मेरे साथी:-

Friday, January 7, 2011

आशातीत

तेज हवा के झोंको में बैठा, जब पत्तियों को इनके साथ उड़ते देखता हूँ;
सोचता हूँ काश !
पत्तियों की तरह हवा के साथ मैं भी उड़ पाता |

चांदनी रात में खामोश बैठा, जब धरती को रौशनी में नहाये देखता हूँ,
सोचता हूँ काश !
ऐसी ही धवल उज्ज्वलता मैं भी सबको दे पाता |

राहों में जब चलते-चलते वृक्षों को मदमस्त हो लहराते देखता हूँ,
सोचता हूँ काश !
सभी ग़मों को भूल ख़ुशी में, मैं भी ऐसे ही लहरा पाता |

राह के अँधेरे में जब आसमान में तारों को टिमटिमाते देखता हूँ,
सोचता हूँ काश !
इस बोझिल जिंदगी का चोला उतार, मैं भी आसमान में टिमटिमा पाता |

सोती-जागती आँखों से जब, कई सुनहरे और चल सपने देखता हूँ,
सोचता हूँ काश !
सपनों कि मानिंद जिंदगी को भी, ऐसे ही साकार कर पाता |

नज़रों के सामने झुरमुठों में, पक्षियों को जब किलोलें करते देखता हूँ,
सोचता हूँ काश !
अपना भी जीवन इनकी तरह, चंद लम्हों का खुशियों से भरा हो पाता |

निर्जीव-सा पड़ा हुआ, आँखों को मूँद सुन्या में देखता हूँ,
सोचता हूँ काश !
खुद में भी ऐसी शक्ति होती कि आशातीत कि आशा कभी न कर पाता |

3 comments:

कृपया अपनी टिप्पणी दें और उचित राय दें | आपके हर एक शब्द के लिए तहेदिल से धन्यवाद |
यहाँ भी पधारें:-"काव्य का संसार"

हिंदी में लिखिए:

संपर्क करें:-->

E-mail Id:
pradip_kumar110@yahoo.com

Mobile number:
09006757417

धन्यवाद ज्ञापन

"मेरा काव्य-पिटारा" ब्लॉग में आयें और मेरी कविताओं को पढ़ें |

आपसे निवेदन है कि जो भी आपकी इच्छा हो आप टिप्पणी के रूप में बतायें |

यह बताएं कि आपको मेरी कवितायेँ कैसी लगी और अगर आपको कोई त्रुटी नजर आती है तो वो भी अवश्य बतायें |

आपकी कोई भी राय मेरे लिए महत्वपूर्ण होगा |

मेरे ब्लॉग पे आने के लिए आपका धन्यवाद |

-प्रदीप