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Sunday, September 9, 2012

तुम्ही प्रेरणा हो

ध्याता हूँ तुझे तो,
कविता बन पड़ती है,
मानस निर्झर से,
अनायास बह पड़ती है;
तुम ही मेरा काव्य हो,
तुम्ही प्रेरणा हो |

निरूप से अक्षर भी,
अलौकिक शब्द बन पड़ते हैं,
निरर्थ वाक्यांश भी,
मोहक छंद सज पड़ते हैं;
तुम ही मेरी कविता हो,
तुम्ही प्रेरणा हो |

तेरी बस छवि मात्र,
अतिकान्त भाव दे जाती है,
अवघट सी बेरा में भी,
सरस उद्गार दे जाती है;
तुम ही मेरी रचना हो,
तुम्ही प्रेरणा हो |

एक तेरा स्मरण नीक,
कवि हृदय जगा जाता है,
बिम्ब तेरा अमंद वेग का,
मन में संचार करा जाता है;
तुम ही मेरी संवेदना हो,
तुम्ही प्रेरणा हो |

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
    मनभावन...
    किसी खास की याद मन में
    भावनाओं का संचार कर देती है और उमड़ पड़ती है भावनाओं ..और संवेदनाओं की खुबसूरत अभिव्यक्ति...
    :-)

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  2. बहुत बढ़िया प्रस्तुति संवेदना की प्रेरणा,,,,,

    प्रदीप जी,मै आपके पोस्ट पर नियमित आता हूँ ,आप दूसरों से कमेंट्स की आशा रखते रखते है,कमेंट्स देने वाला भी आपसे यही यही आशा रखता है,और ब्लॉग जगत का यही तो एक शिष्टाचार है,आइये आपका स्वागत है,,,
    RECENT POST,तुम जो मुस्करा दो,

    ReplyDelete
  3. वाह...
    बहुत सुन्दर रचना..

    अनु

    ReplyDelete
  4. प्रदीप जी आपके ब्लॉग पर पहली बार आया , बहुत अच्छा लगा .आपकी कविता में भाव है, प्रवाह है ,सुन्दर .आपकी टिपण्णी मेल men आया ,पोस्ट के नीचे नहीं.

    ReplyDelete

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