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Monday, February 15, 2016

नींद नहीं अब आती है

खो गए हैं सुकून के वो पल,
रहा नहीं खुशियों का आँचल,
बिस्तर नहीं बुलाती है,
नींद नहीं अब आती है ।

भागदौड़ में सबकुछ छूटा,
चैन तो जैसे बैठा रुठा,
जीवन रीत निभाती है,
नींद नहीं अब आती है ।

आपस में बस होड़ है लगी,
चोट भी पर बेजोड़ है लगी,
निद्रा देवी बस जाती है,
नींद नहीं अब आती है ।

अपनों का सानिध्य कहाँ अब,
मन सबका द्वैविध्य यहाँ अब,
माँ लोरी याद आती है,
नींद नहीं अब आती है ।

स्वयं को ही है खोया हमने,
एक अकेले रोया हमने,
अंत: सदा लगाती है,
नींद नहीं अब आती है ।

पैसे पर सब बिकता है अब,
सत्य फिर कहाँ दिखता है अब,
नींद नहीं पर बिकाती है,
नींद नहीं अब आती है ।

नहीं रहा अब निश्छल सा मन,
फैल रही है कटुता जन जन,
बांधव्य भी अब रुलाती है,
नींद नहीं अब आती है ।

शत्रु मित्र भेष में फिरते,
संकट चारो ओर से घिरते,
मस्तिष्क भी अकुलाती है,
नींद नहीं अब आती है ।

-प्रदीप कुमार साहनी

2 comments:

  1. शब्द संचयन अच्छा है ,कल्पना की उड़ान कवि खूबसूरती है

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  2. काव्य कल्पना के परे होहोता है

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