके ही भेद पाएंगे इसे ।
बढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteनवरात्रि की शुभकामनायें-
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteसार्थक विचार...
अनु
सुन्दर रचना...
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteलाना है बदलाव अगर
ReplyDeleteया मिटाना है ये सन्नाटा अगर
तो बोलना होगा हममे से हर एक को ही,... बिलकुल सही लिखा है आपने
बहुत सुन्दर एवं सार्थक ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर उम्दा प्रस्तुति.!
ReplyDeleteनवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनायें-
RECENT POST : पाँच दोहे,
बहुत सुन्दर एवं सार्थक प्रस्तुति,नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनायें.
ReplyDeleteबिल्कुल सही तभी बदलाव संभव है....
ReplyDeleteसार्थक रचना !!
बहुत सुंदर .सार्थक रचना .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति .
ReplyDeleteनवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएँ