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Wednesday, January 19, 2011

एक अलग दुनिया

सोचता हूँ बस जाए अपनी एक अलग दुनिया,
जहाँ बस अपने हो,प्रेम हो,सौहार्द हो।
न कोई त्रस्त हो न कोई भ्रष्ट हो,
न कोई दगा दे,न कोई सजा दे,
न कोई नेता न राजनीति हो,
न कोई पुलिस न हो कोई कानून,
अपनत्व की धारा हो,
सब एक दूसरे का सहारा हो।
अपनो का साथ हो, सिर में बड़ों का हाथ हो।
उज्ज्वलता ही चारों ओर हो, पँछियों का कर्णप्रिय शोर हो,
जिन्दगी खुशहाल रहे, हर आशायें बहाल रहे;
संजीदगी से जीवन-यापन करे हर कोई,
बैर-वैमनस्य का कहीं कोई नाम न हो।
वह दुनिया हो, हसीन वह दुनिया हो मलिन,
ऐसे ही हो मेरी एक अलग दुनिया।

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