जीवन की रेखा की भांति जिसकी महत्ता होती है,
दुनिया के इस दरश कराती, वह तो माँ ही होती है |
खुद ही सारे कष्ट सहकर भी, संतान को खुशियाँ देती है,
गुरु से गुरुकुल सब वह बनती, वह तो माँ ही होती है |
जननी और यह जन्भूमि तो स्वर्ग से बढ़कर होती है,
पर थोडा अभिमान न करती, वह तो माँ ही होती है |
"माँ" छोटा सा शब्द है लेकिन, व्याख्या विस्तृत होती है,
ममता के चादर में सुलाती, वह तो माँ ही होती है |
संतान के सुख से खुश होती, संतान के गम में रोती है,
निज जीवन निछावर करती, वह तो माँ ही होती है |
शत-शत नमन है उस जीवट को, जो हमको जीवन देती है,
इतना देकर कुछ न चाहती, वह तो माँ ही होती है |
maa ki vyakhyaa wakai vistrit hai
ReplyDeleteBahut sunder bhav liye rachna......
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
ReplyDeleteमाँ को प्रणाम!