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Friday, January 7, 2011

आधुनिकता

आधुनिक बनने कि होड़ में, भूल गए हम नैतिक मूल्यों को ;
पूरखों से आ रही शिक्षा को, भूल गए हम शिष्टता और मानवता को |

चाहा था जिसे पूर्वजों ने कभी, पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ता ही जाये ;
अफ़सोस ! न समझे, हम नासमझ, लात मारी किया दूर उन रत्नों को |

रहने का ढंग, बोलने का चलन, पहनावा आदि कई जीवन के रंग ;
बद से भी बदतर हुए जा रहे, फिर भी है न होश हम अनजानों को |

गीता के मर्म भी हमे दिखते नहीं, राम-जीवन का गुढ़ भी नहीं है पता ;
दुनिया संग हम भी चकाचौंध के मारे, क्या हो रहा है ये खबर किसको ?

छाता है बादल आसमान पर भी, पर रहता नहीं वह सदा के लिए ;
पर आधुनिकता जो छाया है हम पर, बड़ा मुश्किल हटाना है इस बादल को |

कल तक जिसे थे अनैतिक समझते, उसको भी इसने जायज कर दिया ;
कुछ भी करते हैं नाम इसका लेकर, ताक में रख कर अपनी संस्कृति को |

चादर को ओढ़ आधुनिकता की, अंधों की दौड़ में दौड़े जा रहे ;
खड्ड में जा गिरे या हो अपना पतन, भाई मोडर्न हैं ! रोको मत हम दीवानों को |

मोडर्न ! मोडर्न ! सब चीखे जा रहे, मृगतृष्णा के पीछे चले जा रहे ;
पर अब तक किसी ने भी देखा नहीं, क्या खो रहे हम और इसकी कीमत को |

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