मेरे साथी:-

Sunday, December 16, 2012

गम लिया करते हैं

दाव में रखकर अपनी जिंदगी को हर वक़्त हर घड़ी,
सहम-सहम के लोग आज ये जिंदगी जिया करते हैं |

सौ ग्राम दिमाग के साथ दस ग्राम दिल भी नहीं रखते लोग,
विरले हैं जो आज भी हर फैसला दिल से किया करते हैं |

बच्चे को आया के हवाले कर, पिल्ले को रखते हैं गोद में,
कहते हैं आज के बच्चे माँ-बाप का साथ नहीं दिया करते हैं |

एक दिन फेंकी थी तुमने जो चिंगारी मेरे घर की ओर,
आग बना कर उसे हम आज भी हवा दिया करते हैं |

अपनी अपनी कर के जी लेते हैं जिंदगी किसी तरह,
स्वार्थ की बनी चाय ही सब हर वक़्त पिया करते हैं |
अब तो ये चाँद भी आता है लेकर सिर्फ आग ही आग,
फिर क्यों सूरज से शीतलता की उम्मीद किया करते हैं |

सब हैं खड़े यहाँ कतार में जख्म देने के लिए ऐ "दीप",
कोई भरता नहीं हम खुद ही जख्मों को सिया करते हैं |

अपना तो जिंदगी जीने का फंडा ही अलग है ऐ "दीप",
कोशिश रहती खुशियाँ देने की और गम लिया करते हैं |

10 comments:

  1. अपना तो जिंदगी जीने का फंडा ही अलग है ऐ "दीप",
    कोशिश रहती खुशियाँ देने की और गम लिया करते हैं |

    Bahut khoob !

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  2. बच्चे को आया के हवाले कर, पिल्ले को रखते हैं गोद में,
    कहते हैं आज के बच्चे माँ-बाप का साथ नहीं दिया करते हैं |

    एक दिन फेंकी थी तुमने जो चिंगारी मेरे घर की ओर,
    आग बना कर उसे हम आज भी हवा दिया करते हैं |


    वाह ... एक एक शेर आपकी छाप छोड़ते हैं .. बहुत ही शानदार गजल।

    मेरी नई कविता आपके इंतज़ार में है: नम मौसम, भीगी जमीं ..

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  3. बहुत सराहनीय प्रस्तुति. आभार. बधाई आपको

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  4. प्रशंसनीय प्रस्तुति

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  5. सब हैं खड़े यहाँ कतार में जख्म देने के लिए ऐ "दीप",
    कोई भरता नहीं हम खुद ही जख्मों को सिया करते हैं |.

    बेहतरीन अभिव्यक्ति,प्रशंसनीय रचना,,,,बधाई प्रदीप जी,,,

    recent post: वजूद,

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  6. वाह ... बेहतरीन

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  7. वाह ... क्या बात है .. लाजवाब शेर ...

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  8. आज की रहनी सहनी पे तंज करती बढती है यह सांगीतिक गजल .

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  9. परिवर्तन पसंद आया --- जय हिंदी!

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