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Wednesday, May 18, 2011

भ्रष्ट पच्चीसा

                भ्रष्ट समाज का हाल मैं,       तुमको रहा सुनाय |
                भूल भयो तो भ्रात, मित्र, झापड़ दियो लगाय    ||

                ज्यों सुरसा का मुख बढे,      वैसो फैलत जाय |
                हनुमान की पूंछ सम, अंत न इसका भेन्ताय ||

देश की दुर्गत हाल भई है      | जनता-जन बेहाल भई है ||
बसते थे संत नित हितकारी | आज पनपते भ्रष्टाचारी |१|

राजनीति व नेता, अफसर    | ढूंढ़ रहे सब अपना अवसर    ||
मधुशाला में जाम ज्यों होता | व्यभिचार अब आम यूँ होता |२|

ज्यों बालक फुसलाना होता | वैसा घुस खिलाना होता        ||
एक कर्म नहीं आप ही होता | बिन पैसा सब शाप ही होता |३|

काम चाहिए अगर फटाफट    | जेब भरो तुम यहाँ झटाझट ||
बिन पैसा पानी भी न मिलता | पैसों से सरकार भी चलता |४|

जब हो सब यूँ भ्रष्टाचारी      | तब पैसों की महिमा प्यारी ||
सोकर चलती तंत्र सरकारी | गर्व करो ये राज हमारी     |५|

लोकपाल बिल है लटकाई | कई की इससे सांशत आई ||
देशभक्त बदनाम हो चलते | निजद्रोही निज शान से फलते |६|

गाँधी भी निज नेत्र भर लेते | गर देश दशा दर्शन कर लेते ||
कह जाते मैं नहीं हूँ बापू      | भला होई तुम मार दो चाकू |७|

ऐसे न था सोच हमारा      | देश चला किस राह तुम्हारा ||
यह नहीं सपनों का भारत | खो गया अपनों का भारत |८|

राज्य, देश सब एक हाल है | भ्रष्टों का यह भेड़ चाल है   ||
है हर महकमा बेसहारा      | भ्रष्ट ने सबमे सेंध है मारा |९|

फ़ैल चूका विकराल रूप है | ज्यों फैला चहुँओर धुप है      ||
जस जेठ की गर्मी होती    | तस तापस ये भ्रष्ट की नीति |१०|

जो समझे ईमान धर्म जैसा | वो मेमना श्वानों मध्य जैसा ||
सत्य मार्ग पे जो चल जाये | जग में हंसी पात्र बन जाये  |११|

सच्चों का यहाँ एक न चलता   | गश खाकर बस हाथ ही मलता ||
जो ध्रूत चतुर चालाक है बनता | उसका ही संसार फल-फूलता |१२|

अपना है यह देश निराला | चाँद लोगों ने भ्रष्ट कर डाला     ||
लोग स्वार्थी हो रहे नित   | को नहीं समझे औरों का हित |१३|

स्वार्थ ही सबको भ्रष्ट बनाता | स्वार्थ ही सब कुकर्म करता    ||
स्वार्थ है सबके जड़ में व्याप्त | स्वार्थ ख़तम हर भ्रष्ट समाप्त |१४|

महंगाई का अलग तमाशा   | बीस कमाओ खर्च पचासा ||
घर का बजट बिगड़ता जाये | चीर निद्रा में राजा धाये  |१५||

महंगाई अम्बर को छूता    | धन, साधन कुछ नहीं अछूता ||
जन-जन ही बेहाल हुआ है | दो-एक मालामाल हुआ है    |१६|

अब धन निर्धन क्या कमाए | क्या खिलाये क्या वह खाए           ||
महंगाई ने कमर है तोड़ी      | आम जन की नस-नस है मरोड़ी |१७|

सरकारी धन अधर में लटका | बीच-बिचौलों ने सब झटका ||
एक नीति न धरा पर आई     | कागज में होती है कमाई   |१८|

सरकारी हैं बहुत योजना        | सब बस अफसर के भोजना  ||
जो नित नीति के योग लगाते | स्वयं ही उसका भोग लगाते |१९|

मन मानस पर ढूंढ है छाई       | देश को खुद है उबकी आई            ||
स्वयं समाज है जाल में उलझा | राजनीति एक खेल अन-सुलझा |२०|

पढ़ ले जो यह भ्रष्ट पचीसा | निज मन नाचे मृग मरीचा   ||
भ्रष्टाचार जो मिटाने जाई        | खुद अपनी लुटिया है डूबाई |२१|

मत समझो इसे लिट्टी चोखा | दिन दुनिया का खेल अनोखा  ||
गहराई में उतर चूका यह        | रक्त-रक्त तक समा चूका यह |२२|

जम चूका है बा यह बीमारी | फ़ैल रहा बनके महामारी        ||
कहीं तो है यह भूल हमारी   | जिम्मेदारी लें हम सब सारी |२३|

जन-जन को ही बदलना होगा   | हर भारतीय को सुधरना होगा ||
सब अपना चित निर्मल कर लें | गंगा सम मन निर्मल कर लें |२४|

भ्रष्टाचार न हो नाग हमारा    | ऐसे देश जाये जाग हमारा        ||
कहे "प्रदीप" ये राग हमारा   | स्वच्छ समाज हो भाग हमारा |२५|

            सुन्दर स्वप्न देख लिया, हो भ्रष्टाचार विमुख        |
            देश हमारा यों रहे ज्यों,   गाँधी स्वप्न सन्मुख ||

16 comments:

  1. बेहतर। आपने तो पुरा पोस्टमार्टम कर दिया है। अच्छी लगी रचना। आभार। मेरे ब्लाग पर आने के लिए शुक्रिया।

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  2. Nice post.

    भाई आपकी इस प्रेरणा देती हुई रचना को ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ पर प्रचारित किया जा रहा है। आप इस ब्लॉग को फ़ोलो करें।
    धन्यवाद !

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  3. सत्य कहा आप ने यथार्थ है ये

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  4. आप सबका का धन्यवाद । कृपया मेरी बाकि रचनाओं को भी देखें और अपनी राय देकर प्रोत्साहित करें।

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  5. बहुत सही शब्द चुने आपने ....

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  6. यथार्थ के धरातल पर रची गयी एक सार्थक प्रस्तुति !
    हार्दिक शुभकामनायें !
    एवं साधुवाद !

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  7. सटीक और सार्थक रचना ..अच्छा लगा यह पचीसा

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  8. प्रिय प्रदीप साहनी जी भ्रष्ट पचीसा अच्छी रही -इन के गुणों का ऐसे ही बखान हो तो इन्हें आइना दिखे
    लिखते रहिये सुन्दर हैं
    शुक्ल भ्रमर ५
    http://surenrashuklabhramar.blogspot.com
    एक कर्म नहीं आप ही होता | बिन पैसा सब शाप ही होता |३|


    भ्रष्टाचार न हो नाग हमारा | ऐसे देश जाये जाग हमारा

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  9. बहुत उत्तम विचार |बधाई
    आशा

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  10. जब हो सब यूँ भ्रष्टाचारी | तब पैसों की महिमा प्यारी ||
    सोकर चलती तंत्र सरकारी | गर्व करो ये राज हमारी |sateek abhivyakti.behtareen.

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  11. टिप्पणी करने के लिए और फोलो करने के लिए सबका धन्यवाद ।

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  12. bahut khub mza aa gya
    sundar rachna

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  13. This comment has been removed by a blog administrator.

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