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Friday, September 20, 2013

इक नई दुनिया बनाना है अभी

आज फिर से, एक नया सा, स्वप्न सजाना है अभी,
आज फिर से, इक नई दुनिया बनाना है अभी |

कह दिया है, जिंदगी से, राह न मेरा देखना,
खुद ही जाके, औरों पे, खुद को लुटाना है अभी |

साख पे, बैठे परिंदे, हिल रहे हैं खौफ से,
घोंसला उनका सजा कर, डर भागना है अभी |

लग गई है, आग अब, दुनिया में देखो हर तरफ,
बाँट कर, शीत प्रेम फिर से, वो बुझाना है अभी |

जा रहा है, वह मसीहा, रूठकर हम सब से ही,
रोक कर उसका पलायन, यूँ मनाना है अभी |

दिख रहे, सोये हुए से, जाने कितने कुम्भकरण,
पीट कर के, ढोल को, उनको जगाना है अभी |

देखती, माँ भारती, आँखों में लेके, अश्रु-सा,
सोख ले, उन अश्क को, कुछ कर दिखाना है अभी |

राह को हर, कर दे रौशन, रख दूं ऐसा "दीप" मैं,
आज फिर से, इक नई दुनिया बनाना है अभी |

4 comments:

  1. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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  2. बहुत सुन्दर रचना, आपको बधाई

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