मेरे साथी:-

Wednesday, July 29, 2015

रिश्ते- "तब और अब"

 एक वो जमाना था कभी, आज ये एक जमाना है,
तब पास रहने की इच्छा थी, अब दूर रहने का बहाना है..

अपनो के नजदीक थे तब, अब रिश्ते बस निभाना है,
तब वक्त बिताना भाता था, अब देख नजर चुराना है..

खुशियाँ ही तब चाहत थी,अब काम-दाम पे निशाना है,
तब रिश्तों को चमकाना था, अब बस कैरियर को बनाना है..

अहम थे तब जज्बात सभी, अब बना बनाया ढहाना है,
मिल जुल कर तब रहना था, अब अपनी डफली बजाना है..

तब आँख बंद हो भरोसा था, अब हर बात पे आजमाना है,
कथनी तब कुछ और ही थी, अब करनी अलग दिखाना है..

काश जो था तब फिर अब भी हो, फिर वैसे सब कुछ सजाना है..
हर अपनों को फिर जोड़ना है, हर रुठे हुए को मनाना है.

Wednesday, July 1, 2015

पिता

वट वृक्ष सा खड़ा हुआ वह शख्स पिता कहलाता है,
सामने हर संकट के होता, जो संतान पे आता है..

जिम्मेदारी के बोझ तले वो दब अक्सर ही जाता है,
हर भावों से भरा हृदय पर भावशून्य दर्शाता..

संतान के सुख में खुश होता, संतान के गम में रोता है,
माँ रो लेती फूट कर कभी, पिता सुबक रह जाता है..

हर अपनों की हर एक खुशी ढूँढ ढूँढ कर लाता है,
हर कष्टों को कर समाहित, कष्टरहित कर जाता है..

ऊँगली धर चलना सिखलाता, काँधे पे भी बिठाता है,
हर डाँट में थपकी होती, जीना वही सिखाता है..

हर मोड़ पर राह दिखाता, वो इस जनम का दाता है,
वट वृक्ष सा खड़ा हुआ वह शख्स पिता कहलाता है...

Sunday, May 24, 2015

हे हनुमत् !!

पूजूँ, मैं तो तुझे संग राम ,
हे हनुमत, कर देना कल्याण;
भज लूँ, दिन दोपहर व् शाम,
हे हनुमत, कर देना कल्याण ।

राम कृपा सदा साथ तुम्हारे,
तुम हरना प्रभु कष्ट हमारे,
देना, निज भक्ति का दान,
हे हनुमत, कर देना कल्याण ।

हर काम किये बन भक्त राम के,
मुझे देना बुद्धि मूढ़ जान के,
प्रभु, रख लेना मेरा मान,
हे हनुमत, कर देना कल्याण ।

तुम तो हो प्रभु संकटमोचन,
रखना मुझपे कृपा के लोचन,
तुझको, नमन करूँ हनुमान,
हे हनुमत, कर देना कल्याण ।


पूजूँ, मैं तो तुझे संग राम ,
हे हनुमत, कर देना कल्याण;
भज लूँ, दिन दोपहर व् शाम,

हे हनुमत, कर देना कल्याण ।

Monday, May 11, 2015

गम के आंसूं

(डायरी से एक और रचना )

अजीब सी ये अपनी दास्ताँ है बनी,
चंद लम्हें जिंदगी के घायल कर गए |

जीवन के दौड़ में बहुतो ही मिले,
कुछ साथी बने कुछ परे कर गए |

चार पल की ख़ुशी, जिंदगी भर का गम
ये चार पल की खुशियों से, बेदखल कर गए |

अकेला ही था, अकेला ही रहा,
साथ दिया जिसने खुद एकल कर गए |

जिन हाथों को अपना, समझा था मैंने,
वो हाथ ही हमें खाली हाथ कर गए |

दर्द ही मिला, अपनों से अक्सर,
ठीक समझा किसी ने, कुछ गलती कर कर |

अकेलेपन में कुछ जब तड़प उठे हम,
तो अपने ही हमसे, शिकवा कर गए |

वक़्त को समझने की कोशिश तो की,
पर वे लम्हें ही हमें नासमझ कर गए |

कम न कर पाया जिंदगी के दर्द,
गम के आंसूं दिल को पागल कर गए |

आंसूं न बहायें, जो गम में हमने,
तो गम को हम अपने नाराज कर कर गए |

03.08.2005 

Friday, November 22, 2013

वेदना

(डायरी से एक और रचना, जिसमे किसी के हृदय की वेदना को दिखाने की कोशिश की है)

अश्क ही रह गए हैं पीने के लिए,
बोझिल-सी जिंदगी है जीने के लिए,
जख्मों को देखकर गुजरे दिन-रात,
कोई हमदर्द भी नहीं जख्म सीने के लिए |

मजबूर हो गया यादें ढोने के लिए,
नाम न ले गम कम होने के लिए,
यादों को लेकर जीना-मरना भी मुश्किल,
एक तस्वीर भी नहीं लिपट के रोने के लिए |

पड़ा हूँ समय की ठोकर खाने के लिए,
कोशिश में हूँ रिश्ते निभाने के लिए,
अरमां तो है बहुत कुछ करने की मगर,
हाथ में वो लकीर नहीं शायद चाहत को पाने के लिए |

रंगहीन जीवन को रंगीन बनाने के लिए,
तमन्ना है सुख का रस भरने के लिए,
अश्कों से उबर कुछ खुशियाँ भी समेटूं,
मौका न दिया तकदीर ने कुछ करने के लिए |

कारण नहीं कुछ मौत से डरने के लिए,
कोई नहीं यहाँ वेदना हरने के लिए,
घुट-घुट कर जीने से मरना ही अच्छा,
पर जहर भी नहीं खाकर मरने के लिए |

10.04.2004

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