(डायरी से एक और रचना, जिसमे किसी के हृदय की वेदना को दिखाने की कोशिश की है)
अश्क ही रह गए हैं पीने के लिए,
बोझिल-सी जिंदगी है जीने के लिए,
जख्मों को देखकर गुजरे दिन-रात,
कोई हमदर्द भी नहीं जख्म सीने के लिए |
मजबूर हो गया यादें ढोने के लिए,
नाम न ले गम कम होने के लिए,
यादों को लेकर जीना-मरना भी मुश्किल,
एक तस्वीर भी नहीं लिपट के रोने के लिए |
पड़ा हूँ समय की ठोकर खाने के लिए,
कोशिश में हूँ रिश्ते निभाने के लिए,
अरमां तो है बहुत कुछ करने की मगर,
हाथ में वो लकीर नहीं शायद चाहत को पाने के लिए |
रंगहीन जीवन को रंगीन बनाने के लिए,
तमन्ना है सुख का रस भरने के लिए,
अश्कों से उबर कुछ खुशियाँ भी समेटूं,
मौका न दिया तकदीर ने कुछ करने के लिए |
कारण नहीं कुछ मौत से डरने के लिए,
कोई नहीं यहाँ वेदना हरने के लिए,
घुट-घुट कर जीने से मरना ही अच्छा,
पर जहर भी नहीं खाकर मरने के लिए |
10.04.2004
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार -
वेदनापूर्ण रचना. अच्छी प्रस्तुति.
ReplyDeleteachha likha hai
ReplyDeleteshubhkamnayen
जख्मों को देखकर गुजरे दिन-रात,
ReplyDeleteकोई हमदर्द भी नहीं जख्म सीने के लिए |
beautiful expression .. Pradip bhai
कोई हमदर्द भी नहीं जख्म सीने के लिए |
ReplyDeleteबेहद भावुक एवं सुन्दर पक्ति। बहुत खुब कहा है आपने पुरी कविता में। स्वयं शून्य
साल भर हो गया ज़नाब, कुछ नया नहीं?
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