ऐ "दीप" हर शख्स दिल का सहारा नहीं होता ।
समन्दर में चाहे जिस ओर मोड़ लो कश्ती,
अफसोस! हर तरफ एक किनारा नहीं होता ।
चंद लोग हर कदम पे चलते साथ-साथ,
सब लोग के मरजी पे वश हमारा नहीं होता ।
चंद लोग ही सफर को आसाँ हैं करते,
हर कोई दिल-ए-गुलजार तुम्हारा नहीं होता ।
सफर में गर कोई छोड़ देता है हाथ,
चंद साथ के छुटने से कोई बेसहारा नहीं होता ।
निकाल लो चाहे झील से कुछ पानी,
उस पानी के लिए झील कभी बेजारा नहीं होता ।
सही कहा हर कोई सहारा नहीं होता,
ReplyDeleteचंद लोग हर कदम पे चलते साथ-साथ,
ReplyDeleteसब लोग के मरजी पे वश हमारा नहीं होता
pradeep ji bahut sundar bhavabhivyakti hai fir bhi yadi aapko sahi lage to har kadam pe chalte ke bad ''hain'' aur sab log ko ''logon kee''kar len to meri alp buddhi se ye jyada achchha lagega.
bahut khubsurat rachna
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