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Sunday, December 23, 2012

हाँ, मुद्दा यही है


हाँ,
मुद्दा यही है,
पर क्या ये सही  है,
वास्तविकता का कोई अंश है,
या सब ढपोरशंख है,
एक तरफ चीर हरण है,
फिर अनशन आमरण है,
क्या वाकई हृदय का जागरण है ?
हाँ, तावा वस्तुतः गरम है,
कई सेंक रहे रोटी नरम है,
चाह सबकी एक नई दिशा है,
पर दिखती दूर-दूर तक निशा है |
ओज है, साहस है,
पर मिलता सिर्फ ढाढ़स है |
चोर ही चौकीदार है,
कौन वफादार है ?

6 comments:

  1. ओज है, साहस है,
    पर मिलता सिर्फ ढाढ़स है |
    चोर ही चौकीदार है,
    कौन वफादार है,,,,,बहुत उम्दा बढ़िया प्रस्तुति,,,

    recent post : समाधान समस्याओं का,

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (24-12-2012) के चर्चा मंच-११०३ (अगले बलात्कार की प्रतीक्षा) पर भी होगी!
    सूचनार्थ...!

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  3. बात तो सही कह रहे है आप..
    यथार्थ कहती रचना...

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  4. नववर्ष की अनंत शुभकामनाएँ....
    :-)

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  5. शुभ 'ख्रीस्त-दिवस'!
    एक तरफ चीर हरण है,
    फिर अनशन आमरण है,
    ------------------
    सटीक और सामयिक बात!

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  6. इसीलिए चोर की माँ को पकड़ना होगा छिपी बैठी जो संसद में सरकार का लबादा पहने .इस व्यवस्था में अपराध तत्व और चोर/सरकार अब पर्यायवाची शब्द हो गए हैं .

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