मेरे साथी:-

Monday, February 8, 2016

यादों में तेरे दिन गुजर जाता रहा है

भीड़ में रहकर भी वास्ता है तन्हाई से,
यादों में तेरे दिन गुजर जाता रहा है ।

तू खिलखिलाती रही है, मैं मुस्कुराता रहा हूँ,
मुस्कुराहट का सबब दिल बताता रहा है ।

आँखें बंद कर अकसर यादें टटोलता हूँ मैं,
तू आती नहीं है, और ये जाता रहा है ।

रुसवाई की शिकायत क्या करोगी मुझसे,
प्यार मेरा खुद रुसवा कराता रहा है ।

मुफलिसी का आलम अब पुछो नहीं हमसे,
मैं जीतता रहा हूँ, ये हराता रहा है ।

चराग-ए-ईश्क लेकर, हूँ आगे मैं आया,
जल यादों का दिया यूँ सताता रहा है ।

इस हुश्न पर तेरे, मैं कुर्बान तो हो लूँ,
पर ईश्क ये नामुराद यूँ रुकाता रहा है ।

रहनुमा-ए-ईश्क कभी बनना नहीं है मुझको,
प्यादा बनने की चाह दिल लुभाता रहा है ।

दूर तू मुझसे,यूँ जाती रही हर वक्त ही,
दिल कमबख्त सपनो में घर बसाता रहा है ।

-प्रदीप कुमार साहनी

No comments:

Post a Comment

कृपया अपनी टिप्पणी दें और उचित राय दें | आपके हर एक शब्द के लिए तहेदिल से धन्यवाद |
यहाँ भी पधारें:-"काव्य का संसार"

हिंदी में लिखिए:

संपर्क करें:-->

E-mail Id:
pradip_kumar110@yahoo.com

Mobile number:
09006757417

धन्यवाद ज्ञापन

"मेरा काव्य-पिटारा" ब्लॉग में आयें और मेरी कविताओं को पढ़ें |

आपसे निवेदन है कि जो भी आपकी इच्छा हो आप टिप्पणी के रूप में बतायें |

यह बताएं कि आपको मेरी कवितायेँ कैसी लगी और अगर आपको कोई त्रुटी नजर आती है तो वो भी अवश्य बतायें |

आपकी कोई भी राय मेरे लिए महत्वपूर्ण होगा |

मेरे ब्लॉग पे आने के लिए आपका धन्यवाद |

-प्रदीप