मेरे साथी:-

Tuesday, October 22, 2013

दिल की हरियाली

(मेरी डायरी से- ये मेरी दूसरी कविता है जो मैंने तब लिखी थी जब मैं दसवीं कक्षा में था |)

कहने लगे कुछ भी न हुआ,
ये दिल जानता है बहुत कुछ हुआ;
न सोचा कभी था वैसा भी हुआ,
है अधर में कुछ बात ऐसा अटका हुआ |

पेड़ गिरने लगे, जल भी सूखने लगा,
हरियाली न पूछो वह तो मिट सा गया;
फूल भी अब डालों से गिरने लगे,
गिर सपनो को आहत वह करता गया |

एक ऐसा समय था जब थे वे हरे,
हरा था समां दिल भी था कुछ खिला;
ऐसा लगता था जैसे ऐसे ही रहे,
आगे का सफ़र भी मैं चलता चला |

वो मौसम था ऐसा सब थे हँसते हुए,
जरा-सा भी दुःख कहीं भाता न था;
फल भी मैं चखुंगा कुछ दिन है हुए,
ऐसा विश्वास भी था जो हिलता न था |

एक ऐसा हवा का झोंका चला,
पेड़ों से सब पत्तों को लेता चला;
गिर पेड़ों से सपना मिटटी में जा मिला,
कुछ क्षणों में समां धुंधला हो चला |

सब देखते रहे सब ख़तम हो गया,
सारी हरियाली में काला रंग चढ़ गया;
मैं गया जो उन पेड़ों के नजदीक में,
देख दुःख उनका भूल अपना गया |

मिल सकेंगे न फिर इस जग में कभी,
पेड़-पत्ते ऐसे ही जुदा हो गए;
न गलती है मेरी न उसकी सुनो,
प्राण रहते भी पत्तों सा निष्प्राण हुए |

सारे जग में हमेशा ऐसा ही हुआ,
पत्ते-पेड़ों से ऐसे ही झड़ते ही हैं;
दिल की हरियाली भी एक दिन मिटती ही है,
जो मिलते हैं एक दिन बिछड़ते भी हैं |

कथा हरियाली की ऐसे चलती ही है,
पेड़ों का ये हरा रंग भी उड़ जाता है;
परिवर्तन तो दुनिया में होता ही है,
फिर पत्तों को पा पेड़ खिल जाता है |

पेड़ों की छोड़ दो और लोगों की लो,
कोई रोता है तो कभी हँसता भी है;
पर पहला कभी कुछ जो खो जाता है,
लाख मिलने पर भी पहला मिलता न है |

20.04.1999

Friday, October 18, 2013

झारखण्ड की सैर

झारखण्ड का नक्शा
तू चल मेरे साथ, मैं तुझे झारखण्ड की सैर कराता हूँ,
भारत भूमि के एक अभिन्न अंग के बारे में बतलाता हूँ |
बिरसा मुंडा की प्रतिमा, बोकारो
ये बिरसा भगवान् की भूमि, सिद्धू-कान्हू की धरती यह,
प्रकृति की छटा है अनुपम, खनिज-सम्पदा की धरती यह |
हुंडरू जल-प्रपात, रांची
गोद में बैठी प्रकृति की, राजधानी रांची है यहाँ की,
जल-प्रपातों का यह शहर, जलवायु खुशनुमा जहाँ की |
बैद्यनाथ धाम मंदिर, देवघर
देवघर का शिवलिंग
यह देखो ये बैद्यनाथ धाम, जो देवघर भी कहलाता है,
शिव-शंकर के ज्योतिर्लिंग से पावन धाम सुहाता है |
टाटा इस्पात कारखाना का दृश्य
इस्पातों के एक शहंशाह जमशेद जी ने जो बसाया है,
ये जमशेदपुर, टाटा नगर जो विश्व पटल पर छाया है |
बोकारो इस्पात संयंत्र
इस्पातों की एक और है नगरी, बोकारो इस्पात नगर यह,
फले-फुले कई उद्योग-धंधे, भले मानुषों का शहर यह |
कोयले की खान, धनबाद
आई.एस.एम., धनबाद
देश की कोयला राजधानी चलो, नाम ही जिसका धनबाद है,
आई.एस.एम. के लिए प्रतिष्ठित, कोयला खानों से आबाद है |
माँ छिन्नमस्तिके मंदिर, रजरप्पा
देवडी मंदिर
रजरप्पा में छिन्नमस्तिके, देवडी में माँ का मंदिर साजे,
मधुबन में है जैन तीर्थालय, हरिहर धाम में शिव विराजे |
हरिहर धाम, गिरिडीह
मधुबन
दामोदर और स्वर्णरेखा नदी, झारखण्ड की पहचान है,
कई बांध और कई परियोजना, बढ़ाते हमारी शान है |
कांके डैम, रांची
कर्क रेखा हृदय से गुजरता, कई उच्च पथ से जुड़ा यह,
ग्रैंड ट्रंक है जान यहाँ की, देश के हर कोने से जुड़ा यह |
वन्यजीव अभ्यारण्य विशाल है, वन धरती हजारीबाग में,
पहाड़ियां और कई झीलें हैं, बस जाये जो दिल के बाग़ में |
मैथन डैम
तिलैया डैम
झुमरी तिलैया डैम है मोहक, तेनु, कोनार, मैथन बाँध भी,
खंडोली और चांडिल डैम भी, कांके और पंचेत बाँध भी |
चांडिल डैम
उर्वरक फैक्ट्री सिंदरी बंद, गोमिया में बारूद कारखाना,
हटिया में भारी मशीन तंत्र और कांके में है पागलखाना |

तेनुघाट डैम
पतरातू व् चन्द्रपुरा सहित यहाँ कई विद्युत् के निकाय हैं,
यहाँ की बिजली, कई जगह रोशन पर खुद ही असहाय है |
बोकारो थर्मल पॉवर स्टेशन
राजभाषा है हिंदी पर खोरठा, हो, मुंडा, संथाली भी,
बंगला, ओडिया, उर्दू भी कई रंग की यहाँ बोली भी |
टुसू पर्व का दृश्य
टुसू, कर्मा, सरहुल, सोहराय और गोबर्धन पूजे जाते हैं,
माँ मनसा व भोक्ता पूजा, हर देव-देवी यहाँ पूजे जाते हैं |
माँ मनसा
वन्य भूमि ये, देव भूमि ये, "दीप" मैं सबको समझाता हूँ,
तू चल मेरे साथ, मैं तुझे झारखण्ड की सैर कराता हूँ |


सभी चित्र गूगल से साभार 

Wednesday, October 9, 2013

मेरी चाहत

क्या हुआ जो तूने ये होंठ सिल रखे,
आँखों ने तो तेरी सब बयाँ कर दिया,
माना कि प्यार है खामोशियों से तुम्हे,
धडकनों ने शोर यहाँ वहां कर दिया । 

छुपाये रखो जज्बातों को दिल ही दिल में,
ये तो एक हसीं सी अदा है तुम्हारी,
खोले बिना लब को ये क्या किया तूने,
दिल में मेरे तूने अपना निशाँ कर दिया । 

अदब से पेश हुआ नजराना दिल का,
न स्वीकारा न ठुकराया तूने ये क्या किया,
बचती रही अक्सर तुम मुझसे लेकिन,
मेरी चाहत ने मशहूर तेरा जहाँ कर दिया ।

चुप्पी ये तेरी इकरार ही तो है ऐ "दीप",
तुझमें ही अब सबकुछ है पा लिया मैंने,
ख्वाबों की दुनिया में ले चला तुझको,
कहाँ मैं था और तूने कहाँ कर दिया । 

(आज मेरे ब्लॉग को फॉलो करने वाले भद्रजनों की संख्या 100 हो गई है । आप सबके सहयोग, स्नेह और आशीर्वाद के लिए बहुत बहुत आभार । आप सब अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखे |)

Monday, October 7, 2013

सन्नाटा

मुमकिन है दो लफ्ज़ तुम भी कह दो,
लब मेरे भी थोड़े थिरक जाएँ,
पर बस इतना काफी तो नहीं है;
सन्नाटे का मंजर यहाँ कुछ और ही है,
तेरे-मेरे दो लफ्ज़ मिटा नहीं सकते,
सन्नाटे को यूँ ही हम चीर नहीं सकते;
कह दो उस से जो सुनता है तुम्हे,
वो भी कह देगा ऐसे ही किसी और को,
लाना है बदलाव अगर
या मिटाना है ये सन्नाटा अगर
तो बोलना होगा हममे से हर एक को ही,
चीर अगर देना है अँधेरे को यूँ,
"दीप" होगा जलाना हर एक को ही ।
बात अब ये सिर्फ तेरी या मेरी नहीं है,
मुद्दा है सबका, हाँ हम सबका,
हम, तुम, वो, वो और सारे वो,
मिल जुलके ही भेद पाएंगे इसे ।

Thursday, October 3, 2013

एक कड़ा संदेश

न्यायालय ने दे दिया, एक कड़ा संदेश ।
भ्रष्टाचारियों सावधान, जाग रहा है देश ।।

नौकरशाह हो या नेता, घिर रहें हैं आज |
नोट नीति से कब तक, कुचलोगे आवाज ||

भ्रष्ट कर्म किए जो तूने, नहीं छुपेगा राज |
ऊपर वाले का सोंटा, बनके गिरेगा गाज़ ||

आज नहीं तो वर्षों बाद, खो दोगे तुम आपा |
यौवन का सब किया धरा, भरेगा तेरा बुढ़ापा ||

लालच में जब आ करके, बेच दिया है जमीर |
जेल की खिचड़ी भाग्य में, कहाँ मिलेगा खीर ||

न्याय तंत्र पे जाग गया, आज पुनः विश्वास |
भ्रष्ट हो जो वो अंदर हो, आम जनता की आस ||

नाच नचाते ही रहे, सबको तुम पल-पल |
कानून तुझे नचवायेगा, आएगा वो कल ||

Saturday, September 28, 2013

जख्मों का हिसाब (दर्द भरी हास्य कविता)

फटी-सी एक डायरी में,
लिख रखा है मैंने;
है पाई-पाई का तेरे,
हर जख्मों का हिसाब |

कब तूने तोड़ा दिल,
कब की थी रुसवाई;
कब हुई थी बेवफा,
हर तारीख है जनाब |

क्यों फोन का मेरे,
न दिया था जवाब,
भागती ही रही दूर,
ओढ़ नकली हिज़ाब |

पछताओगी एक दिन,
याद करोगी मुझको;
जब ढल जायेगा यौवन,
जब लगाओगी खिजाब |

वो मुस्कुराहट भी तेरी,
बेशर्मों-सी ही थी;
जब घुटनों के बल आके,
तुझे देता था गुलाब |

बस दोस्त कभी कहती,
कभी प्यार थी बनाती;
बिन पेंदी के लौटा का,
तुझे दूंगा मैं खिताब |

दुखाया है इस दिल को, 
तूने जाने कितनी बार;
आंसूं हैं दिए तूने,
मुझ गरीब को बेहिसाब |

झूठे तेरे प्रेम पत्र,
फेंक दिए हाँ मैंने;
कोई गिरा गंगा में,
कोई जा गिरा चिनाब |

कभी प्यार से की बातें,
कभी गोलियां जैसे बोली;
लहू-लुहान किया दिल को,
क्या तेरा भाई था कसाब ?

न हो तू यूँ बेताब,
तुझे मिल जायेगा जवाब;
जब छापूंगा ये किताब,
तेरे जख्मों का हिसाब |

Monday, September 23, 2013

चलो अवध का धाम

श्री राम लला


 चलो अवध का धाम
भाई रे, चलो अवध का धाम । 
चलो अवध का धाम
बंधु रे, चलो अवध का धाम ।

श्री सरयू घाट

सरयू तट पर बसा मनोरम ,
कण-कण पावन धरा यहाँ की ;
दरश मात्र सब पाप भगाता ,
है सुधा-सी हवा जहाँ की ।


दशरथ जी का राजमहल


सब सुर, देवी यहाँ विराजे ,
जहाँ जन्म लिए राम । 
भाई रे, चलो अवध का धाम । 
बन्धु  रे, चलो अवध का धाम । 


श्री कनक भवन

हनुमान की गढ़ी विशाला,
कनक भवन है दिव्य यहाँ पे ;
राम जन्म भूमि दर्शन कर लो ,
घर-घर देवालय जहाँ पे । 



तुलसी उद्यान


पहर-पहर हर बेला-बेला ,
गूंजता राम का नाम । 
भाई रे, चलो अवध का धाम । 
बन्धु रे, चलो अवध का धाम । 

श्री हनुमान गढ़ी


रामनवमी की अद्भुत मेला ,
बलि बजरंगा स्वयं पधारे ;
लखन, सिया संग राम यहाँ पे ,
झूले झूलन सावन सारे । 


बाल्मीकि भवन



भर लो मन में श्रद्धा प्रभु की,
बोलो जय सिया राम । 
भाई रे, चलो अवध का धाम । 
बन्धु रे, चलो अवध का धाम । 


अयोध्या स्टेशन


श्री राम जय राम जय जय राम !!
जय सिया राम !!!!


सभी चित्र गूगल से साभार । 

Friday, September 20, 2013

इक नई दुनिया बनाना है अभी

आज फिर से, एक नया सा, स्वप्न सजाना है अभी,
आज फिर से, इक नई दुनिया बनाना है अभी |

कह दिया है, जिंदगी से, राह न मेरा देखना,
खुद ही जाके, औरों पे, खुद को लुटाना है अभी |

साख पे, बैठे परिंदे, हिल रहे हैं खौफ से,
घोंसला उनका सजा कर, डर भागना है अभी |

लग गई है, आग अब, दुनिया में देखो हर तरफ,
बाँट कर, शीत प्रेम फिर से, वो बुझाना है अभी |

जा रहा है, वह मसीहा, रूठकर हम सब से ही,
रोक कर उसका पलायन, यूँ मनाना है अभी |

दिख रहे, सोये हुए से, जाने कितने कुम्भकरण,
पीट कर के, ढोल को, उनको जगाना है अभी |

देखती, माँ भारती, आँखों में लेके, अश्रु-सा,
सोख ले, उन अश्क को, कुछ कर दिखाना है अभी |

राह को हर, कर दे रौशन, रख दूं ऐसा "दीप" मैं,
आज फिर से, इक नई दुनिया बनाना है अभी |

Saturday, September 14, 2013

कस लो कमर हे हिंद वासियों !!

कस लो कमर हे हिंद वासियों, हिंदी को चमकाना है,
भारत माँ के माथे की बिंदी में इसे सजाना है । 

अब बेड़ियों से आज़ादी इसको हमें दिलाना है,
जो अधिकार मिला नहीं है, हम सबको दिलवाना है । 

हर कोने में हिन्द देश के हिंदी को पहुँचाना है,
हर हिंदी भाषी को दिल से बीड़ा ये उठाना है । 

संस्कृत की इस दिव्या सुता को जन-जन से मिलवाना है,
भारत को अपनी भाषा में, विकसित करके दिखाना है । 

कमतर नहीं किसी भाषा से, दुनिया को दिखलाना है,
अपने हर आचार, विचार, हर व्यवहार में लाना है । 

अपने दर से दिल्ली तक, सर्वत्र इसे अपनाना है,
कस लो कमर हे हिंद वासियों, हिंदी को चमकाना । 


सभी को हिंदी दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं । 

Friday, January 25, 2013

कर तो लो आराम

रंजिश में ही बीत गई है तेरी तो हर शाम,
छुट्टी लेकर बैर भाव से, कर तो लो आराम |

आपा-धापी, भागम-भाग में,
ठोकर खाकर, गिर संभलकर,
कभी किसी की टांग खींचकर,
कभी गंदगी में भी चलकर |

यहाँ से वहाँ दौड़ के करते, उल्टे सीधे काम,
छुट्टी लेकर भाग-दौड़ से, कर तो लो आराम |

कभी किसी की की खुशामद,
कभी कहीं अकड़ कर बोले,
कभी कहीं पे की होशियारी,
कहीं-कहीं पे बन गए भोले |

बक-बक में ही गुजर गया, जीवन हुआ हराम,
छुट्टी लेकर शोर-गुल से, कर तो लो आराम |

वक्त बेवक्त अपनों की सोची,
सबके लिए बस लगे ही रहे,
झूठ-सच की करी कमाई,
पर पथ में तुम जमे ही रहे |

       अपनों के लिए पीते ही रहे, स्वाद स्वाद के जाम,
       कुछ वक्त खुद को भी देकर, कर तो लो आराम |

हिंदी में लिखिए:

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E-mail Id:
pradip_kumar110@yahoo.com

Mobile number:
09006757417

धन्यवाद ज्ञापन

"मेरा काव्य-पिटारा" ब्लॉग में आयें और मेरी कविताओं को पढ़ें |

आपसे निवेदन है कि जो भी आपकी इच्छा हो आप टिप्पणी के रूप में बतायें |

यह बताएं कि आपको मेरी कवितायेँ कैसी लगी और अगर आपको कोई त्रुटी नजर आती है तो वो भी अवश्य बतायें |

आपकी कोई भी राय मेरे लिए महत्वपूर्ण होगा |

मेरे ब्लॉग पे आने के लिए आपका धन्यवाद |

-प्रदीप