अजब गजब दुनिया है भैया,
अजब गजब हैं लोग ।
रहे भागते जीवन भर ये,
क्या ना करें प्रयोग ।।
पैसों पर ही ध्यान है सबका,
नहीं कहीं है चैन।
दिन भर तो ये रहे ऊँघते,
नींद बिना है रैन ।।
रिश्ते नाते भूल गए सब,
हुआ ये जीवन व्यर्थ ।
स्वार्थ सिद्धि ही जीवन इनका,
परहित में असमर्थ ।।
सब पर ही संदेह है अब तो,
नहीं कहीं विश्वास ।
जिससे थोड़ा लाभ है मिलता,
वही है खासम ख़ास ।।
देश की खाकर लगे बोलने,
लोग विदेशी बोल ।
दुश्मन का गुणगान हैं करते,
कैसा है ये झोल ।।
-प्रदीप कुमार साहनी
अजब गजब हैं लोग ।
रहे भागते जीवन भर ये,
क्या ना करें प्रयोग ।।
पैसों पर ही ध्यान है सबका,
नहीं कहीं है चैन।
दिन भर तो ये रहे ऊँघते,
नींद बिना है रैन ।।
रिश्ते नाते भूल गए सब,
हुआ ये जीवन व्यर्थ ।
स्वार्थ सिद्धि ही जीवन इनका,
परहित में असमर्थ ।।
सब पर ही संदेह है अब तो,
नहीं कहीं विश्वास ।
जिससे थोड़ा लाभ है मिलता,
वही है खासम ख़ास ।।
देश की खाकर लगे बोलने,
लोग विदेशी बोल ।
दुश्मन का गुणगान हैं करते,
कैसा है ये झोल ।।
-प्रदीप कुमार साहनी
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (29-02-2016) को "हम देख-देख ललचाते हैं" (चर्चा अंक-2267) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " "सठ सन विनय कुटिल सन प्रीती...." " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बढिया प्रस्तुति। यही आज की सच्चाई है!
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