खिल गए सरसों पीले पीले,
पीत रंग में रंगी धरा है,
वृक्षों में नव कोंपल फूटे,
पुनः यहाँ सब हरा भरा है ।
पतझड़ के वे रुखे से पल,
हो चला अब उसका अंत,
प्रकृति सत्कार में जुटी,
आयेंगे ऋतुराज बसंत ।
कामदेव के पुत्र बसंत का,
आना सरस, सुखद संयोग है,
कंपकंपाती शीत ऋतु का,
हम सबसे मीठा वियोग है ।
मानो ज्यों श्रृंगार कर लिया,
धरनि ने अद्भूत अनंत,
कोकिल स्वागत गान है गाती,
आयेंगे ऋतुराज बसंत ।
आम्र बौरों से लदने आतुर,
पुष्प खिले चहुँ ओर यहाँ हैं,
हिम पिघल कर चरण पखारे,
ऐसी किसकी शान कहाँ है ?
पवन देव स्वयं झूला झुलावे,
ये ऋतुओं में है महंत,
हरियाली चहुँओर शोभती,
आयेंगे ऋतुराज बसंत ।
वर्ष पुराना खोल के चोला,
बदलेगा नव वर्ष में अब तो,
खुशियों के त्योहार सजेंगे,
तन मन होंगे हर्ष में अब तो ।
माघ मास की शुक्ल पंचमी,
चेतन बन होगा जड़ंत,
सोलह कला में खिलि प्रकृति,
आयेंगे ऋतुराज बसंत ।
-प्रदीप कुमार साहनी
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 08 फरवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार आपका ।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (08-02-2016) को "आयेंगे ऋतुराज बसंत" (चर्चा अंक-2246) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका बहुत बहुत आभार ।
Deleteप्रकृति का मनोरम वर्णन बहुत अच्छा लगा ।
ReplyDeleteकविताओं के लिये http://manishpratapmpsy.blogspot.com पर भी सादर आमंत्रित है आप सब।
मनभावन रचना !!
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