भीड़ में रहकर भी वास्ता है तन्हाई से,
यादों में तेरे दिन गुजर जाता रहा है ।
तू खिलखिलाती रही है, मैं मुस्कुराता रहा हूँ,
मुस्कुराहट का सबब दिल बताता रहा है ।
आँखें बंद कर अकसर यादें टटोलता हूँ मैं,
तू आती नहीं है, और ये जाता रहा है ।
रुसवाई की शिकायत क्या करोगी मुझसे,
प्यार मेरा खुद रुसवा कराता रहा है ।
मुफलिसी का आलम अब पुछो नहीं हमसे,
मैं जीतता रहा हूँ, ये हराता रहा है ।
चराग-ए-ईश्क लेकर, हूँ आगे मैं आया,
जल यादों का दिया यूँ सताता रहा है ।
इस हुश्न पर तेरे, मैं कुर्बान तो हो लूँ,
पर ईश्क ये नामुराद यूँ रुकाता रहा है ।
रहनुमा-ए-ईश्क कभी बनना नहीं है मुझको,
प्यादा बनने की चाह दिल लुभाता रहा है ।
दूर तू मुझसे,यूँ जाती रही हर वक्त ही,
दिल कमबख्त सपनो में घर बसाता रहा है ।
-प्रदीप कुमार साहनी
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